Wednesday, June 24, 2020

रवि अरोड़ा की नजर से.....





इतनी जल्दी क्या है बाबा

रवि अरोड़ा

कोविड 19 के शर्तिया इलाज का दावा कर अपनी किरकिरी करा चुके राम किशन यादव उर्फ़ बाबा रामदेव अब मोदी सरकार के रहमो करम पर हैं । मंगलवार को उन्होंने जिस प्रकार बिना सरकारी अनुमति के कोरोना के सौ फ़ीसदी इलाज का दावा किया और अपनी कम्पनी की दवा कोरोनिल व शवासरि को धूमधाम से लाँच किया वह ड्रग एंड मैजिक रेमडीज एक्ट 1954 के तहत दंडनीय अपराध है । नियमानुसार इस मामले में उनके ख़िलाफ़ आयुष मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार एफआईआर दर्ज करा सकती है हालाँकि विदेशों में भी हुई किरकिरी के बावजूद फ़िलहाल इसकी सम्भावना नहीं है । प्रधानमंत्री मोदी जी से सीधे सम्बंध और आयुष मंत्री श्रीधर नाइक के कल के बयान में बाबा के प्रति सम्मानसूचक शब्दों से भी यह तय हो गया है कि देर सवेर मामला बाबा के पक्ष में ही जाएगा । बेशक उत्तराखंड सरकार ने साफ़ कर दिया है कि पतंजलि समूह ने उससे केवल प्रतिरोधक क्षमता वाली दवा के उत्पादन की अनुमति ली है मगर फिर भी बाबा के ख़िलाफ़ जाने का साहस प्रदेश सरकार में भी नहीं है । इस पूरे प्रकरण को नज़दीक से देखने वाले अब इस सवाल से जूझ रहे हैं कि बिना क़ानूनी प्रक्रिया पूरी किये बाबा ने अपनी दवा क्यों लाँच की ? क्या उन्हें उम्मीद थी कि सरकार उनके ख़िलाफ़ नहीं जा सकती ? लखटकिया सवाल यह भी है कि बाबा को दवा बाज़ार में उतारने की आख़िर इतनी जल्दी ही क्यों थी ?

जानकर बताते हैं कि देश में आयुर्वेदिक दवाओं का बाज़ार तेज़ी से फैल रहा है । हालाँकि अभी यह केवल पंद्रह हज़ार करोड़ रुपये सालाना का ही है और अंग्रेज़ी दवाएँ डेड लाख करोड़ से भी अधिक की बिकती हैं मगर फिर भी देसी दवाओं के बाज़ार की ग्रोथ एलोपैथिक के मुक़ाबले तेज़ी से हो रही है । देश में आयुर्वेदिक दवाओं की दर्जनों बड़ी कम्पनियाँ तो हैं ही मगर अब विदेशी ब्राण्ड भी नेचुरल और हर्ब के नाम को कैश कर रहे हैं । बाबा की कम्पनी पतंजलि ने भी अपना कारोबार 1997 में आयुर्वेदिक दवाओं से ही शुरू किया था मगर बाद में वह एफएमसीजी प्रोडक्ट्स भी बाज़ार में ले आई । फ़िलवक्त बाबा की कम्पनी साढ़े तीन सौ से भी अधिक प्रोडक्ट्स बनाती है । बेशक पतंजलि ग़्रुप का उठान मोदी सरकार के आशीर्वाद से ही हुआ मगर फिर भी घटिया माल के कारण बाज़ार से कम्पनी अब बाहर होती जा रही है । सन 2017 में कम्पनी ने 10500 करोड़ का माल बेचा मगर 2018 में उसकी बिक्री 8135 करोड़ ही रह गई । सन 2019 में तो कम्पनी की बिक्री केवल 4701 पर ही सिमट गई । हालाँकि 2020 की बैलेंस शीट अभी जारी नहीं हुई है मगर अनुमान है कि पिछली 31 मार्च तक कम्पनी की बिक्री तीन हज़ार करोड़ से अधिक नहीं हो पाई होगी । उधर देश भर में कम्पनी के स्टोर भी माल का उठान न होने से धड़ाधड़ बंद हो रहे हैं । हालाँकि कम्पनी का दावा है कि उसके देश भर में दो लाख सेल काउंटर और सौ मेगा स्टोर हैं मगर जानकारों का दावा है कि इनमे से आधे अब बंद हो चुके हैं ।

कम्पनी की गिरती साख और बिक्री ही इकलौती वजह नहीं है जिसके कारण गेम चेंजर के रूप में कोरोना की दवा की लांचिंग जल्दबाज़ी में हुई । दरअसल राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ने भी कोरोना की चार दवा बना ली हैं और बारह हज़ार लोगों पर उनकी टेस्टिंग का काम भी चल रहा है । उम्मीद है कि संस्थान अपनी दवा शीघ्र ही बाज़ार में उतार सकता है । अब बाज़ार तो उसी का होता है जो पहले आये । बाबा शायद इसी से घबराये हुए थे और यही वजह रही कि जल्दबाज़ी में केवल 280 मरीज़ों के ट्रायल के बाद ही उन्होंने अपनी दवा लाँच कर दी । आयुर्वेदिक दवाओं के लिये भी ड्रग एंड कासमेटिक रूल्स 1945 की धारा 160 ए एवं जे के तहत सरकारी देखरेख में चार चरणों के ट्रायल का प्रावधान है मगर बाबा ने अपनी ताक़त और पहुँच के भ्रम में किसी भी नियम की परवाह नहीं की और किसी बंगाली बाबा की तरह शर्तिया इलाज का दावा कर दिया । बाबा तुलसी दास जी आप ठीक ही कहते थे- समरथ को नहीं दोष गोसाईँ ।

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