Wednesday, June 24, 2020

संसार चक्र नाटक





 **परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -

【संसार चक्र】

 कल से आगे-
 दुलारेलाल -आप लोग बड़े भद्र पुरुष मालूम होते हैं।
U  पंडा -अभी क्या है जब हमारे पंडित जी का दर्शन करोगे तो निहाल हो जाओगे।  हमारे पंडित जी की एक पाठशाला है, एक गौशाला है और (रास्ते में खड़े होकर वह दुलारेलाल को खासतौर पर मुखातिब करके और गर्दन व आँख मटका कर)  भूखे प्यासे के लिए छोटा-मोटा सदाव्रत भी खुला हुआ है, पचास साठ  प्राणियों को रोज अन्न बँट जाता है।

 दुलारेलाल-(हैरान होकर)  हर रोज पचास साठ आदमियों को ?

पंडा -जी हां, मालूम होता है आप पहले ही बार कुरुक्षेत्र आये हैं ?         

दुलारेलाल -हां पहली दफा आये हैं।

( सब रास्ता चलने लगते हैं )

पंडा- कुरुक्षेत्र में दान करने का बड़ा ही फल है, कोई कोई राजा अपनी रानी दान कर देते हैं ।

 इंदुमती -हैं, रानी ?

पंडा-हाँ महाराज!और रानी तक दान कर देते हैं। आप जानते हैं कि संसार में एक से बढ़कर एक दानी भरे हैं।

 दुलारेलाल -मगर रानी दान करने का मतलब मेरी समझ में नहीं आता?

पंडा- अरे एक रानी ही नहीं, भूषण और वस्त्र भी साथ देते हैं ।

 इंदुमती-वाह! यह अजीब बात है।

पंडा मालूम होता है आप लोगो ने शास्त्र नही पढे।सूर्यग्रहण के मौके पर राजा लोग वत्रों भूषणों से सजा कर रानियों का दान इस हेतु करते है कि स्वर्गलोक में पहुँचने पर वह रानियाँ फिर उनको  मिलें। इन बातों को वही पुरुष स्त्री समझ सकते है जिनका आपस में घनिष्ट प्रेम है।

(इंदुमती -राजादुलारेलाल की तरफ  ताकती है और राजा दुलारेलाल उसकी तरफ ताकता है। पंडा तिरछी निगाह से देखता है और दोनों का मतलब समझ जाता है)
                                   

Yपंडा -महाराज! मनुष्यजन्म तो दुर्लभ है ही पर दान पुण्य के लिए उदारता का पैदा होना और भी दुर्लभ है। संसार को तो इस लोभ ने मार रखा है। दान पुण्य करने से मोह भी छूटता है और परलोक के सुख का भी प्रबंध होता है ।मनुष्य के संग दिया ही चलता है। बाकी तो यहीं का यहीं धरा रह जाता है।

इंदुमती -(राजा दुलारेलाल से)  हम लोगों ने तो कभी भी दिल खोल कर दान पुण्य नहीं किया, अबकि मर्तबा कुछ दान जरूर करेंगे।

पंडा- धन्य हो महाराज! भद्र पुरुष इसी तरह अपना जन्म सफल करते हैं। वह देखो जो सामने आश्रम है।

( थोड़ी देर बाद सब आश्रम में दाखिल होते हैं।) क्रमशः

        
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

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