Thursday, June 25, 2020

करमा के ठाकुरजी / दयाल निमोडिया







*करमा रो खिचड़ो* e5

राजस्थान के मारवाड़ इलाके का एक जिला है नागौर। नागौर जिले में एक छोटा सा शहर है... "मकराणा"।

यूएन ने मकराणा के मार्बल को विश्व की ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है .... ये क्वालिटी है यहां के मार्बल की।

लेकिन क्या मकराणा की पहचान सिर्फ वहां का मार्बल है।
"जी नहीं"

मारवाड़ का एक सुप्रसिद्ध भजन है ....

*थाळी भरकर ल्याई रै खीचड़ो,*
*ऊपर घी री बाटकी...*
*जिमों म्हारा श्याम धणी,*
*जिमावै करमा बेटी जाट की...*
*बापू म्हारो तीर्थ गयो है,*
*ना जाणै कद आवैलो...*
*उण़क भरो़स बैठ्यो बैठ्यो, भुखो ही मर जावलो।*
*आज जिमाऊं त़न खिचड़ो,*
*का़ल राबड़ी छाछ री...*

*जिमों म्हारा श्याम धणी,*
*जिमावै बेटी जाट री...*

मकराणा तहसील में एक गांव है कालवा .... कालूराम जी डूडी (जाट) के नाम पे इस गांव का नामकरण हुआ है कालवा।कालवा में एक जीवणराम जी डूडी (जाट) हुए थे, भगवान कृष्ण के भक्त।

जीवणराम जी की काफी मन्नतों के बाद भगवान के आशीर्वाद से उनकी पत्नी रत्नी देवी की कोख से वर्ष 1615 AD में एक पुत्री का जन्म हुआ नाम रखा.... "करमा"।

करमा का लालन-पालन बाल्यकाल से ही धार्मिक परिवेश में हुआ .... माता पिता दोनों भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे।घर में ठाकुर जी की मूर्ति थी जिसमें रोज़ भोग लगता भजन-कीर्तन होता था।

करमा जब 13 वर्ष की हुई तब उसके माता-पिता कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए समीप ही पुष्कर जी गए .... करमा को साथ इसलिए नहीं ले गए कि घर की देखभाल, गाय भैंस को दुहना निरना कौन करेगा। रोज़ प्रातः ठाकुर जी के भोग लगाने की ज़िम्मेदारी भी करमा को दी गयी।

अगले दिन प्रातः नन्हीं करमा बाईसा ने ठाकुर जी को भोग लगाने हेतु खीचड़ा बनाया (बाजरे से बना मारवाड़ का एक शानदार व्यंजन) और उसमें खूब सारा गुड़ व घी डाल के ठाकुर जी के आगे भोग हेतु रखा।

करमा;- ल्यो ठाकुर जी आप भोग लगाओ तब तक म्हें घर रो काम करूँ...

करमा घर का काम करने लगी व बीच बीच में आ के चेक करने लगी कि ठाकुर जी ने भोग लगाया या नहीं, लेकिन खीचड़ा जस का तस पड़ा रहा दोपहर हो गयी।
करमा को लगा खीचड़े में कोई कमी रह गयी होगी वो बार बार खीचड़े में घी व गुड़ डालने लगी।
दोपहर को करमा बाईसा ने व्याकुलता से कहा ठाकुर जी भोग लगा ल्यो नहीं तो म्हे भी आज भूखी ही रहूंली....
शाम हो गयी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया इधर नन्हीं करमा भूख से व्याकुल होने लगी, वो बार बार ठाकुर जी की मनुहार करने लगी भोग लगाने के लिए...
नन्हीं करमा की अरदास सुन के ठाकुर जी की मूर्ति से साक्षात भगवान श्री-कृष्ण प्रकट हुए और बोले: "करमा तूँ म्हारे परदो तो करयो ही कोनी, म्हें भोग कंइया लगातो ?"

करमा - ओह्ह इत्ती सी बात, थे (आप) मन्ने तड़के (सुबह) ही बोल देता भगवान।
करमा अपनी लुंकड़ी (ओढ़नी) की ओट (परदा) करती है और हाथ से पंखा हिलाती। करमा की लुंकड़ी की ओट में ठाकुर जी खीचड़ा खा के अंतर्ध्यान हो जाते हैं। अब ये करमा का नित्यक्रम बन गया।

रोज़ सुबह करमा खीचड़ा बना के ठाकुर जी को बुलाती, ठाकुर जी प्रकट होते व करमा की ओढ़नी की ओट में बैठ के खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते।

माता-पिता जब पुष्कर जी से तीर्थ कर के वापस आते हैं तो देखते हैं गुड़ का भरा मटका खाली होने के कगार पे है। पूछताछ में करमा कहती है, म्हें नहीं खायो गुड़...
"ओ गुड़ तो म्हारा ठाकुर जी खायो"

माता-पिता सोचते हैं करमा ही ने गुड़ खाया है अब झूठ बोल रही है।

अगले दिन सुबह करमा फिर खीचड़ा बना के ठाकुर जी का आह्वान करती है तो ठाकुर जी प्रकट हो के खीचड़े का भोग लगाते हैं।

माता-पिता यह दृश्य देखते ही आवाक रह जाते हैं।

देखते ही देखते करमा की ख्याति सम्पूर्ण मारवाड़ व राजस्थान में फैल गयी।

जगन्नाथपुरी के पुजारियों को जब मालूम चला कि मारवाड़ के नागौर में मकराणा के कालवा गांव में रोज़ ठाकुर जी पधार के करमा के हाथ से खीचड़ा जीमते हैं तो वो करमा को पूरी बुला लेते हैं।

करमा अब जगन्नाथपुरी में खीचड़ा बना के ठाकुर जी के भोग लगाने लगी। ठाकुर जी पधारते व करमा की लुंकड़ी (ओढणी) की ओट में खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते।बाद मे करमा बाईसा जगन्नाथपुरी मे ही रहने लगी व जगन्नाथपुरी में ही उनका देहावसान हुआ।

(1) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी को नित्य 6 भोग लगते हैं, इसमें ठाकुर जी को तड़के प्रथम भोग करमा रसोई में बना खीचड़ा आज भी रोज़ लगता है।

(2) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी के मंदिर में कुल 7 मूर्तियां लगी है .... 5 मूर्तियां ठाकुर जी के परिवार की है .... 1 मूर्ति सुदर्शन चक्र की है .... 1 मूर्ति करमा बाईसा की है।

(3) जगन्नाथपुरी रथयात्रा में रथ में ठाकुर जी की मूर्ति के समीप करमा बाईसा की मूर्ति विद्यमान रहती है .... बिना करमा बाईसा की मूर्ति रथ में रखे रथ अपनी जगह से हिलता भी नहीं है।

*"मारवाड़ या यूं कहें राजस्थान के कोने-कोने में ऐसी अनेक विभूतियां है जिनके बारे में आमजन अनभिज्ञ है।"



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