Saturday, June 27, 2020

27/06 को सुबह शाम का सतसंग और वचन





**राधास्वामी!

! 27-06-2020-

आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ

-यह आरत दासी रची, प्रेम सिंध की धार। धारा उमँगी प्रेम की, जा का वार न पार।। घंटा संख नाद धुन गाजा। बीन बाँसरी अचरथ बाजा।।-( समा बँधा कुछ कहा न जाई। सतसंगी मिल आरत आरत गाई।।)

(सारबचन-शब्द-5,पृ.सं.121,122) 

                                 

(2) सुरतिया पियत अमी। गुरू नाम सुमिर धर प्यार।। भेद पाय मन सुरत लाय कर। सुनत शब्द धुन घट में सार।। सरन सम्हारत चरन निहारत। मन से काढत सभी बिकार।।-(राधास्वामी अब निज दया बिचारी। सुरत चढाई भौजल पार।।)-

(प्रेमबानी-2-शब्द-129-पृ.सं.261)     

      

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




 **राधास्वामी!! 27-06-2020-

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ

-(1) सखी री ऐसी होलु खेल। जा में प्रेम का रंघ बहे री।।-(राधास्वामी दयाल ऐसी होली खिलावें।उन महिमा कौन कहे री।। (प्रेमबानी-3-शब्द-5,पृ.सं.294)

(2) ऐ सतगुरु पिता और मालिक मेरे। मैं चरनों पै कुरबान हर दम तेरे।।-(अरज यह सुनो आज सतगुरू दयाल। मेहर से करो आज मुझको निहाल।। (प्रेमबिलास-शब्द-138-पृ।सं.203,204)

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला- कल से आगे।

 नोट:- आज -प्रेमबिलास पोथी सम्मपूर्ण  हुईं.
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 27- 06- 2020

 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-


 कल से 32 का शेष भाग -

इन प्रमाणों को छोड़ दीजिए क्योंकि आख़िर यह श्री ग्रंथ साहब की वाणी नहीं है।  स्वयं श्री ग्रंथ साहब के बचनों को लीजिये:-

 बिनवन्त नानक गुरुचरन लागे बाजे अनहद तूरे। अनहद रूप अनाहद बानी, चरणसरन जे बसत भवानी।  अनदिन मेल भया मन मान्या घर मन्दर सोहाये। पंज शब्द धुन अनहद बाजे हम घर साजन आये। सुखमन के घर राग सुन सुन मंडल लिव लाय। अकथ कथा विचारिये  मनसा मन ही समाय। उलट कँवल अमृत भरे एह मन कितहूँ न जाय। अजपा जाप ना बीसरे ,आदि जुगादि समाय। लीजिये यहां अनहद तूर भी है, अनहद रूप तथा अनाहद बानी भी है। अनहद धुन भी है, पाँच शब्द भी है, सुषुम्ना नाड़ी के अंतर्गत राग भी है, अजपाजप भी है ।

किस किस शब्द का अर्थ बदला जायगा?  एक और प्रमाण दिया जाता है:-

बिन शब्दे अन्तर आन्हेरा, न वस्तु लहे न चूके फेरा। सतगुरुहत्थ कुंजी होर ते दर खुल्ले नाहीं,  गुरु पूरे भाग मिलावनियाँ।।                   

 अर्थ -बिना शब्द के प्रकाश के मनुष्य के अंतर में अंधेरा छाया रहता है ।अंधेरे में रहने से न सत्य वस्तु उसके हाथ लगती है ,न उसका जन्म मरण का चक्कर छूटता है। वह कुंजी जिसके द्वारा अंतर के कपाट खुलते हैं और शब्द प्रकट होता है, सतगुरु के हाथ में है और ऐसा गुरु पूरे भाग्य के उदय होने ही पर मिलता है।। 

                                             

  श्री ग्रंथसाहब के इस पवित्र वचन से सब उलझन खुल गई, सब कसर पूरे भाग्य के उदय न होने के कारण है। जीव बेचारा क्या करें ? ----

सच्चा गुरु मिलता नहीं,  अंतरी कपाट बंद है, अंधेरे में डोलता है,तत्तवस्तु हाथ लगती नही,व्यर्थ वस्तुओं  ही पर हाथ पड़ता है, जन्म मरण के चक्कर में व्याकुल है, करे तो क्या करें।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                           

 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी
 महाराज!**


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