Friday, June 26, 2020

संसार चक्र रोजाना वाक्यात प्रेमपत्र





 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】-

 कल से आगे:-

 इंदुमती - इस पर कितना खर्च होगा?

गोवर्धन -यह आप लोगों की इच्छा पर है- 10 -20- 50 -हजार जितना चाहो खर्च कर सकते हो।

  गरुडमुख-10,000 से कम क्या होगा?
दुलारेलाल -तो महाराज कल हम यह धर्म कमाया चाहते हैं।

  गोवर्धन- आप कुछ चिंता ना करें ,मैं सब प्रबंध करा दूंगा, पर हां - पंडित जी! आपको कुंड के किनारे जाने का कष्ट उठाना पड़ेगा।  इस शुभ कार्य के लिए आपसे बढ़कर दूसरा कोई अधिकारी नहीं है ! महाराज अपनी धर्मपत्नी का संकल्प आपको देंगे । आप ₹10000 लेकर इस्त्री वापस कर देना। क्यों महाराज ठीक है ना?

दुलारेलाल- हाँ ठीक है।

 गरुडमुख अब तुम्हारा कहा करना ही पड़ेगा । वैसे तो हम किसी का पैसा नहीं छूते  पर ये लोग इतनी दूर से आए हैं, श्रद्धावान है, किसी दुष्ट पंडे के हाथ पड़ गये तो न जाने बेचारों को क्या क्या कष्ट दें।

गोवर्धन- हाँ महाराज! मैं इतना और कह दूँ- ग्रहण का मेला यहां बड़ा भारी होता है। हजारों लाखों आदमी आते हैं, अच्छे बुरे सभी आते हैं। आप कृपा करके अपने रुपये,पैसे,जेवर,कपढे से चौकस रहना। ना हो तो यहां पंडित जी के पास जमा करा दो ।

दुलारेलाल-( शुबह में पड कर और कदरे तेज होकर इसकी तुम फिकर ना करो । हम भी क्षत्रिय हैं । तलवार हाथ में पकड़ लें तो 10 -5 को तो यों हीं  चित्त लिटा दें।

गरुडमुख- कल के लिए रुपये का बंदोबस्त तो है न?

दुलारेलाल- हम सोच कर जवाब देंगे।  अच्छा यह तो बताओ यहां कुरूक्षेत्र में कोई ज्ञानी पंडित भी है?

  गोवर्धन-(उचक कर) अजी तुम हरी का भजन करो, यहां तो सब लुटेरे ही बसते हैं।

 गरुडमुख- क्यों नहीं, थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त है और मेरा विचार तो सही है कि सिवाय दान पुण्य के बाकी सब ढोंग है दिया लिया ही संग चलता है, पढा गुना सब का सब यहीं धरा  रह जाता है ।

 दुलारेलाल-संसार के बारे में आपकी क्या राय है?

 गरुडमुख-- संसार संसार है , इसमें किसी की राय क्या हो सकती है?

 दुलारेलाल-यह सत्य है या मिथ्या?

गरुडमुख-जैसा मान लो। गोवर्धन-(चिल्लाकर)  धन्य हो पंडित जी ! जैसा मान लो संसार वैसा ही है । सत्य है, सत्य है। दुलारेलाल हमारे मानने से क्या होता है?  अगर हम किसी मनुष्य को गधा मान ले तो क्या वह गधा बन जाएगा?

।क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-रोजाना वाकिआत- 10 नवंबर 1932- बृहस्पतिवार:-


संसार चक्र की 200 कॉपियां छप कर आ गई है। जिन भाइयों ने छपाई में मदद दी उन्हे एक एक कॉपी नजर की गई । करीबन 1 माह के अंदर ड्रामा तहरीर भी हो गया, हिंदी में नकल भी हो गया और छप कर तैयार भी हो गया। सत्संगी भाइयों की कारगुजारी काबिले तारीफ है ।।                                                     
12:15 बजे पटना के लिए रवाना हुए। 1:00 बजे के बाद ट्रेन आई ।सफर शुरू हो गया । टूंडला  स्टेशन पर गाड़ी बदलनी पडी।वहाँ के सतसंगियों ने सब इंतजाम कर दिया।  इटावा स्टेशन पर बहुत से सतसंगी जमा थे,हार फूल और फल लाये। पाँच फल और एक गुलदस्ता रखकर बाकी सामान वापस कर दिया। करीब 6:00 बजे कानपुर आया । वहाँ भी सतसंगियों का मजमा मौजूद था।  वह लोग भी बहुत से फल लाये। उनमें से दो फल एक शख्स को दिये। इस पर सब के सब लोगों की नीयत हो गई कि उन्हे भी फल मिलें। यह हाल.देखकर सबके सब फल उनमें तक्सीम करने के लिये वापस दे दिये।

8:30 बजे फतेहपुर पहुंचे। वहां इलाहबाद के भाइयों की तरफ से खाने का बंदोबस्त था । कई दिन से तबीयत खाने की तरफ आकृष्ट न होती थी। रेल के सफर से सदा की तरह बड़ी भूख लगी इसलिए फतेहपुर के खाने की जिस्म ने बड़ी आदर की।  दो अदद पूरियाँ नजर हुई। जिस्म में थकान हो गया इसलिए सो जाने की कोशिश की लेकिन लौटने पर साँस में दिक्कत महसूस हुई ।

करीब 10:30 बजे इलाहाबाद स्टेशन आया। यहाँ भी सत्संगी भाई मौजूद थे। इलाहाबाद से गाड़ी रवाना होने पर नींद आ गई। मालूम हुआ कि इलाहाबाद से भी कुछ भाई आज पटना में शरीक होने का इरादा रखते हैं ।       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**





*परम गुरु हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-( 4 )


 असली तरक्की का खास निशान यह है कि अभ्यासी को भजन और ध्यान थोड़ा बहुत और सुख और आनंद आवे, यानी मन थोड़ा बहुत निश्चल होकर अभ्यास में लगे और शब्द पहले मुकाम का दिन दिन साफ और नजदीक सुनाई देने लगे और वक्त अभ्यास के मन और सुरत किसी कदर रसीले होकर शिथिल होते जावें कि इस तरफ की खबर और सुध ना रहे ।                                                           

 (5)  ऐसी हालत बगैर मन और सूरत के सिमटाव के , या थोड़ा बहुत ऊपर की तरफ चढने और शब्द या स्वरुप के मिलने के नहीं हो सकती है।  फिर जिस किसी की ऐसी हालत रोजमर्रा या कभी-कभी होती है, तो समझना चाहिए कि उसको राधास्वामी दयाल , जैसा जैसा उसकी चाल के माफिक मुनासिब समझते हैं तरक्की देते जाते हैं, यानी सिमटाव और चढ़ाई उसके मन और सुरत की करते जाते हैं।

और उसका नशा भी उसको अपनी दया से थोड़ा बहुत हजम कर आते जाते हैं नहीं तो इस कदर पाकर बहुतेरे अभ्यासी मस्त होकर घर बार और कारोबार छोड़ने को तैयार हो जाए। क्रमश:         

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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