Thursday, June 25, 2020

सतसंग के प्रसंग






**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-रोजाना वाकिआत-9 नवंबर 1932- बुधवार

:-       

सत्संग में नेक मिसाल कायम करने की गरज से आज फैसला किया गया कि दिसंबर माह के जलसे में तड़क-भड़क की सब बातें बंद कर दी जावें और सिर्फ परमार्थी प्रोग्राम रहने दिया जावे। चुनाँचे रोशनी, बाजा वगैरह सब स्थगित कर दिये गये। वजह यह है कि हमारी संगत अभी नई है । रस्म व रवाज सब नये है।

सत्संग में सेवा करने वालों की इज्जत का रवाज अभी दृढ नही हुआ है । यह रवाज दृढ होना बेहद जरूरी है।  इसलिए दिसंबर के जलसे के प्रोग्राम में काँट-छाँट की गई ताकि संगत को मालूम हो कि सत्संग की सेवा करने वालों के लिए मेरे दिल में कितनी श्रद्धा है ।

इन सब बातों की प्रेमी भाई भोलेनाथ को तो कोई खबर नहीं हो सकती और न इन बातों से उनकी रूह को कोई फायदा हो सकता है । इसके लिए यह बातें सिर्फ संगत के लाभ के लिए की जाती है।

सुबह 8:30 बजे अनेक भाइयों को जमा करके मशवरा लिया गया। सभों ने इस तजवीज से सहमति किया। कॉरेस्पॉन्डेंस के वक्त नये ड्रामा दीन व दुनिया से तीन सीन पढ़कर सुनाये।श्रोतागण ने पसंद किए। यह ड्रामा फिल्म लेने के लायक है।।                             
 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


संसार चक्र -नाटक /


*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

कल से आगे:-( दूसरा दृश्य)-

                 

 (पंडित गुरुडमुख का मकान- पंडित गुरुडमुख, राजा दुलारेलाल , रानी इंदुमती और गोवर्धन पंडित बैठे हैं।)                                               

5 गरुड़मुख - कहिये महाराज ! स्नान हो गये?  गोवर्धन -स्नान ध्यान दोनों हो गये, अब केवल आपके दर्शनों की इच्छा से आये हैं। बड़े उदारचित है।  दुलारेलाल -हाँ महाराज! आपकी कृपा से सब जरूरतों से फारिग हो चुके हैं!  अब एक प्रश्न पूछना चाहता हूं, आज्ञा हो तो पेश करूँ?

गोवर्धन- हमारे पंडित जी दान नहीं लेंगे, इसके संबंध में कोई प्रश्न ना करना।  दुलारेलाल - मैंने सुना है आपकी पाठशाला है, गौशाला है ,सदाव्रत है इन सब का खर्चा कैसे चलता है?  गरुडमुख -भगवान का ही सब कुछ है । वही चलाता है, उसी का यश है । मनुष्य मिट्टी का ढेर क्या कर सकता है?

दुलारे लाल हम कुछ रुपया दान किया चाहते हैं।  गरुडमुख- दान लेने वालों से कुरुक्षेत्र भरा है। जितना जी चाहे दान कर सकते हैं पर हम दान नहीं लेंगे।

गोवर्धन - कहो देखी हमारे पंडित जी की उदारता?  यह क्या हमारे पंडित जी दूध तक नहीं पीते, फल तक नहीं छूते और ब्रह्मचारियों, गोवों,भूखों और नंगो को माल खिलाते हैं। सुनो न?  तुम रुपया इन सेवाओं के लिए क्यों नहीं दे देते?  तुम्हारा भी मनोरथ पूरा हो जाय और भूखें नंगो और गौवों का भी पेट भर जाय?

इंदुमती -अच्छा हम सो रुपए पाठशाला के लिए, ₹100 सदाब्रत के लिए, और ₹100 गौशाला के लिए पेश करते हैं ।(पेश करती है) गोवर्धन- स्त्री का दिल पुरुष से बढ़कर दयावान है।

(दुलारेलाल से मुखातिब होकल) और महाराज आपकी क्या श्रद्धा है? (दुलारेलाल व रानी इंदुमती एक दूसरे के काम में) दुलारेलाल- क्या कहती हो? अब कुछ देना ही पड़ेगा, वैसे तो ₹300 काफी थे। इंदुमती-अच्छा तीन सौ और दे दो।

दुलारेलाल-(पंडित गरुडमुख से) महाराज! मैं भी तीन सौ रुपये इन सेवाओं के लिये पेश करता हूँ।

(पेश करते हैं। पंडित गरुडमुख छः सौ रुपया उठा लेते हैं।)

गोवर्धन -महाराज जी का विचार अपनी धर्मपत्नी दान करने का है, इसमें आपकी क्या आज्ञा है?

गरुडमुख- यह कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि है। यहाँ जो भी धर्म कर लो अच्छा है । अगले जन्म में अगर इकट्ठा रहा चाहते हो तो सिवाय इसके कोई साधन नहीं है कल सूर्य ग्रहण का दिन है, यह भी धर्म कमा लो।

 क्रमशः   

                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[6/25, 04:23] +91 97176 60451:

**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग-1-( 25 )-

【अभ्यास में तरक्की की परख और पहिचान और वर्णन उन संजमों का जिन से अभ्यास दुरुस्त बने】

: (१) बाजे सतसंगी ऐसा ख्याल करते हैं कि उनको किसी कदर अर्षा यानी दो चार वर्ष राधास्वामी मत में शामिल होकर थोड़ा-बहुत अभ्यास करते गुजर गये, पर उनको अभी कुछ अंतर में खुला नहीं या कुछ तरक्की अभ्यास की मालूम नहीं होती ।                         

 (2) जवाब इसका यह है कि यह ख्याल इन सतसंगियों का दुरुस्त नहीं है । उनको अपने हाल की परख नहीं है या वे अपनी पिछली और साल की हालत और तबीयत की जांच नहीं करते , क्योंकि जो कोई सच्चे मन और सच्चे शौक के साथ राधास्वामी मत में दाखिल  होकर प्रेम के साथ थोड़ा बहुत अभ्यास दो मर्तबा हर रोज सुरत शब्द मार्ग और सुमिरन और ध्यान का कर रहा है, तो मुमकिन नहीं कि वह राधास्वामी दयाल की दया से खाली रहे यानी उसको थोड़ा बहुत रस और आनंद भजन और ध्यान का न आवे।।                                                         

 (3) रोशनी और माया के चमत्कारों का नजर आना , यह भी एक किस्म के दया में दाखिल है और उससे किसी कदर तरक्की अभ्यास की पाई जाती है। पर अभ्यासी को मालूम होना चाहिए कि सफेद रोशनी का चांदनी के मुआफिक खिले हुए नजर आना, या पांच रंग की रोशनी जुदा-जुदा दिखलाई देना, या सूरज और चांद तारों का नजर आना तरक्की का निशान है , मगर जो मकानात या बागात या सूरतें मर्द और औरत की नूरानी नजर आवें,इनमें से ज्यादा मन लगाना या अटकना नहीं चाहिए न उनके बार बार नजर आने की ख्वास्हिश करनी चाहिए , क्योंकि यह कैफियत वक्त गुजरने अभ्यासी के मन और सुरत खास खास मुकामों से जरुर दिखलाई पडेगी और जल्द गायब हो जाएगी।

क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



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