Monday, November 9, 2020

दयालबाग़ सतसंग -09/11 शाम

 **राधास्वामी!! 09-11-2020-

 आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                 

  (1) अहो मेरे सतगुरु अहो मेरी जान। अहो मेरे प्यारे अहो मेरे प्रान।। गुनाहों से अपने मैं शरमिंदा हूँ। छिमा कर छिमा मैं तेरा बंदा हूँ।।-(मेहर माँगू फिर मेहर माँगू दयार। लेवो प्यारे राधास्वामी जल्दी उबार।।) (प्रेमबानी-4-मसनवी-3-पृ.सं.-20,21)                                            

 (2) सतगुरु प्यारे ने जगाई। मन में प्रीति नवीनी हो।।टेक।। सुन धुन स्रुत मन चढे अधर में। छूट गया मन त्रिकुटीनगर में। स्रुत राह घर की लीनी हो।।-(सतगुरु प्यारे के गून रही गाय। कज कियि जिन प्रीति जगाय। हुई उन चरनन रीनी हो।।)       (प्रेमबिलास-शब्द-85 , पृ.सं. 120)                                                    

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।       

                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



 आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे -(45) 

भाव यह है कि अनेक मतों की पुस्तकों से सिद्ध है कि महात्माओं के प्रसाद , चरणामृत और मुखामृत आदि का सदा से आदर-सम्मान होता रहा है जनता उनको बरत कर लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त करती रही है। युक्तियों को छोड़ कर यदि अनेक जातियों के आजकल की रस्म और रिवाज पर डाली जाय तो भी ऊपर के लेख की पूरे तौर पुष्टि हो जाती है ।

सनातन -धर्मी भाई बतलावें कि किसी साधु या ब्राह्मण को गुरु धारण करने पर वह किस विधान का पालन करते हैं? मथुरा और काशी के मंदिरों को और सिखों के गुरुद्वारों में सहस्त्रों रुपए की लागत से ठाकुर जी और गुरु साहब का भोग तैयार होता है। और ठाकुर जी के भक्त और सिक्ख भाई अत्यंत श्रद्धा और नम्रता से भूख लगने के पीछे प्रसाद लेकर खाते हैं ।और जगन्नाथ जी का हाल तो विचित्र ही है। लोग सैकड़ों पर खर्च करके जगन्नाथ जी के मंदिर में जाते हैं और जहान भर का जूठा भोजन प्रसन्नता पूर्वक अंगीकार करते हैं।  

यहूदीj, ईसाई और मुसलमान भाइयों से उनके तबर्कात  का हाल पूछिये। और तो और आर्य भाइयों को देखिये। जब किसी चमार अथवा भंगी को शुद्ध करते हैं तो उसके हाथ से सभा में उपस्थित लोगों ने प्रसाद बँटवाते हैं।                 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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