Sunday, November 15, 2020

दयालबाग़ शाम सतसंग 15/11

 **राधास्वामी!! 15-11-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-     


                              

(1) क्यों सोच करे मन मूरख। प्यारे राधास्वामी हैं रखवारे।।टेक।। जब जनमा तब दूध दियो तोहि। माता गोल पलाया। सर्ब भाँति तेरी रक्षा कीन्ही। चरनन मेल मिलाया।। रहा था फँस नौ द्वारे।।-(ले दूरबीन पुरुष से प्यारी। अलख अगम को चाली।। तिस पर राधास्वामी धाम अपारा। लख लख हुई निहाली।। सीस उन चरनन डारे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.27,28)                      

(2)सुरतिया बिनती करत रही। करो गुरु मेरा आज उधार।।टेक।। जग का रहना मोहि न भावेः दुखी रहूँ मन सँग बीमार।।-(जो कोई सरन में उनकी आवे। सहज होय वाहि जीव उबार।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-89,पृ.सं.125,126)                                                 

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।         

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



-आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे- ( 54)


प्रश्न- आपकी शिक्षा अल्लाह के नाम के सुमिरन या सुल्तानुल् अजकार के विषय में जो कुछ है, कुरानशरीफ उसका समर्थक है , पर गुरु के संबंध में यह विश्वास कि उसमें खुदा प्रकाशमान है इसलिए उसे सिजदा करना ऐसा ही है जैसा अल्लाह, को इस बात से कुरानशरीफ न सिर्फ इनकारी है बल्कि उसे सिर्फ ( अनकेश्वर-वाद या दुई ) ठहरता है । कुरानशरीफ रसूलल्लाह सल्लल्लाह अलेह व आलही व सल्लम को भी यह दर्जा नहीं देता कि आप सतगुरु को सिजदा करना कैसे धर्मानुकूल ठहराते हैं?                                     

उत्तर- जब आप खुदा को सिजदा करते हैं तो आपका सिर कहाँ होता है?  कभी घुटनों पर और कभी पृथ्वी पर। बहिर्मुखी लोग यह हाल देखकर कहा करते हैं कि आप अपने घुटनों या पृथ्वी को सिजदा कर रहे हैं। पर आप उन्हे यह कह कर चुप करा देते हैं कि 'बाहर को मत देखो ,अंतर को देखो।  सिर कहीं हो तवज्जुह तो खुदा के कदमों में है"।  यही शब्द हम आपके प्रश्न के उत्तर में उपस्थित करते हैं ।

आपकी और एक सत्संगी कार्यवाही में केवल इतना अंतर रहता है कि आप अपने घुटने पर सिर रखकर खुदा को सिजदा करते हैं और सत्संगी सतगुरु के घुटने पर। न मनुष्य शरीर को आप सिजदा करते हैं न वह ।दोनों का पूज्य पवित्र खुदा ही है। और सत्संगी के भावों के समर्थक मौलानाए रूमी है, जिनका वचन है :-

 मस्जिदे हस्त अन्दरूने औलिया। सिजदागाहे जुमला हस्त आँ जा खुदा। अर्थात्- औलिया के हृदय में एक मस्जिद है जिसमें खुदा निवास करता है, सब मनुष्यों को वही सिजदा करना चाहिए। पर यदि ओलियाओं के अंतर में कोई मस्जिद यानी सिजदा की जगह है तो क्या उनके पवित्र चरण उस मसजिद की चौखट न समझें जावेंगे? और क्या उन पर सिर रखकर सिजदा करना इस्लाम की शिक्षा के विरुद्ध समझा जाएगा ?               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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