Tuesday, November 3, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 3/11

 **राधास्वामी!! 03-11-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                

  (1) करूँ संतमत का मैं पूरा बयाँ। वही सत्त मत हैगा अंदर जहाँ।।-( उतर कर के वह धार ठहरी जहाँ। अगम लोक की हुई रचना वहाँ।। ) (प्रेमबानी-4-(भाग-2-मसनवी-१,पृ.सं14-15)                                                        

    (2) गुरू का नाम जपो प्यारी। रुप गुरु घट में सँभारी।।-( जाय परसे राधास्वामी चरना। सुरत होय मस्त और अति मगना।। (प्रेमबिलास-शब्द-82,पृ.सं.115-116)                                                       

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 03-11-2020-

 आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे

-( 37 )

 छांदोग्य उपनिषद एक प्रमाणिक धर्म पुस्तक है। और जब उसके रचयिता के, जो ऋषि माने जाते हैं, मत के अनुसार ब्रह्मदर्शी महात्माओं का जूठा भोजन चाण्डाल तक की आत्मा पर आध्यात्मिक प्रभाव डालता है ( ब्रह्मण आदि उच्च जाति और पवित्र रहनी -गहनी वाले मनुष्यों का तो कहना ही क्या) 

 तो फिर किसी साधारण हिंदू भाई के लिए कटाक्ष करने का कहाँ अवकाश रह जाता है ? उपनिषद के उपदेश के अनुसार वैश्वानर-रुपी आत्मा को उपासने वाला महात्मा देखने में तो भोजन करता है परंतु वास्तव में वह होम करता है। उसका गले से ग्रास उतारना अपनी जठराग्नि में आहुति देना है।

 और ,जैसा की श्रीमद्भागवतगीता अध्याय 4 ,श्लोक 31 में आया है- " जो लोग यज्ञ का उच्छिष्ट अर्थात बचा हुख प्रसाद खाते हैं सनातन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं", जो लोग ऐसे महात्मा का उच्छिष्ट ग्रहण करते है वे यज्ञ का प्रसाद ग्रहण करते है  और वह प्रसाल उनकी आत्मा में हवन होता है और इस प्रसाद में इतनी प्रबल स्वतंत्र रहती है कि चाण्डाल तक की आत्मा में प्रवेश कर जाती है, हालाँकि मंद कर्मो और मंद संस्कारों के कारण उसकी आत्मा पर असंख्य आवरण चढ़े रहते हैं l 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग-2 

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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