Monday, November 16, 2020

रोजाना वाक्यात और प्रेमपत्र

 *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-रोजाना वाक्यात- कल से आगे:-

 अनहद शब्द के अभ्यास की आपने तारीफ की है और अपने जाति तजुर्बे का भी हवाला दिया है मगर सब बयान हंस नाद उपनिषद के उपदेश ही तक सीमित है। मेरी राय में हिंदूओं का असली मजहब ब्रह्म के शुद्ध स्वरूप से वस्ल करना था । और यह गति तभी हासिल होती है जब इंसान मन व इंद्रियों पर फतह हासिल करके निर्जीव समाधि का साधन करें और सिलसिलेवार मंजिलें तय करके ईश्वर के विराट, हिरण्यगर्भ और अव्याकृत स्वरूपों का साक्षात करें।


 प्राचीन ऋषि यह गति ओम यानी प्रणव के साधन की मार्फत हासिल करते थे . महज ख्याली या कियासी घोड़े दौड़ाने से यह गति किसी को प्राप्त नहीं हो सकती।।                                                     

रात के सत्संग में प्रेम के मुतअल्लिक़क बातचीत हुई ।लफ्ज़ प्रेम कई मानों में प्रयुक्त होता है। लोग आमतौर से तड़प के मानी में इस्तेमाल करते हैं । मगर तडप की हालत में तबीयत में बेकरारी यानी अशांति रहती है। दरअसल यह हालत बिरह की है। लेकिन यह भी अपना खास आनंद रखती है। इसलिये बहुत से भगत जन इसी की माँग माँगते हैं। प्रेम की असली कैफियत सुरत का काफी सिमटाव हो जाने पर शुरू होती है।  और जिस भगत जन को फिक्र यानी ध्यान के साधन में निपुणता हासिल है उसका खूब लुत्फ उठाता है। 

हमारा जिस्म मिस्ल एक नई खन वाले मकान के हैं। इस मकान के हर खन की कैफियत अलग-अलग है। जागृत अवस्था में हमारा जीवात्मा इस मकान के अंतःकरण नामी खन में बैठकर बिलास करता है। यह मकाम ख्वाहिश यानी इच्छा का है। जहाँ इच्छा का निवास है वहां चिंता और बेकरारी भी मौजूद रहती है। इसलिए बेकरारी की हालत असली प्रेम की मंजिल के मुकाबले छोटा दर्जा रखती है।।                 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे -(12) 

ऐसी हालत के पैदा करने और काल अंग की ताकत दिखाने में यह मौज है कि अभ्यासी को मालूम हो जावे की काल और उसके दूत किस कदर बलवान है और राधास्वामी दयाल की दया से किस जुगत से उनके बल और ताकत को छुड़वा कर यदि ला करके अपने सच्चे प्रेमियों की चाल बढ़ाते जाते हैं और सफाई मन और सुरत की करा कर ऊँचे देश के बास के लायक, उनकी गढत करा कर बनाते जाते हैं।। 

                                                            

(13)  जो कोई सतगुरु स्वरूप को अगुआ करके चलेगा उसको इस किस्म के विघ्न बहुत कम पेश आवेंगे फिर भी काल और माया थोड़ा बहुत अपना बल और जोर  दिखावेंगे और उस अभ्यासी से आप भी डरते रहेंगे। फिर राधास्वामी दयाल की दया से सब विघ्न आसानी से कटते और दूर होते जावेंगे और एक दिन रफ्ता रफ्ता वह अभ्यासी इनको जीत कर अपने निज देश में पहुंच जावेगा।

 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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