Tuesday, November 17, 2020

शरण आश्रम का सपूत - नाटक

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 शरण आश्रम का सपूत】

कल से आगे:-[ चौथा दृश्य]-

( सुबह का वक्त है। शरण आश्रम के बच्चे ( 8 लड़के 8 लड़कियांँ) मुँह हाथ धो कर जमीन पर कतार में बैठे हैं और यह शब्द गाते हैं)        

●●● गाना●●●       

                  

हे दयाल सदकृपाल, हम जीवन आधारे। सप्रेम प्रीति और भक्तिरीती, बन्दें चरन तुम्हारे ।।१।।    

                                     

   दीन अजान इक चहें दान, दीजे दया बिचारे। कृपादृष्टि निज मेंहरवृष्टि, सब पर करो पियारे।।२।।                                                 

 

  ( इसके बाद 1 मेज के गिर्द कुर्सियों पर बैठ जाते हैं और अपना अपना प्याला दूध का पीते हैं । इतने में वार्डन साहब मय अहलिया के दाखिल होते हैं । सब बच्चे ताजीम देते हैं और बैठ जाते हैं)                                    

वार्डन साहब- क्या सबको दूध मिल गया?

 बच्चे- जी हाँ।

 वार्डन साहब- ज्यादा गरम तो नहीं है? 

बच्चे-(मुस्कुराकर) जी नहीं।

 वार्डन साहब- मीठा ठीक है ?

बच्चे -ठीक है।             

  ( इतने में एक चपरासी कागज लाकर वार्डन को देता है। वार्डन पढता है और उदास हो जाता है)

 एक लड़की- वार्डन साहब! अभी तक हमें दौड़ लगाने के लिये फील्ड नहीं मिला है। हम बड़े दिनों में इंस्टीट्यूट के विद्यार्थियों से दौड़ में मुकाबला करेंगे।

 वार्डन-( लड़की की पीठ पर प्यार से हाथ रख कर)  फील्ड के लिये जमीन तो मिल गई है लेकिन उसे हमवार कराना है। उसके लिए कल रुपया भी मंजूर हो गया है। दस दिन तक फील्ड तैयार हो जावेगा। क्या तुम लंबी दौड़ लगा सकती हो? 

लड़की- अपने घर में हम खूब दौड़ा करते थे। मैं गांव की सब लडकियों से आगे निकल जाती थी।।

   वार्डन- खूब -यहाँ निकल कर दिखलाओ तब जानें।

लड़की-(नीची गर्दन करके) अगर मौज हुई तो ।

एक लड़का-वार्डन साहब! आप यह कागज पढ़ कर उदास क्यों हो गये थे ?

वार्डन-कोई ऐसी बात है -दो दुखिया बच्चों की बाबत चिट्ठी है।                      

दूसरा लडका-क्या वे शरण-आश्रम में आ रहे हैं ?

वार्डन - वे आना तो चाहते हैं लेकिन वे सतसंगियों की औलाद नहीं है।  हमारे कवायद की रु से वे यहाँ भर्ती नहीं हो सकते- लेकिन वे बड़े दुःख में है। उनकी हालत काबिले रहम हैं -इसी से मेरा दिल भर आया था।

क्रमशः 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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