Friday, November 20, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत- 4 मार्च 1933- शनिवार-


K टेनरी के लिए आज कुछ मशीनें खरीदी गई। अब दया से जल्द ही सबके इंतजामात पूर्ण हो जायेंगे । सभा ने टेंनरी के लिए डेढ़ लाख रुपए कर्ज लेना मंजूर किया था। एक हफ्ते के अंदर ही कुल रकम आ गई। जाहिरन आसार अच्छे मालूम होते है।                                                   रात के सत्संग में दो जैनी साधू और एक साध्वी शरीक हुए। एक साहब अपने समूह में बडे प्रसिद्ध है। अपने गच्छ के प्रधान साधु है। दूसरा साधू उनका शिष्य है। दोनों अच्छे विद्वान हैं ।दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि जैन धर्म में पंच महाव्रतो की बड़ी महिमा है । वह पंच महाव्रत हिंदू धर्म के पंच यमों के समान है। उन्होने बतलाया कि जैन दर्शन हर आप्त बचन को श्रद्धा की दृष्टि से देखने के लिए तैयार हैं चाहे वह इंजील हो या हिंदू धर्म शास्त्र हों।  मैंने कहा किसी बचन को आप्त  बचन तस्लीम करने से पहले यह निश्चय करना होगा आया इस बचन का कहने वाला आप्त बचन कहने का अधिकार भी रखता है या नहीं।  और जो व्यक्ति अब जिंदा नहीं है उनकी परीक्षा कोई कैसे करेगा । ऐसी सूरत में इंसान यह कर सकता है कि जिन बातों को उसके दिल ने सत्य या आप्त मान रखा है उनसे उसका मिलान करें अगर वह उनसे मिलान खा जावे तो उसे सत्य मान लें । लेकिन इस सूरत में वह उस बचन को आप्त बचन नहीं मानता है। वह आप्त बचन का आसरा लेकर उसे सत्य मानता है। इसलिए किसी का यह कहना कि वह हर धर्म की पुस्तकों के आप्त बचन मानने के लिए तैयार है,  मिथ्या बचन है।  इंसान सिर्फ उन्हीं बचनों को बतौर आप्त बचन मान सकता है जिनके कथन करने वाले को वह आप्त वचन कहने का अधिकारी तस्लीम करता है। इनके अलावा और बहुत सी धर्म संबंधी बातें होती रहीं। उन्होंने रात को दयालबाग में ठहरना मंजूर किया है। कल उनसे जैन धर्म का उपदेश सुनने का इरादा है ।                               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【शरण आश्रम का सपूत】 कल से आगे - दूसरा अंक- पहला दृश्य :- (राय विरोधचंद मय बीवी के अपने मकान में बैठे हैं । नौकर दरवाजे पर खड़ा है । इतने में उनका लड़का दाखिल होता है)  बीवी -लल्लू ! इतनी देर कहाँ रहे । लड़का - घूमते फिरते पोइया घाट की तरफ चला गया था।  बीवी- तुम उधर काहे को गये। तुम्हें मालूम नहीं कि उधर हमारे दुश्मन बसते हैं । लड़का- वैसे ही चला गया था।  रास्ते में शरण-आश्रम के फाटक पर बड़ा शोर मच रहा था।  मैं वहीं ठहर गया था- आगे नहीं गया । बीवी कैसा शोर मच रहा था?  लड़का - एक औरत चिल्लाती थी और कहती थी मेरे दो बच्चे आश्रम वालों ने छीन लिये हैं।  विरोधचंद - अरे जग्गू ! देखना क्या मामला है।  जल्दी खबर लाना।( नौकर जाता है ) बीवी - इन दयालबाग वालों का कभी नाश भी होगा ? विरोधचंद- इनका बेड़ा भरकर डूबेगा । ये लोग फैल कर नाश होंगे- नहीं तो अब तक नाश हो गये होते। बीवी- पहले स्कूल खोला , फिर कॉलेज खोला , फिर कारखाना खोला , फिर आश्रम खोला।  सारी दुनिया ही को पेट में डालना चाहते हैं । जहाँ देखो इन्हीं का चर्चा है।  हम लोग इतने बड़े हैं लेकिन इनसे आधी भी पूछ परतीत नहीं है।  विरोधचंद- घबराती क्यों हो- जिसका आदि है अंत भी है । चिउँटियों के पर निकल रहे हैं । (नौकर वापिस आता है) नौकर- हुजूर बड़ा गजब है- ये लोग एक जमींदारिन के लड़का व लड़की को भगा लाये है। बच्चों की माँ रोती चिल्लाती है मगर कोई नहीं सुनता।  विरोधचंद-भला! (बीवी से) लो तुम्हारी पुकार सुनी गई- अब ये लोग ठिकाने लग जायँगे । जरा इन्हे भी दिखा दूँ कि राय साहब में कितनी ताकत है । देखो जग्गू! तुम फिर जाओ और उस जमींदारिन को लिवा लावों। कुछ माँगे तो दे देना- हाथ से जाने न पाये। तू कहना कि राय साहब तेरी मदद करेंगे - उनसे चलकर हाल अर्ज कर।(नौकर भागता हुआ जाता है और भोंडी को लेकर वापिस आता है) क्रमशः                                  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-( 4) सरन वाले जीव अपने मन और इंद्रियों की रोक टोक भी बहुत नहीं करते और दुनियाँ और उसके कारोबार और भोग विलास के बर्ताव में सिर्फ मामूली तौर पर होशियारी करते हैं। पर अपनी प्रीति और प्रतीति को राधास्वामी दयाल के चरणों में और उनके सत्संग में भी जिस कदर बने बढ़ाते रहते हैं। और राधास्वामी दयाल की दया का हाल सुनकर और थोड़ी बहुत अपने अंतर और बाहर की कार्यवाही में उसकी परख करके सरन को मजबूत और पक्का करते रहते हैं।।                                        (5) हुजूर राधास्वामी दयाल को सब जीवों की सँभाल हर तरह से मंजूर है । जो करनी वाले जीव है वे उनके होशियार बालक हैं और सरन वाले उनके छोटे बच्चे हैं । वे इन दोनों की मदद करते हैं, बल्कि छोटे बच्चों की, जो अपनी करनी का बल छोड़कर पूरी तरह से उनकी दया के आसरे है , ज्यादा सँभाल फरमाते हैं । क्रमशः।                                      🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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