Sunday, November 29, 2020

आत्म p

 सृजन के क्षणों में मेरा मन बेहद आवेगपूर्ण होता है।


-भारत यायावर

 परिचय 

(परिचय 


जन्म -ः 29 नवम्बर, 1954

शिक्षा -ः एम.ए. पीएच.डी.

सम्प्रति -ः विनोवा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग में प्राध्यापन।

कविता-संग्रहः एक ही परिवेश (1979), झेलते हुए (1980) मैं हूँ, यहाँ हूँ (1983), बेचैनी (1990) एवं हाल-बेहाल(2004) कविता-संग्रह वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित। 

तुम धरती का नमक हो (2015), कविता फिर भी मुस्कुराएगी (2019) आगामी प्रकाश्य " रचना है निरंतर " नामक कविता-संग्रह 

 ग़द्य की कई पुस्तकें प्रकाशित। अनेक संपादित पुस्तकें प्रकाशित। रेणु रचनावली एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली का संपादन। अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त।"नामवर होने का अर्थ " नामवर सिंह की जीवनी (2012 ) सम्प्रति फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी लिखने में लगा हुआ हूँ ।

 स्थाई पताः यशवंतनगर

 (मार्खम कॉलेज के पास)

 हजारी बाग-825301

 (झारखण्ड)

मोबाइल नंबर : 6204 130 608 / 6207 264 847

ईमेल : bharatyayawar@gmail.com )


मैं एक कवि होने के नाते सम्पूर्ण कला पर बात न कहकर कविता के विषय में कहना चाहता हूँ। कविता का सम्बन्ध कवि के जीवनानुभव, उसकी मनोरचना, उसके चिन्तन और उसकी जीवन-दृष्टि के समवेत स्वरूप से होता है। कवि की जीवन-यात्रा के आत्मपरक एवं वस्तुपरक पहलू होते हैं । किन्तु वही महान् कविता होती है जिसमें भावाकुल अंतस हो, वैचारिक उद्वेलन हो, लालित्य हो, सौंदर्य का उद्घाटन हो, बदल देने वाली दृष्टि हो तथा प्रेरणा का तत्त्व हो।


 रचनाकार एक सामान्य मनुष्य की तरह ही होता हैं और उसमें  रचनात्मकता के क्षण कभी-कभार ही प्रकट होते हैं। रचना जब मन पर सवार होती है, तब वह बेहद आकुल-व्याकुल हो जाता है और अभिव्यक्ति जब तक प्रकट नहीं हो जाती, बैचेन रहता है। यही अभिव्यक्ति उसे साधारण जीवन से असाधारण की ओर ले जाती है।


 हर कवि की रचना-प्रक्रिया अलग होती है। यह भी कहा जा सकता है कि रचना-प्रक्रिया रहस्यमय होती है। इसीलिए उसे पारिभाषित नहीं किया जा सकता।


 सृजन के क्षणों में मेरा मन बेहद आवेग पूर्ण होता है। लिखने की मनःस्थिति अपने-आप उत्पन्न हो जाती है। इसके लिए अर्थात कविता लिखने के लिए मैं कोई मशक्कत नहीं करता। वह सहज रूप में पहले मेरे मन में अवतरित होती है, तत्पश्चात-वह उसी रूप में लिख जाती है।


 सृजन के क्षण में चित्त एकाग्र तो होता ही है, किन्तु उसे समाधि नहीं कहा जा सकता । यह क्षण जागृत चेतना का होता है।


 कविता का निर्माण जब होता है तब उसमें स्वाभाविक रूप से उसके बहुत सारे तत्त्व आ जाते है। और कुछ आने से रह जाते हैं। कविता में जोर- जबर्दस्ती से ठूंसे हुए बिम्ब, प्रतीक, मिथक आदि उसे कमजोर बनाते हैं।


 मेरी कविताएं मूलतः दो तरह की है-आत्मपरक और वस्तुपरक। आत्मपरक कविताओं का सम्बन्ध मेरे अपने जीवन और अनेक- प्रकार की भाव-स्थितियों से है। वस्तुपरक कविताओं का सम्बन्ध मनुष्य, समाज या बाहरी दुनिया से है।


 काव्य-रचना में प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। प्रेरणा ही हमें जगाती हैं, गतिशील बनाती हैं और सृजन-पथ पर आगे ले जाती है।


 कल्पना के बगैर किसी भी प्रकार का सृजन-कर्म मुश्किल है। कविता में कल्पना के कारण ही अप्रस्तुत विधान होता है एवं नए-नए बिम्बों के निर्माण में भी उसकी अहम् भूमिका होती है ।


 कविता के सृजन में आवेग होने से कविता लययुक्त और ताकतवर बनती है। किन्तु बहुत सारी वैचारिक या व्यंग्यपरक कविताओं में आवेगपूर्ण प्रक्रिया के बगैर भी सृजन होता है।


 कविता के सृजन में प्रतिभा  और अभ्यास दोनों का महत्त्व होता है। ये दोनों बातें कविता की रचना प्रक्रिया को सार्थक और महत्त्वपूर्ण बनाती हैं ।


 सृजन के दौरान एक तनाव की स्थिति तो होती ही है, जो आम भाषा से रचनात्मक भाषा को अलग और अनूठी बनाती है।


 दुनिया के जितने भी कवि हैं, उनकी पहचान एक अलग कवि-व्यक्तित्त्व के रूप है। हर कवि अपने सृजन का एक नया और अलग अंदाज अपनाता है और यही उसके कवि-व्यक्तित्त्व का निर्माण करता है।


 कविता प्रायः सायास नहीं लिखी जाती, किन्तु गद्य-लेखन प्रायः वैचारिक होता है, इसीलिए कविता कब लिखी जाएगी, कुछ तय नहीं होता, लेकिन गद्य तो प्रतिदिन लिखा जा सकता है।

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