Friday, November 20, 2020

सतसंग के उपदेश भाग-3

 सतसंग के उपदेश /  (परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)

बचन (119)


            अगर इन्सान अपने तईं सँभाल ले तो उसे यह गति हासिल हो सकती है कि हर मुश्किल मौक़े पर मालिक की जानिब से मदद व रोशनी मिले जिसकी मदद से वह भवसागर में ऐसे तैर सकता है जैसे लकड़ी के संग जुड़ा हुआ लोहा। लेकिन मुश्किल यह है कि अव्वल तो इन्सान अपने तईं बड़ा चतुर समझता है और सख़्त मुश्किल सिर पर आये बग़ैर मालिक की मदद की परवा ही नहीं करता और दोयम् अगर कोई शख़्स परवा भी करता है तो सहूलियत मिलने पर लोभ या काम के बस हो कर ऐसा गिर जाता है कि उसका अन्तरी तार टूट जाता है। मालिक से अन्तरी सम्बन्ध क़ायम रखने के लिये हमेशा चौकन्ना रहने की सख़्त ज़रूरत है। यह दुरुस्त है कि साधारण लोगों में न इस क़दर एहतियात का माद्दा है और न ही मालिक के साथ अन्तरी सम्बन्ध क़ायम करने की क़ाबिलियत है। लेकिन उनके हासिल करने और एहतियात से बरतने की आदत डालने के लिये कोशिश तो हर कोई कर सकता है। करते करते सभी काम सफल हो जाते हैं। इसके अलावा याद रखना चाहिये कि जो साधन सतसंगियों को बतलाये गये हैं उनकी कमाई से मुनासिब क़ाबिलियत भी पैदा हो जाती है और एहतियात से बर्तने का शऊर भी आ जाता है।

राधास्वामी

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