Tuesday, November 10, 2020

मोह और ममता

 मोह और ममता में क्या अंतर है।


राम राम जी, 

मोह और ममता में अंतर आसक्ति के (आकर्षण) विषय के आधार पर किया जाता है। 


🙏

मोह- जब किसि व्यक्ति की आसक्ति किसी भौतिक वस्तु, साधन, प्रतितात्मक विषय के प्रति होता है तो वो मोहगत भाव है। इसको हम किसी भी निर्जीव वस्तु या नश्वर विषयवस्तु प्रति आकर्षण को भी मोह कह सकते है या ये कहे कि जब व्यक्ति साधन विशेष को (जो वस्तु किसी साध्य या लक्ष्य को पाने के लिए प्रयोग की जाती है) महत्व देने लगे या उसमें ही आकर्षित होने लगें तो मोह में ग्रस्त है। मोहगत व्यक्ति अपने अंदर वास्तविक आनन्द को आनन्द न समझ कर, बाहरी वस्तुओं को ही आनन्द समझने लग जाता है। मोह लेना व इकठ्ठा करना सिखाता है। मोह के वसीभूत व्यक्ति, किसी भी वस्तु या प्रतीक को ही अपने जीवन का आधार बना लेता है, उस वस्तु को अपनी लत बना लेता है, और इसी लत या आसक्ति की वजह से, उस वस्तु या प्रतीक की कमी या न होने की स्तिथि में शोकग्रस्त होकर शारीरिक व मानसिक बल से टूटकर अशान्त व उदास होने लगता है। कोई भी व्यक्ति मोहगत वस्तुओं के बिना भी खुशी व आनन्द में रह सकता है।


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ममता- जब किसी व्यक्ति की आसक्ति किसी साध्य, जीव, प्राणी या शाश्वत चीज के प्रति है तब वह ममता भाव है। सांसारिक ममता भाव, किसी जीवित या प्राणमय जीव के प्रति होता है। यह ममता किसी जीव, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, पुरूष-औरत से भी हो सकती है। सांसारिक ममता भी एक आसक्ति ही है, यही आसक्ति ही माया है। यह ममता वास्तव में भक्ति व प्रेम की पहली सीढ़ी है, मगर जब यही ममता विकसित होती है तब भक्तिमय बन कर ज्ञान व वैराग्य को जन्म देकर मोक्ष का कारण भी बनती है। यही ममता देना व लुटाना सिखाती है। ममता जब नश्वर विषय से उठकर शाश्वर सत्ता विषय की तरह बढ़ती है तब भौतिक मोह व शोक को खत्म कर सामने वाले में एक हो जाती है। तभी "वसुधैव कुटुम्बकम्" और "एकोहं बहुस्याम" जैसे उपनिषदीय महावाक्यों को उद्घोष होता है।


बस यही अंतर है मोह और ममता में, इसलिए मोह को वश में करके, ममता (प्रेम) के प्रसार पर बल दिया गया है।


#मोह_और_ममता_में_अंतर


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ॐ तत्सत.............

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