Tuesday, November 10, 2020

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

 श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग शिव पुराण में वर्णित कथा। 

हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है। 


तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।

जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।

दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।

केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।।


भगवान विष्णु के नर और नारायण नामक दो अवतार हुए हैं। नर और नारायण इन दोनों ने पवित्र हिमालय के बदरिकाश्रम में बड़ी तपस्या की थी। उन्होंने पार्थिव (मिट्टी) का शिवलिंग बनाकर श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उसमें विराजने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। पार्थिव लिंग में शिव के विद्यमान होने पर दोनों (नर व नारायण) ने शास्त्र-विधि से उनकी पूजा-अर्चना की। प्रतिदिन निरन्तर शिव का पार्थिव-पूजन करना और उनके ही ध्यान में मग्न रहना उन तपस्वियों की संयमित दिनचर्या थी। बहुत दिनों के बाद उनकी आराधना से सन्तुष्ट परमेश्वर शंकर भगवान ने कहा कि मैं तुम दोनों पर बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए तुम लोग मुझसे वर माँगो। भगवान शंकर की बात सुनकर प्रसन्न नर और नारायण ने जनकल्याण की भावना से कहा- 'देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं और हमें वर देना चाहते हैं, तो आप अपने स्वरूप से पूजा स्वीकार करने हेतु सर्वदा के लिए यहीं स्थित हो जाइए।'


जगत का कल्याण करने वाले भगवान शंकर उन दोनों तपस्वी-बन्धुओं के अनुरोध को स्वीकारते हुए हिमालय के केदारतीर्थ में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गये। उन दोनों अनन्य भक्तों से पूजित हो सम्पूर्ण भय और दु:ख का नाश करने हेतु तथा अपने भक्तों को दर्शन देने की इच्छा से केदारेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव वहाँ सदा ही विद्यमान रहते हैं। भगवान केदारनाथ दर्शन-पूजन करने वाले को सुख-शान्ति प्रदान करते हैं। नर-नारायण की तपस्या के आधार पर विराजने वाले केदारेश्वर की जिसने भी भक्तिभाव से पूजा की, उसे स्वप्न में भी दु:ख और कष्ट के दर्शन नहीं हुए। शिव का प्रिय भक्त केदारलिंग के समीप शिव का स्वरूप अंकित[2] कड़ा चढ़ाता है, वह उस वलय से सुशोभित भगवान शिव का दर्शन करके इस भवसागर से पार हो जाता है अर्थात वह जीवनमुक्त हो जाता है।

जो मनुष्य बदरीवन की यात्रा करके नर तथा नारायण और केदारेश्वर शिव के स्वरूप का दर्शन करता है, नि:सन्देह वह मोक्ष पद का भागी बन जाता है। ऐसा मनुष्य जो केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में भक्ति-भावना रखता है और उनके दर्शन के लिए अपने स्थान से प्रस्थान करता है, किन्तु रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है, तो समझना चाहिए कि निश्चित ही उस मनुष्य की मुक्ति हो गई। शिव पुराण का यह भी अभिमत है कि केदारतीर्थ में पहुँचकर, वहाँ केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर जो मनुष्य वहाँ का जल पी लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह भक्ति-भाव पूर्वक भगवान नर-नारायण और केदारेश्वर शिवलिंग की पूजा-अर्चना करे। श्री शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता में इसी बात को निम्नलिखित प्रकार कहा गया है-


केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।

तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।

तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।

तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।

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महिमा व इतिहास


केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।

इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। १८८२ के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये। केदारनाथ मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले मे है 


अन्य कथानक भी प्रचलित है ।

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