Friday, November 13, 2020

प्रेम पत्र 13/11

 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-

कल से आगे:-

(9)


 अब समझना चाहिये कि हालत मन के खिलने और भिचने की सब अभ्यासियों पर दौरा के तौर पर आती रहती है । और यह भी दया का निशान है कि जब भजन और ध्यान मे बराबल रस मिलता जाता है तब मन मगन रहता है और जब रस में कुछ कमी हो जाती है या दुरुस्ती के साथ अभ्यास नहीं बन पडता है, या किसी किस्म की तरंगे उनके मन में पैदा होती है जो जाहिर विघ्नकारक है, तब मन में एक किस्म की बेकली और तड़प पैदा होती है, और वास्ते प्राप्ति दिया कि वह अभ्यासी बिनती और प्रार्थना करता है ।

फिर थोड़ा बहुत रस मिलना शुरू हो जाता है । इसमें यह फायदा है कि अभ्यासी के चित्त में हमेशा दीनता बनी रहती है और अपने हाल और मन की चाल को देखकर अपने अंतर में शरमाता और झुरता रहता है और अहंकार अपनी बड़ाई और अभ्यास की तरक्की का उसके मन में नहीं आता और बिरह वास्ते प्राप्ति ज्यादा रस और आनंद के जागती रहती है।

इसी से तरक्की अभ्यास की होती रहती है और एकसी हालत रही आवे तो मन अंतर में मदद हो कर जिस.दर्जे तक कि पहुँचा है वहीं रहा आवेगा और आगे को चाल नहीं चलेगी यानी तरक्की नहीं होगी।

क्रमशः            

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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