Thursday, November 12, 2020

दयालबाग़ सतसंग

 **राधास्वामी! 12-11-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                

(1) आज गरज गरज घन गरजे। मेरा जियरा सुन सुन लDayalbaghरजे।।टेक।। श्याम घटा रही छाय। अमी धार की बरषा लाई।। दामिन की दमक सुहाई। मेरा पिया बिन मनुआँ तरसे।।-(वहाँ से भी चली अगाडी। सतपुर सतरुप निहारी।। गइ अलख अगम के पारी। राधास्वामी दरश पाय हरषे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-3,पृ.सं.23,24)                                             

(2) सुरतिया झुरत रही मन माहिं, प्रेम की घट में देख कसर।।टेक।। जुल्मी जुल्म चलावें अपना। फाँसे मोहि कर जाल मकर।।-(प्रेम का किनका बख्शिश दीजे। दर्दी की बँधवाओ कमर।।) (प्रेमबिलास-शब्द-87,पृ.सं.123,124)                                                         

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।         

स्पेशल सतसंग:-●●●●                                    

  (1) देखत रही री दरस गुरु पूरे। चाखत रही री प्रेम रस मूरे।।-( सुरत चढाय गई सतनामा। पहुँची राधास्वामी चरन हजूरे।।)(सारबचन-पृ.सं.83,84। शब्द-6)                                                        

(2) कोई कदर न जाने। सतगुरु परम दयाल री।।टेक।। देह धरें जिव भार उठावें। काटें जम का जाल री।।-(राधास्वामी सतगुरु मोहि अस भेंटे। हो गई मैं खुशहाल री।।) (प्रेमबिलास-शब्द-39,पृ.सं.52)                                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:


-(51) यह भली प्रकार विदित हो चुका है कि संतमत में प्रसाद, चरणामृत आदि की प्रथा आध्यात्मिक सिद्धांत के आधार पर प्रचलित हुई। प्रेमीजन आत्मदर्शन के लिए तड़पता हुआ सच्चे सतगुरु की खोज करता है और मिल जाने पर उनकी परख पहचान करता है।

 और पहचान आने पर अपने तन मन धन उनके चरणों पर निछावर करता है। और उनके चरणों से निर्मल आध्यात्मिक प्रेम का संबंध जोड़कर दूई का पर्दा दूर करता है। इधर गुरु महाराज, जिनको अपने तन और मन पर पूरी विजय प्राप्त है, जिनकी सुरत प्रबुद्ध है और जिनके अंतर में सच्चे कुलमालिक की चेतन धार हर वक्त जारी है और जिनकी संसार में स्थिति केवल आत्मदर्शन के लिए तड़पते हुए जीवो को सहारा देने के लिए है, उसके भक्ति-अंग को स्वीकार करके उसकी सोई हुई tt5आध्यात्मिक शक्तियाँ जगाने में सहायता फरमाते हैं और धीरे-धीरे उसे अपने समान निर्मल और चेतन बनाकर अमर और अविनाशी गति दिलाते हैं। जहाँ व्यवहार सच्चे और निर्मल प्रेम का हो वहाँ निकृष्ट विषय वासनाओं का भ्रम चित्त में लाना और सच्चे साधुओ और प्रेमीजनों के इस निर्मल व्यवहार में अपने जीवन के से दोष देखना परले दर्जे की मूर्खता और नीचता है।                                 

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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