Saturday, November 21, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम / 21/11

 **राधास्वामी!! 21-11-2020-

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-     

                             

 (1) सुन री सखी मेरे प्यारे राधास्वामी। मोहि मेहर से अँगवा लगाय रहे री।।टेक।। सतसँग कर बाढा बीश्वासा। गहरी प्रीति जगाय रहे री।।-(राधस्वामी धाम गई स्रुत सज के। निज महल में संग खिलाय रहे री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.33)                                                       

   (2) मेरे प्यारे बहिन और भाई। क्यों आपस में तुम झगडो। रलमिल कर सतसँग करना।।टेक।। सोच करो तो अपनै मन में। क्यों आये थे राधास्वामी मत में।गहु सतगुरु सरना।।-( खोजत खोजत सतसँग पाया। निज घर का तुम्हे भेद सूहाया। और छूटन का जतना।।) (प्रेमबिलास-शब्द-92-पृ.सं.132,133)                                                 

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                        

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!      

                             

  आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 62)

पुस्तक सारबचन छंदबंद के बचन 13 के पहले शब्द में पूर्वोक्त कड़ी 'तन की सेवा' के प्रकरण में आई  है। इस शब्द की पहली चार कड़ियों में पूरे गुरु की पहचान वर्णन करके परमार्थी की पहचान के प्रकरण में लिखा है:-       

【पहचान परमार्थी की】            

  ★★सोरठा★★                                  

अनुरागी जो जीव, तिन प्रति अब ऐसी कहूँ। सुनो कान दे चीत, बचन कहूँ  विस्तार कर।।५।।                                                                 

विषयन से जो होय उदासा। परमारथ की जा मन आसा।।६।।                                         

धन संतान प्रीत नहिं जाके। जगत पदारथ चाह न ताके।।७।।                                   

तन इन्द्री आसक्त न होई । नींद भूख आलस जिन खोई।।८।।                                    

 बिरहबान जिन हिरदे लागा। खोजत फिरे साध गुरु जागा।।९।।                                     

  साध फकीर मिले जो कोई । सेवा करें करें दिलजोई।।१०।।                                          

अर्थ:-जो अनुरागी अर्थात् मालिक के दर्शन के अभिलाषी जीव हैं उनके निमित्त अर्थात् उनके हितार्थ निम्नलिखित बातें वर्णन की जाती हैं।  आप कान देकर सुनें।  विस्तारपूर्वक बचन कहा जाता है।

सच्चा प्रमार्थी वह है जिसको संसार के भोग फीके मालूम हों और जिसके मन में परमार्थ के लिए गहरा प्रेम हो । जिसके हृदय से धन और संतान की प्रीति दूर हो गई है और जिसके हृदय में संसारी ऐश्वर्य की इच्छा नहीं रही है। जो अपने शरीर और इंद्रियों पर विजय पाय हुए हैं और नींद, भूख और आलस्य को वश में किये हैं।

जिसके हृदय में सच्चे गुरु के दर्शन की बिरह अर्थात तड़प का तीर लगा है। और जो इस तडप के कारण जागृत रह कर साध और गुरु की खोज में फिरता है । उसको चाहिए कि जो भी साध फकीर मिल जाय उसकी सेवा और शुश्रूषा करें।    

                                         

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻     

                                     

   यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा

-परम गुरु हजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...