Tuesday, February 2, 2021

दयालबाग़ सतसंग सुबह 03/02


 **राधास्वामी!! 03-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                  

 (1)गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। बटना मल अशनान करावे। अंग पोंछ धोती पहिनावे।।-(कोई टहल में आर न लावे। जो गुरु कहें सो कार कमावे।।)   (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.256) 

                                                         

 (2) अचल घर सजनी सुध लीजे।।टेक।। या जग में नित दुख सुख सहना। गुरु मिल आज जतन कीजे।।-(राधास्वामी मेहर से काज सँवारे। काल करम बल सब छीजे।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-47-पृ.सं.399)                            

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1

- कल से आगे:-( 21)

- 8 अप्रैल 1940- पालमकोटा में सत्संग के बाद हुजूर ने फरमाया- यकायक सभा के प्रेसिडेंट साहब ने मुझसे कोयंबटूर व अवडी जाने का आग्रह किया। इसी बीच में आप के प्रेसिडेंट मिस्टर चेट्टी की दरख्वास्त भी मेरे पास आई जिसमें उन्होंने मुझको मदुरा और पालमकोटा आने के लिए निमंत्रित किया । यहाँ आकर मुझको यह देख कर बड़ी खुशी हुई कि यहाँ के सत्संगी बड़े प्रेम व सच्चाई के साथ सेवा कर रहे हैं। आपकी सेवा से प्रसन्न होने के कारण ही तो हुजूर साहबजी महाराज सूबा मदुरा से इस कदर जबरदस्त मोहब्बत रखते थे! 

मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अगर इस सूबे के सत्संगी उसी सच्चाई और सेवा अंग से आगे भी काम करते रहे जैसे वह अब तक करते रहे हैं तो उनको वह इनाम जिसके देने का वायदा वह दयाल अपनी रवानगी के पहले कर गये थे बराबर मिलता रहेगा। जो दरख्वास्ते उपदेश के लिए हमारे पास आई है उनके देखने से यह मालूम पड़ता है कि उनमें से 60% दरख्वास्तें ऐसी हैं जो सूबा मद्रास से आई है। यह बात कि उन्होंने अपनी इच्छा से और स्वतंत्रता से राधास्वामी मत के हल्के में दाखिल होने का फैसला किया है जाहिर करती है कि हुजूर राधास्वामी दयाल आजकल आपको इनाम दे रहे हैं जिसका कि उन्होंने वादा किया था।

 कोई नहीं कह सकता कि अब कौन-कौन से जबरदस्त इनाम भविष्य में आपको मिलने वाले हैं बशर्ते कि आप सब साहिबान पहले की तरह सच्चाई से सेवा करते रहें और एक दूसरे से सहयोग करें, जिससे कि मौजूदा साल और आने वाले सालों के अंदर दयालबाग, अमृतसर और दूसरी संबंधित इंडस्ट्रीज की चीजों की खरीद का कोटा आसानी से पूरा कर सकें।

क्रमशः                                        

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -


[भगवद् गीता के उपदेश]


- कल से आगे:-


तुम यज्ञों से देवताओं को संतुष्ट करो और इसके बदले देवता तुम्हें संतुष्ट करें । इस प्रकार एक दूसरे को संतुष्ट करते हुए तुम दोनों परम सुख भोगो । यज्ञों से संतुष्ट किए हुए देवता निःसंदेह तुम्हारे मन की सभी कामनाएँ पूरी करेंगे"।

 जो मनुष्य देवताओं की दी हुई चीजों को अपने इस्तेमाल में लाता हैं लेकिन उसके बदले उन्हें कुछ पेश नहीं करता वह पूरा चोर है। जो सज्जन पुरुष यज्ञ करके बचा हुआ प्रसाद खाते हैं यह पापों से छुटकारा हासिल करते हैं और जो पापी अपने ही निमित्त भोजन तैयार करते हैं वे पाप ही का आहार करते हैं।

 अन्न से जीव बनते हैं , बारिश से अन्न पैदा होता है, यज्ञ से बारिश होती है, कर्म से यज्ञ को होता है, ब्रह्म★(मूल में "ब्रह्म" शब्द है, बाज टीकाकार इसका अर्थ" ब्रह्म" लगाते हैं, बिज " वेद" और बात "प्रकृति"।)से कर्म की उत्पत्ति है और ब्रह्म अक्षर पुरुष से प्रकट हुए। इसलिए यज्ञकर्म में शुरू से आखिर तक वह अविनाशी और सर्वव्यापी ब्रह्म शामिलेहाल रहता है। ।15 ।                                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे


:-[ सारबचन छंद बंद वचन 41-शब्द 19 के अर्थ लिखे जाते है ] -

कड़ी- (१)- गुरु अचरज खेल दिखाया। स्रुत नाम रतन घट पाया।।                                              

अर्थ- गुरु ने दया करके अचरज रूपी खेल घट में दिखाया, सुरत को नाम रूपी रत्न यानी दसवें द्वार का शब्द प्राप्त हुआ।।                   

 (२)- बकरी ने हाथी मारा। गऊ कीन्हा सिंध अहारा।।                                                   

अर्थ- यानी सुरत ने मन को जीता और फिर सुरत ने काल को मारा।                              

  (३)- चींटी गगन समाई। पिंगला चढ पर्वत आई।।                                                             

अर्थ- सुरत चढ़ करके गगन में पहुँची, जो मन दौड़ना यानी चंचलता छोड़ कर निश्चल हो गया वहीं पर्वत पर चढ गया यानी त्रिकुटी में पहुँचा।  

                                                   

 (४)- गूँगा सब राग सुनावे। अंधा सब रूप निहारे।।                                                  

 अर्थ- जो शख्स की दुनियाँ की तरफ और अंतर में बोलने से चुप हुआ वही शब्द की धुन सुनने लगा और जिस किसी ने बाहर से अपनी दृष्टि बंद की वही अंतर में रूप देखने लगा।।                                                          

 (५)- मक्खी ने मकड़ी खाई। भुनगे ने धरन(पृथ्वी) तुलाई।                                    

 अर्थ- मक्खी नाम सुरत का है मकड़ी यानी माया के घर में जब तक थी उसका खाजा हो रही थी, और जबकि दसवें द्वार की तरफ उलट कर पहुँची तब माया को निगल गई। भुनगे यानी जीव या सुरत ने सूक्ष्म शरीर को समेट कर आकाश में उठा लिया।                      

(६)-धरती चढ वृक्षा बैठी। पक्षी ने पवन चुगाई।                                                     

  अर्थ- सुरत चढ़ करके त्रिकुटी में पहुँची। मन जो सैलानी था जब चढ़ कर त्रिकुटी  में पहुँचा तब प्राण पवन को निगलता चला गया।।               

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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