Wednesday, April 1, 2020

सत्संग के उपदेश भाग-2





प्रस्तुति - डा. ममता शरण / कृति शरण

(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
बचन (56)

सतसंगी भाइयों व बहनों की अहम ज़िम्मेवारी।

          सतसंगी भाई आम तौर पर यह ख़्याल करके ख़ुश होते हैं कि दया से उन्हें सहज में सतसंग की शिक्षा समझ में आ गई और उनकी तबिअत ने हुज़ूर राधास्वामी दयाल की चरणशरण धारण करना मंज़ूर कर लिया। अक्सर भाई अपना भाग्य सराहते हैं कि बिला ख़ास कोशिश करने या पिछले ज़माने की सी काष्ठा झेलने के उन्हें ऐसी बड़ी दौलत हासिल हो गई। सतसंगी भाइयों का इस क़िस्म के ख़्यालात दिल में उठाकर ख़ुश होना या तसल्ली हासिल करना किसी तरह बेजा नहीं है लेकिन बहुत ही कम भाई ऐसे मिलते हैं जिनको ज्ञान इस बात का है कि इस दया व बख़्शिश की प्राप्ति के संग संग कैसी ज़बरदस्त व अहम ज़िम्मेवारी उनके सिर पर है।

ग़ौर का मुक़ाम है कि अगर वाक़ई हुज़ूर राधास्वामी दयाल कोई इन्सान या महदूद शक्ति नहीं हैं बल्कि परम चेतनशक्ति के निज भण्डार और कुल जगत् के आदि कारण व सच्चे माता पिता हैं और सभी जीव क्या इन्सान, क्या हैवान, जो इस संसार में विचर रहे हैं, उन्हीं परम दयाल के बच्चे हैं और उन परम दयाल ने सन्तमत का प्रकाश इस संसार में जीवों के कल्याण ही की ग़रज़ से किया है तो यह मानना होगा कि एक दिन हुज़ूर राधास्वामी दयाल का परम पवित्र सन्देश मनुष्यमात्र के कानों तक पहुँचेगा यानी उन दयाल की तरफ़ से यह इन्तिज़ाम होगा कि हरमुल्क व हरक़ौम के बड़े व छोटे सभी लोग सन्तमत की तालीम से लाभ उठा सकें और ज़ाहिर है कि तमाम दुनिया की तवज्जुह सन्तमत की आला तालीम की जानिब मुख़ातिब करना और सन्तमत के उच्च आदर्श को मनवाना कोई आसान काम नहीं है।

 मुख़्तलिफ़ क़ौमें मुख़्तलिफ़ आदर्श रखती हैं और उनके दिल में मुख़्तलिफ़ ख़्यालात के लिये पक्ष मौजूद है और वे ख़्यालात ऐसे हैं जो पुश्तहा पुश्त से उन क़ौमों के अन्दर चले आये हैं और जिनसे ख़ुद उन लोगों को बहुत कुछ तसल्ली और दीनी व दुनियवी तकलीफ़ों के दूर करने में मदद मिली है। ऐसी सूरत में वे लोग कैसे अपने आदर्श व ख़्यालात में तब्दीली करने के लिये रज़ामन्द हो सकते हैं।

इसलिये यह नतीजा निकालना बेजा न होगा कि जिन प्रेमी भाइयों को इस वक़्त हुज़ूर राधास्वामी दयाल की चरणशरण हासिल है और जिनके दिल में सन्तमत की तालीम ने घर कर लिया है उनके सिर पर निहायत ज़बरदस्त व अहम ज़िम्मेवारी आती है कि वे अपनी अमली ज़िन्दगी से दिखलायें कि सन्तमत के आदर्श व तालीम क़बूल करके उनपर चलने से उनकी ज़िन्दगी में उत्तम व प्रकट परिवर्तन हुआ है।

यानी हम लोगों की रहनी गहनी, हमारे इन्तिज़ामात और हमारी संस्थाएँ इस क़िस्म की हों कि उनके अन्दर वे दोष और कमज़ोरियाँ, जिनकी वजह से दूसरी जमाअतें व क़ौमें आमतौर पर परेशान हैं, देखने में न आवें और हम लोगों की जमाअत अपनी माली, तालीमी, इन्तिज़ामी और रूहानी ज़रूरतों को ऐसी ख़ूबी व ख़ूबसूरती के साथ सरअंजाम दे कि दूसरे लोग और दूसरी क़ौमें हमारी रहनी गहनी का अपनी रहनी गहनी से मुक़ाबिला करके हमें बेहतर पायें और हमें बेहतर पाकर उनके दिल में शौक़ व जिज्ञासा हमारी इस कामयाबी का रहस्य दर्याफ़्त करने के लिये पैदा हो और जब वे हमारी चाल ढाल व संस्थाओं वग़ैरह का हाल दर्याफ़्त करने के लिये हमारे पास आयें तो हम उनके साथ स्वाभाविक तौर पर ऐसा अच्छा बर्ताव करें कि उन्हें यह प्रतीत हो कि हमारे दिल में उनके लिये पूरी जगह है और भूगोल की सीमा ने उन्हें हमारे दिल से दूर नहीं किया है। उनको यह मालूम हो कि सन्तमत की तालीम के असर से हम दूसरी ही क़िस्म के इन्सान बन गये हैं और न सिर्फ़ हम ख़ुद आला दर्जे की ज़िन्दगी बसर करते हैं बल्कि औरों को भी सुखी करने की फ़िक्र रखते हैं और हमारे दर्वाज़े हर क़ौम व मज़हब के जिज्ञासुओं के लिये हरवक़्त खुले हैं। सतसंगी जमाअत के अन्दर आमतौर पर इस क़िस्म की बातें देखने पर क़ुदरतन् जिज्ञासुओं के दिल पर असर होगा कि ज़रूर कोई ग़ैरमामूली शक्ति हमारी जमाअत के अन्दर काम कर रही है और जब उन्हें इल्म होगा कि वह शक्ति हुज़ूर राधास्वामी दयाल की दयाधार है तो अज़ख़ुद उन्हें राधास्वामी दयाल और उनकी दयाधार का हाल जानने के लिये शौक़ पैदा होगा जिसके लिये उन्हें चार नाचार सन्तमत की तालीम में गहरा ग़ोता मारना होगा और ख़्यालात में तब्दीली होने पर वे बिला किसी क़िस्म के जब्र या लोभ के हमारे साथ भाईचारे का रिश्ता क़ायम करने के लिये तैयार होंगे।
राधास्वामी

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