Thursday, June 11, 2020

यथार्थ प्रकाश / अनुराग और विराग








**राधास्वामी!!

 11-06-2020-आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-                           

 (1) राधास्वामी दीन दयाला। मोहि दरशन दीजे।। मेरे प्यारे गुरू दातारा। निज किरपा कीजे।। (प्रेमबानी-3-शब्द-8,पृ.सं.273)                           

    (2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीति सों साज। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।। (प्रेमबिलास (विनय-पत्र-दोहा)↑-शब्द-129-पृ.सं.188)                                                             

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला- कल से आगे।।         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!


! 11-06 -2020

 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-

【 अनुराग और विराग】:-   

        

 ( 17) अगर आपको लोहे का एक टुकड़ा देकर कहा जाय कि इसे हवा में उड़ा दो तो इसके लिए आपको दो में से एक क्रिया करनी होगी अर्थात या तो उसे कूट पीस कर इतना बारीक करें कि वह परमाणगुण रूप होकर हवा में उड़ जाय या आग पर रखकर इतना गर्म करें कि गैस बन कर हवा में मिल जाय।

यही दो रीतियाँ मन को महीन करने की है -या तो शारीरिक तप के द्वारा कष्ट देकर उसे निर्मल और कोमल  किया जाए या प्रेम( भगवद्भक्ति)  की आँच पहुंचाकर उसे पवित्र और सूक्ष्म बनाया जाय।

 प्राचीन काल में आम तौर लोग गृहस्त को छोड़कर बनों में तपस्याएँ करके मन को वश में लाया करते थे पर जब से संसार में भक्ति मार्ग का प्रकाश हुआ तपस्या के बदले प्रेम और अनुराग रुपी औषधि की कदर होने लगी ।

इसी कारण राधास्वामी- मत में इस बात पर जोर दिया जाता है कि परमार्थी के हृदय में कुल मालिक के दर्शन की लालसा इतनी प्रबल हो कि उसको संसार के खेल कूद के लिए कोई रुचि न रहे ।।                       

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

                            

 (यथार्थ प्रकाश -भाग पहला

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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