Friday, August 21, 2020

रोजाना वाक्यात

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत

- कल का शेष:- 


वह यह था:- जब मिस्टर क्ले मुआयना के लिये मोटरकार में सवार होने लगे तो अक्समात उनकी तवज्जुह उस पेड़ की जानिब आकृष्ट हुई जिसके नीचे कार खड़ी थी। वह अमलतास का पेड़ है। उस पेड़ पर निहायत और गैरमामूली खूबसूरत चिड़िया बैठी थी। मिस्टर कले कई मिनट तक चुप चुप चिड़िया की जानिब देखते रहे फिर उन्होंने पूछा यह क्या चिड़िया है।  मैंने अनभिज्ञता जाहिर की और कहँ कहाँ से किस्म किस्म के पक्षी दयालबाग में आ गए हैं। ना हमने किसी को बुलाया या बाहर से लाने की कोशिश की। मिस्टर क्ले ने जवाब दिया जहाँ कहीं हरे भरे दरख्त होते हैं और पाने का मुनासिब इंतजाम होता है वहां आप से आप परिंदे चले आते हैं।  मामूली सी बात थी लेकिन मेरे दिल पर उसका दूसरा ही असर हुआ ।

 मेरे दिल ने कहा अगर हरे-भरे दरख्त और पानी का मुनासिब इंतजाम इस वीरान जंगल में किस्म  किस्म के खूबसूरत परिंटे खींच सकते हैं यहां का पाक व काम करने की कूव्वत से परिपूर्ण कुर्रेएहवाई गैर मामूली किबिलीयत वाली रुहों को भी खींच सकेगा।  दीवान बहादुर साहब ने बातें बड़े गौर से सुनी और फरमाया यह एक नया ख्याल है और नफाँ पहुंचाने वाला है। क्योंकि अगर बाहर से कोई रुहें न भी आवे तो यहाँ रहने वाली रूहों को तो काम करने के लिए मौका मिलेगा और यह कोई कम बात नहीं है । फिर आपने अपनी दो रचनाएं मुझे इनायत की। 

एक में उदयपुर के कदीम महाराणा कुंभ के हालात दर्ज है और दूसरी में हिंदुओं कौम की प्राचीन काल में कारगुजारियों का विवरण  लिखित है।  रात को इन दोनों कुतुब का सरसरी अध्ययन किया। निहायत दिलचस्प व प्रशंसनीय जानकारियों का भंडार साबित हुई ।। 

                                                     

 प्रेमी भाई सीताराम ने एक मशीन तैयार की है जो आपसे चपातियाँ यानी हिंदुस्तानी रोटियां सेकती हैं।  मशीन का इम्तिहान दिया गया। कामयाब पाया। रात के सत्संग में वर्णित की इस नई कारगुजारी के हवाले से सत्संगियों की तवज्जुह ईजाद की तरफ दिलाई गई। 

यह दुरुस्त है कि इस किस्म के ईजादों से रुहानी तरक्की नहीं हो सकती लेकिन प्रमार्थ का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि प्रेमीजन हक व हलाल की कमाई से गुजर करें । आजकल गैरमामूली चीजों की भरमार से एक शरीफ हिंदुस्तानी के लिए हक व हलाल की कमाई हासिल करना नामुमकिन हो रहा है। हिंदुस्तान में हिंदुस्तानियों के लिए न  कोई पेश आ रहा है न काम जिसमें दाखिल होकर परमार्रथ का शौकीन सरलतापूर्वक समय व्यतीत कर सकें। 

यह जमाना खास किस्म के प्रशिक्षण और टेक्निकल तालीम मांगता है। यह जमाना ईजादे तलब करता है। जो कौम इस जानिब तवज्जुह देगी वही हक व हलाल की कमाई हासिल कर सकेगी। और वही परमार्थ में कदम बढ़ाने के काबिल होगी। आखिर में सत्संगी भाइयों बहनों की जानिब से प्रेम भाई सीताराम को मुबारकबाद मय  पाँच सेर मिठाई पेश पेश की गई।                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

रोजाना वाकिआत- 10 दिसंबर 1932- शनिवार:- 

जलसा के दिनों के लिए तीन फिल्मों का बंदोबस्त हो गया है । पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से बेहतरीन फिल्में आवेगीँ  दीवान बहादुर हर बिलास सारदा को अपने 3 रचनाएं नजर की ।ड्रामा स्वराज, ड्रामा संसार चक्र ,और गीता का उर्दू तर्जुमा।                                                    

हजरत दिलचस्प दयालबाग देखने आया चाहते हैं।  शौक से आव़े घर घर तुम्हारा है। लेकिन बेहतर हो कि 20 दिसंमबर से पहले पहले तशरीफ़ लावें। और जलसा के कामों की वजह से मुझे भी फुरसत न मिलेगी। ऐसे ही एक और साहब ने रियासत बीकानेर से खत लिखा है। वह भी 26 दिसंबर को आया चाहते है और प्राईवेट में मुलाकात के ख्वाहिसमंद है। भला उन दिनों यह मौका कहाँ ।  

                                                       

रात के सत्संग बयान हुआ कि हमें जोश या खुशी में भरकर कोई ऐसा काम न करना चाहिए जो हमको परमार्थी लक्ष्य से गिरा दे। संत मत के अंतरी साधन में कामयाबी हासिल करने के लिए निहायत जरूरी है कि प्रेमी जन के ह्रदय में भगवंत के लिए अनन्य भक्ति हो। इंसान जोश या खुशी से अधीन होकर भगवंत को भूल जाता है और उसका मन फूल कर कुप्पा बन जाता है । उस वक्त तो यह हालत अच्छी लगती है लेकिन जब वह अभ्यास में बैठता है उस वक्त उसका करनी का फल भुगतता है और रोता है ।                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 रोजाना वाक्यात- 11, 12 दिसंबर 1932- रविवार व सोमवार :

डॉक्टर जोशी से मुलाकात हुई । बातों बातों उनसे अमेरिकन डॉक्टरों की एक खास बात मालूम हुई जो काबिल याद रखने की है। यानी यह है कि यह लोग कभी किसी बीमारी की निस्बत राय नहीं देते । जबकि उन्हें उसके मुतालिक सही व पक्का सबूत ना मिल जाये। 

एक मर्तबा का जिक्र है कि डॉक्टर जोशी के पास एक मरीज आया। उन्होंने फौरन बीमारी निदान कर लीऋ इतने में हस्पताल के बड़े डॉक्टर साहब भी आ गए। डॉक्टर जोशी ने उनसे बयान किया कि फलाँ बीमारी मालूम होती है। उन्होंने पूछा कोई डेटा है । डॉक्टर जोशी ने कहा डेटा तो कोई नहीं है । बड़े डॉक्टर साहब ने चिट पर लिख दिया कि मरीज की पीठ पर गोश्त फूला है चीर कर रिपोर्ट पेश हो। चुनाँचे ऐसा ही हुआ और बीमारी वही निकली जो डॉ जौशी ने तशखीस की थी एक बडे डॉक्टर साहब को भी गुमान था की बीमारी वही है लेकिन बिना डाटा के उन्होंने इनकार कर दिया यह मगरिब  की साइंटिफिक प्रशिक्षण का नतीजा है। 

इधर हम लोग हैं कि हर मामले की निस्बत बिधा तशखीस या इम्तहान फौरन राय कायम कर लेते है।डॉ जौशी के इस किस्से से बडा शिक्षाप्रद सबक मिलता है। उनको एक बड़े डॉक्टर ने बताया कि अगर हम बिना डाटा के राय कायम कर लें और बीमारी दूसरी निकले तो हमारी इज्जत हमेशा के लिए खाक में मिल जाए। अगर बिना डाटा हासिल किए हम राय कायम नहीं करते तो हमारी निस्बत कोई बुरी राय कायम नहीं करता।।                                     

 सत्संग में बयान हुआ कि हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि हमसे कोई काम मालिक की मर्जी के खिलाफ ना बन पड़े। इंसान के जिस्म के अंदर अजीबोगरीब ताकते मौजूद है। लेकिन आवाम उनसे कई कतई बेखबर व लापरवाह है। 

चुनांचे हमारे लिए मौका है कि हम अपनी सोई हुई रूहानी ताकत जगाकर हर काम के मुतअल्लिक़ दरयाफ्त कर ले आया हमें करना मुनासिब है या नहीं ।आखिर में इस ताकत के जगाने व इस्तेमाल करने का तरीका बयान किया गया। 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 रोजाना वाकिआत- कल का शेष :-   

                    

 सुबह कॉरस्पॉडेंस के वक्त सत्संगी के सवाल करने पर बयान हुआ कि सत्संगी को कभी सिद्धि शक्ति की प्राप्ति की चाहत ने उठानी चाहिए।  जन्म साखियों और दूसरी किताबों में जो किससे दर्ज है उनमें से अक्सर मन की गढने हैं। महापुरुष हमेशा मौज पर निर्भर रहने की कोशिश करते हैं अलबत्ता अगर कभी भगवंत की मौज होती है तो उनकी मार्फत गैरमामूली घटनायें जो चमत्कारों व करामात के नाम से नामित है जहूर में लाता है ।

 वह अपनी तरफ से इस किस्म की बातों की कभी चाह नहीं उठाते।  जो शख्स अभी मंजिले मकसूद यानी गंतव्य पर नहीं पहुँचा है और रास्ता तय कर रहा है उसे तो खासकर इन बातों से परहेज करना चाहिये। अगर लापरवाही से काम लिया गया तो संभव है कि वह जल्द ही योगभ्रष्ट होकर तरक्की का रास्ता अवरुद्ध कर ले।।             

  प्रेम प्रचारक के लिए एक नज्म नीज एक मजबून जेल -उन्वान यानी शीर्षक से " एक जर्रे का वृतांत लिखित की। एडिटर साहब स्पेशल नंबर निकालने की कोशिश में है। इसलिए मुझे भी कलम संभालना पड़ा। दीवान बहादुर हर बिलास सारदा की तस्नीफ खत्म की। पढ कर रोंगटे खड़े हो गरे। हिंदू कौम गिर कर कहाँ से कहाँ आ गई ! एक जगह इतिहासकारों की यह राय पढकर सख्त रंज हुआ कि हिंदुओं की मौजूदा गिरावट का कारण एक यह भी है कि उनके बहादुरों ने वीरता के गलत मानी समझे। यह लोग दुश्मन के पराजित होने पर उसे फौरन छोड़ देते थे।?  

और उनके दुश्मन मुक्ति पाकर उन पर बार-बार हमलावर होते थे। अगर वह दुश्मनों को दुश्मन समझ कर उनका खात्मा कर देते तो उनकी रियाआ भी सुखी रहती और उनका राज भी बना रहता।  इससे जाहिर है कि राजाओं के लिए महज बहादुर व लडाका होना काफी नहीं है । देश रक्षा व हुकूमत का माद्दा भी होना चाहिए। इसी माद्दे की वजह से अंग्रेज को वर्षों से दुनिया के बड़े हिस्से पर शासन करते हैं । और इसी की कमी से हिंदुस्तानी भाई आपस में लड़ मरते हैं।।                                              

जिन लोगों की सेवा में गीता का उर्दू का तर्जुमा प्रेषित किया गया था उनमें से तीन चार की तहरीरे प्राप्त हुई है। उन्होंने तर्जुमें के एक मर्तबा तक पढ़ने की तकलीफ गवारा नहीं की!  मुझे एक मर्तबा एक मेमसाहिबा ने इंजील मुकद्दस की एक कॉपी नजर की थी। और ख्वाजा हसन निजामी साहब ने कुरान मजीद के तर्जुमा की दो बडी जिल्दे और दस बारह दूसरी पुस्तके इनायत की थीं।  लेकिन मैने फर्ज समझ कर सबका अध्ययन किया हालांकि इंजील मुकद्दस पहले कई बार पढ़ चुका था। गरज जो कोई भी किताब मेरे पास आती है मैं भेजने वाले की मोहब्बत का शील संकोच करके जरूर वक्त निकालकर उसका मुतालआ करता हूँ।.          

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

रोजाना वाकिआत- 13 दिसंबर 1932- मंगलवार:-

 अखबार लीडर में एक शख्स ने शिकायत प्रकाशित की है कि खालिस घी अब अमीरों को भी उपलब्ध नहीं होता और गवर्नमेंट की तवज्जुह आकृष्ट कराई है कि धोखा देने वाले दुकानदारों को सजा देने का बंदोबस्त किया जावेगा वगैरह-वगैरह । जैसे हर मशीन को चालू रखने के लिए चर्बी व तेल दिया जाता है ऐसे ही हिंदू भाई अपने जिस्मों को चालू रखने के लिए घी का इस्तेमाल करते हैं। 

अगर जिस्म को खालिस घी ना मिले तो जिस्म जल्दी घिसने लगता है। दयालबाग डेरी से हर शख्स जितना जी चाहे खालिस  मक्खन व घी ले सकता है मगर मुश्किल यह है कि लोग बेहतरीन खालिस भी चाहते हैं और मिलावट की हुई चीजों से सस्ता भाव बिक भी चाहते हैं। वह भूल जाते हैं कि मिलावट ही की वजह से अंतिम वर्णित चीजों का भार सस्ता होता है। 

कभी आपने गौर किया कि हिंदुस्तान में लोग जल्द बीमार क्यों हो जाते हैं?  वजह यह है कि उनके जिस्म खोखले  हैं । उनके जिस्मों में कुव्वत नहीं है कि बीमारियों के कीटाणु का मुकाबला कर सकें। यह क्यों?

 यह इसलिए कि उनके जिस्मों को ठोस खुराक नहीं मिलती। बहुत से लोग अनाप-शनाप चीजें खाते हैं और तनिक भी ख्याल नहीं रखते जो कुछ उनके पेट के अंदर जा रहा है वह खालिस है या नहीं । गौर का मुकाम कि 1901 में दो लाख 72 हजार व्यक्तिय हिंदुस्तान में प्लेग से मर गये, 1902  में पाँच लाख, 1903 में आठ लाख और 1904 में दस लाख।  1918 में इस मुल्क के अंदर साढे बारह करोड नफूस मर्ज इनफ्लुएंजा में ग्रसित हुए जिनमें से 1/10 यानी एक करोड पच्चीस लाख प्राणरक्षित न हो सकें। सतसंगी भाइयों को चाहिये कि खाने में सादा चीजे बेशक इस्तेमाल करें लेकिन मिलावटी चीजों से हमेशा परहेज करें। और घी या मक्खन चाहें थोडा खाये लेकिन खालिस खायें।           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


रोजाना वाकिआत- कल से आगे:- 

रात के सत्संग में बयान हुआ कि सत्संगियों का यह उम्मीद करना कि महज उनके प्रार्थना करने पर उनकी हर जायज परमार्थी मांग पूरी हो जाएगी गलत है। उसके लिए हमें अपने अंतर में अधिकार पैदा करना होगा ।

 इसके अलावा याद रखना चाहिए तो प्रार्थना करना नाजायज नहीं है लेकिन भक्ति मार्ग में एक हद आती है जब लबकुशाई (बोलना होंठ खोलना) नाजायज हो जाती है उतना करना काम अंग में बरतना शुमार होने लगता है । मगर यह दर्जा बहुत ऊँचा है। इस दर्जे में दाखिल होने वाले प्रेमी मौज पर निर्भर रहते हैं । मौलाना रुम फरमाते हैं :-  

                           

  जे आशिकान अहले दुआगो दीगरन्द (मालिक की प्रार्थना करने वाले(सच्चे) प्रेमियों से भिन्न हैं।) गाह मी दोजन्द व गाहे मी दरन्द (कभी सिलते है कभी फाडते है(ऊँच नीच स्थिति में रहते है), शुरू में प्रेमी जरा जरा सी बातों के लिए प्रार्थना करता है और मालिक उसका मन रखने के लिए उसकी अक्सर प्रार्थनायें मंजूर फरमाता है।

 लेकिन उसे ढंग सिखलाने  और उसका दर्जा बढ़ाने के लिए फिर यह हालत होती है कि कम तादाद प्रार्थनायें मंजूर होती है और यह प्रतिकूल हालात बर्दाश्त करता हुआ मालिक के चरन ज्यादा मजबूती के साथ पकड़ता है। फिर यह हालत आती है कि एक भी प्रार्थना मंजूर नहीं होती और एक के बाद दूसरी खिलाफ सूरत जहूर में आती है। 

ऐसी हालत में दृढ चित रहना किसी सूरमा ही का काम है वरना आमतौर प्रेमीजन का विश्वास डगमगा जाता है। उस हालत में कामयाबी के साथ गुजर जाने पर फिर मौसम बदल जाता है और परिजन मौज पर निर्भर रहने लगता है और संसार के दुख-सुख उसके मन पर ज्यादा असर नहीं कर पाते। बाज प्रेमीजन दुःख की हालत सर पर आने पर सब्र से काम लेते हैं। लेकिन उत्तमतर बाद शुक्र से और बाज इजहार खुशी का करते हैं वही है जो हर वक्त अपने भगवंत की रजा में बरतते हैं और जिन्हें यह खबर भी नहीं होती कि इस वक्त कोई खास हालत सर पर आई है। 

जिसके लिए सब्र, शुक्र वगैरह का खासतौर इस्तेमाल किया जावे। हम सब के लिए मुनासिब है कि जहाँ तक मुमकिन हो जल्द इस दर्जे में कदम रखे।।                    

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


रोजाना वाकिआत- 14 दिसंबर 1932- बुधवार:

- हिंदुस्तान में पॉलिटिकल लहर बड़े जोर से चली और हजारों लाखों नौजवान उसकी लपेट में आ गये। उनके दिलों से मजहब की जरूरत व आदर जाती रही। वह प्रत्यक्ष कहने लगे कि उनका मजहब पॉलिटिक्स है। 

उन्होंने मजहब के खिलाफ जबरदस्त बढ़-चढ़कर बोलना शुरू किया ।उन्होंने खुदा की हंसी से, आयंदा जिंदगी व रुहानी मुकामों की मौजूदगी से इनकार किया। मुक्ति या मुक्ति का मजाक उड़ाया। लेकिन नतीजा क्या हुआ ? नतीजा यह हुआ कि आजादी उनका खुदा है पॉलिटिक्स उनका मजहब है । अपने मुल्क को यूटोपिया बनाकर उसमें जिंदगी बसर करने का मौका मिलना उनका स्वर्ग प्राप्ति है।

 डेमोक्रेसी या जम्हूरियत उनकी नजात है । और लुत्फ यह है कि नया खुदा, नया स्वर्ग और यह नई नजाय अहले हिंद के लिए वैसे ही अप्राप्य है जैसे कि पुराना खुदा, पुराना स्वर्ग और पुरानी मुक्ती। फर्क है तो यह कि उनके मुल्क में हजारों ऐसे गुणवान हुए जिन्होंने पुराने खुदा का दर्शन भी पाया है, स्वर्ग कि सैर भी की और नजात का लुफ्त उठाया और उनके मुल्क में दुनिया भर में एक भी शख्स नहीं है जिसने उनके नए खुदा की शक्ल देखी हो, उनके स्वर्ग में कदम रखा हो या उनकी मुक्ति का रस चखा हो। वाह साहब वाह! तेली भी किया और रुखा भी खाया।।                               

रात के सत्संग में मौज पर निर्भर रहने की हालत का बयान हुआ। हमारा मन अपनी अक्ल अपनी लियाकत का इतना अहंकार रखता है कि अगर वह महापुरुष जिनको सतगुरु कहता है और जिनकी बुजुर्गी साबित करने के लिए यह दुनिया से जंग करने को तैयार है अगर एक बात भी ऐसी कह दे जो उसकी समझ से बाहर हो तो यह फौरन एतराज करता है। 

भक्ति मार्ग या ईश्वरप्रेम में उस अक्ल व लियाकत से सख्त नुकसान पहुंचता है। हुक्म यह है कि तुम यकायक किसी को सतगुरु तस्लीम ना करो । तुम अव्वल खूब जांच व खोजबीन करो और जब पूरा इत्मीनान हो जाए तो किसी महापुरुष में सतगुरु भाव लाओ। 

और ऐसा भाव ले आने के बाद तुम्हें धैर्य व आज्ञा पालन से काम लेना होगा। जो बात समझ में ना आवे उसके काटने की फिक्र ना करो बल्कि सब्र के साथ अतिरिक्त रोशनी मिलने की इंतजार करो । जिसके मन को इस कदर करार हासिल नही है अभी कच्चा है। जिसके दिल में सतगुरु के लिये  अदब हो सकता है प्रेम नहीं हो सकता।।        

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


रोजाना वाकिआत- 15 दिसंबर 1932- बृहस्पतिवार-

 सुबह कॉरेस्पॉन्डेंस में बयान हुआ कि इंसान और मालिक के दरमियान खुदी या अहंकार का पर्दा पड़ा हुआ है। जब सत्संगी अंतर्मुख होता है तो मालिक के बजाय खुद ही का दर्शन होता है। खुद या अहंकार से आशय अभिमान नहीं है ।

 यह अल्फाज परमार्थ में सूक्ष्म मानी में प्रयुक्त होते हैं । स्वयं को किसी काम का कर्ता देखना या किसी के कहने पर कि तुम्हारे अंदर फुलाँ नुक्स है फौरन जोश में आ जाना और उसकी बात को गलत साबित करने के लिए उलझ जाना यह सब अहंकार की मौजूदगी के लक्षण है।

 सत्संगी की यह मानसिकता होनी चाहिए उसे महसूस हो कि उसके सबका मालिक की दया से चल रहे हैं और जब कोई उसके नुक्स बतलाये जाते तो वह उलटकर अपने मन की तरफ देखें और अपने मन की हालत का अध्ययन करें और नुक्स देखने वाले को अपना मित्र समझे। और अगर कभी गुरु महाराज कोई नुक्स पकड़े तो उसे फौरन स्वीकार कर ले और अपने अंदर से वह नुक्स निकालने की फिक्र करें और अगर अपने अंदर  वह नुक्स नजर न आवे तो प्रार्थना करें कि अतिरिक्त रोशनी मिले ताकि छिपा हुआ नुक्स नजर आने लगे। और यह कभी ख्याल न  करे कि गुरु महाराज मेरे अंदर फुलाँ नुक्स देखते हैं।।                                               

दयालबाग प्रैस में एक मराठा साहब को बतौर सुपरिटेंडेंट मुकर्रर किया है। अब तक प्रैस का सब काम प्रेमी भाई हर नारायण ने चलाया है। सैकडों रुपये की आमदनी की वकालत छोड कर बिला मुआवजा सेवा करते रहे और पहले ही दिन से प्रैस को नफा पर चलाया। अब प्रैस को बढाना मंजूर है इसलिये पूना के इस तर्जबाकार नवागत की जरुरत पडी। दयालबाग में जितनी संस्थाएं हैं उनका मकसद रुपया पैदा करना नही है। उनके खासकर दो मकसद है अव्वल लोगों के लिए रोजगार के लिए रोजगार का सिलसिला कायम करना, दोयम आदर्श हालत दिखलाकर दूसरों के लिये उदाहरण कायम करना। 

अगर ये संस्थाएँ तरक्की करती जायेऔर अपना खर्च निकालती रह़े तो हमें काफी इत्मीनान रहेगा। अब तक प्रैस ने नफा खूब कमा कर दिखलाया लेकिन तरक्की नहीं की इसलिए अब तरक्की का मार्ग निकालना पड़ा। आज तीसरे पहर प्रैस में जाकर काम करने वालों को सुझाव दिये।।       

रात के सत्संग में सच्ची भक्ति के अर्थ पर रोशनी डाली गई ।और आखिर में उन सात दर्जे का बयान हुआ जिनसे हर शख्स को गुजरना पड़ता है ।और वह यह है- अब्बल इंसान के दिल में संसार के भोग विलास से तसल्ली न पाकर बेहतर हालत के प्राप्ति के लिए शोक का पैदा होना।  

दोयम उस शौक के पूरा करने के लिए मुनासिब समय की जरूरत महसूस होनी और उसकी तलाश बन पडनी। सोयम  सच्चे मार्गदर्शक का मिल जाना और उसमें किसी कदर श्रद्धा का कायम होना। चहार्रुम  उसके चरणों में तेज और सच्ची प्रीत का पैदा होना। पंजुम उस प्रीत के बस हो कर वक्त फवक्तन सुरत का अंतर मुख होना और नामरूप या शब्द में लगना । शशुम अंतर में गहरी पहुंच का हासिल होना ।और हफ्तुम सच्चे मालिक के चरणो से मेल होकर अमर व अविनाशी गति प्राप्त होना । 

आम तौर पर लोग चौथी मंजिल में रुक जाते हैं। दुनियवी नफा नुकसान के तजुर्बात और दुनिया भी सामान की मोहब्बत प्रीति व प्रीति की तरक्की से बाधक होते हैं इसलिए हर सत्संगी को खबरदार होकर इस मंजिल से आगे कदम बढ़ाने की फिक्र करनी चाहिये।।                   

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

रोजाना वाकिआत- 17 दिसंबर 1932- शनिवार :-

मॉडल इंडस्ट्रीज ने फाउंटेनपेन में प्रयुक्त होने वाला एक नया निब पेश किया। उस निब की नोक पर जो मसाला लगाया गया है उसकी बहुत तारीफ की जाती है। निब आजमाईश के लिए मॉडल इंडस्ट्रीज के हेड क्लर्क को दिया गया । मिस्त्री का बयान है कि एक हफ्ता तक यह निब रोशनाई में डूबा रखा गया और उस पर तनिक भी असर नहीं हुआ। अगर परीक्षण में यह निब पूरा उतरा तो हमेशा के लिए यूरोप से निब मंगाने का झगड़ा छूट जाएगा और जो भाई दयालबाग फाउंटेनपेन पर बेवजह विलायती निब के नाक भौं चढ़ाते हैं उनकी भी शिकायत जाती रहेगी।।                       

महाराजा अलवर में यूनिटी कॉन्फ्रेंस में निहायत प्रभावशाली व दिलचस्प तकरीर दी है । जो अध्ययन के लायक है। महाराजा साहब ने अपने विषय को बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है जिससे उनकी आला शैक्षिक योग्यता प्रकट होती है। आप संयुक्त चुनाव के हक में है। 

 आपने फरमाया जब यह निश्चित हो गया कि हुकूमत की बागडोर चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में दी जावे फिर अलहदगी के क्या मानी? मुशतर्का खानदान व मुशतर्का रोजगार में रौनक हुआ करती है या विभाजित खानदान व मुन्कसिम पूँजी  रोजगार में?  नुमाइन्दगान के लिए मौजूदा मुश्किलात देखकर हिम्मत ना हारने के मुतअल्लिक़ आपने फरमाया अक्सर ऐसा होता है कि जमीन की सतह पर पानी नजर नहीं आता लेकिन जब जमीन खोदते हैं तो जरूर निकल आता है। इसलिए हिम्मत ना हारो और खोद खाद कर ऐसी योजनाएं निकालो जो जुमला फरीकान को पसंद आवे। 

वाकई महाराजा बहादुर तारीफ के अधिकारी है जो कभी कभी उनकी शैक्षिक योग्यता के मुतालिक अखबारों में पढ़ने में आती है।      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


रोजाना वाकिआत- कल से आगे :- 

रात के सत्संग में बयान हुआ कि अगर किसी जिज्ञासु को बावजूद एहतियात से काम लेने के मुगालता हो जाए और वह किसी गलत संजोग में निश्चय ले आवे तो गलती मालूम होने पर नाहक परेशान नहीं होना चाहिये।  

जीव नादान व भूलनहार है उससे समय-समय पर गलतियों का घटित होना मामूली बात है। अगर कोई जीव अपनी तरफ मालिक की खोज में निकलता है और मुनासिब एहतियात से काम लेता हुआ होगा रोशनी का जो उसे हासिल है इस्तेमाल करता है और किसी दुनियावी गरज को दिल में जगह नहीं देता तो इससे ज्यादा वह बेचारा क्या कर सकता है ।

 ऐसे प्रेमीजन की मदद करना और उसे कामयाबी दिलाना मालिक का काम है।  संसार में अव्वल तो मनुष्य जन्म बडा दुर्लभ है और मनुष्यों में अधिक तादाद नर पशुओं की है और ऐसे थोड़े ही इंसान होते हैं जो मन व माया के देश में रहते हैं और उनके खेल खेलते हुए दिल में रुहानियत का ख्याल उठा सकते हैं। 

 स्पष्ट हो कि हर एक जिज्ञासु की गिनती ऐसे चुने हुए खुशकिस्मतों ही में है इसलिए उसे किसी तरह निराश नहीं होना चाहिए और अगर किसी संजोग की निस्बत उचित जाँच के बाद राय प्रतिकूल हो जाए तो मुनासिब होगा कि आगे के लिए चुपचाप वहाँ से अलग हो  जाय इसी उसूल पर अगर किसी भाई को जो दयालबाग से ताल्लुक रखता है किसी वजह से बेइतमीनानी हो रही है तो उसके लिए मुनासिब है कि दयालबाग से किनाराकश हो जाये और किसी दूसरे मकाम पर किस्मत अजमाई करें और अगर बर्दाश्त करता है तो इस कदर और मशवरा दिया जाएगा कि अगर उसे कहीं बेहतर संजोग मिल जावे तो उसकी इत्तला मुझको भी कर दें और अगर मुमकिन हो तो वहाँ की श्रेष्ठता कारणों से भी परिचित कराने की तकलीफ गवार करें। यह बातचीत व्यास के एक सवाल के जवाब में की गई।।                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

रोजाना वाकिआत- 18 दिसंबर 1932- रविवार:- 


कॉरेस्पॉन्डेंस के वक्त एक जिज्ञासु के दरयाफ्त करने पर कबीर साहब की कुछ साखियों के मानी बयान किए गये उनमें " सीस देने"  यानी सर भेंट करने के लिए कथन है । प्रश्नकर्ता ने इन साखियों से नतीजा निकाला कि भगत जन को आत्महत्या कर लेनी चाहिये।  

हालांकि मतलब अहंकार या आपा तजने से है।  मसलन यह फरमाया है :-यह तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहिं सीस उतारे भुई धरे सो पैठे घर माहिं।।        

                                     

अगर कोई जहर खाकर अपनी जिंदगी खत्म कर ले तो वह घर में कैसे पैठेगा जब कि उसका धड व सर तो मुर्दार हो जाएंगे ? इस साखी में यही उपदेश है कि परमार्थ को खाला जी का घर मत समझो कि जब चाहा दाखिल हो गये और मनमाने अंगों में बरतते रहे। 

 इस घर में वहीं रह सकता है जो अहंकार यानी खुदी को छोड़ना मंजूर करें। रात के सतसंग में बयान हुआ कि आत्मा, परमात्मा, मुक्ति वगैरह विषय इंसानी अकल से परे की बातें हैं। पंचइंद्रियों की तरह हमारी अक्ल भी सीमित है और रूहानी विषयों के मुतअल्लिक़ ज्ञान हासिल करने के नाकाबिल है।

 जो लोग अक्ल से इस विषय के मुतअल्लिक़ खयालात कायम करते हैं उनकी उस अंधे की सी हालत होती है जो बावजूद अंधा होने के जमीन के ऊंचा नीचा देख लेने का दावा करता है। मगर फिर इंसान क्या करें?  अक्ल के सिवाय किस कुव्वत का इस्तेमाल करें ? 

उसको चाहिए कि अध्यात्म का विशेषज्ञ तलाश करें और पता मिलने पर उसकी खूब जांच करें लेकिन जांच भी अगर अपनी अकल लडा कर करेगा तो चूक होगी क्योंकि यह अक्ल किसी इंसान की रुहानियत जानने के नाकाबिल है जैसी रूहानी मजामीन के मुतअल्लिक़ ख्याल उठाने की । जो शख्स गणित जानने के नाकाबिल है वह किसी विशेषज्ञ गणित की काबिलियत का इम्तहान करेगा?

  उसके लिए मुनासिब है कि अपने दिल से हर किस्म की पूर्वाग्रह दूर करके उस बुजुर्ग की खिदमत में हाजिर हो। 

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


 रोजाना वाकिआत- कल से आगे- 

रात के सत्संग में एक महत्वपूर्ण विषय पर रोशनी डाली गई।  दुनिया आमतौर पर मन व इंद्रियों के अंगों में बरतती है और दुःख पाती है ।जब दुनिया में कोई महापुरुष जन्म लेते हैं तो मुनासिब वक्त आने पर अवाम को सत उपदेश सुनाते हैं। उपदेश सुनकर कुछ लोग उनके श्रद्धालु बन जाते हैं आहिस्ता आहिस्ता श्रद्धालुओं के दायरा बन जाता है और वह एक अलग दल या समूह की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं गोया इंसान की एक नई Species कायम हो जाती है ।और कुदरत का यह कानून है कि वह व्यक्तियों की परवाह नहीं करती वह Species  ही की परवाह करती है।

 हजारों आम के पेड़ कटते हैं, मरते हैं, कुदरत को कुछ गरज नहीं लेकिन आम की नस्ल कायम रखने के लिए जबरदस्त प्राकृतिक नियम मौजूद है। मसलन आम का रस मीठा है जो इंसान को पसंद है। इसलिए इंसान शौक से आम के पेड़ लगाते और सींचते हैं । उसकी हिफाजत के लिए आम के गूदे पर बदजायका का छिलका चढ़ा होता है और हर फल के मुंह पर एक टोपी चढ़ी होती है जिसके उखाड़ने पर निहायत बदजायका और गला छीलने वाला तेजाब सा होता है। 

इन इंतजामों ही से आम की नस्ल की काफी हिफाजत हो जाती है इसके अलावा आम का हर पेड़ जवान होते ही अपनी नस्ल की तरक्की के लिए सैकड़ों फल पैदा करता है। दूसरे जानदार दिन रात उन पर हमले करते हैं लेकिन हमला करने वालों से फलों की तादाद ज्यादा रहने से नस्ल नष्ट नहीं होने पाती।  वगैरह-वगैरह । 

अब इन सिद्धांतों को अपने ऊपर लगाओ । राधास्वामी दयाल की जगत में आगमन से हमारी भी एक जमात कायम हो गई है और खास किस्म के ख्यालात रखने की वजह से हम भी इंसानों की एक नई Species  बन गए हैं। और जिंदगी की कशमकश का कानून हमारे ऊपर भी असर कर रहा है। हमारे लिए भी दो ही सूरतें हैं या तो कशमकश में नष्ट हो जाय या जिंदा रहे मगर हमसे कुदरत का कोई काम निकल सकता है तो कुदरत के नियम हमारी रक्षा करेंगे। 

क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏 

[8/14, 04:37] +91 97176 60451

: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- कल से आगे- कुदरत की तरफ से बंदोबस्त होगा कि संगत के जवान होने पर उसकी बड़े जोर से तरक्की हो, सैकड़ों हजारों नए मेंबर आये साल शरीक हो। चुनाँचे से 2-4 साल से ऐसा ही देखने में आ रहा है। हमारी संगत का जन्म सन 1861 ई० में हुआ । इसकी 71 साल की उम्र हो गई है। अब यह युवावस्था में कदम रख रही है। हर साल हजारों नये अफराद इसमें शरीक होने लगे हैं । मुल्क भर में दयालबाग का चर्चा है। गोया वक्त आ गया है कि सत्संगियों की Species खूब बढे। इसलिए सवाल होता है आया हम उन नादान मुफसिलों की तरह बेखबर रहे जो सूखे सड़े बच्चे पैदा करके हर साल दुनिया की मुसीबतों में बढ़ोतरी करते हैं या संगत की संभाल के मुतअल्लिक़ सोच विचार करके मुनासिब युक्तियाँ अमल में लावे। अगर हमारी जमाअत के मेंबरों की तादाद बेशुमार होगी लेकिन जिंदगी का स्तर गिर गया एक दिन आयेगा गिरे हुए अनगिनत बरहमनों,क्षत्रियों और वैश्यो की तरह या बौद्ध व अन्य धर्मों के अनुयायियों की तरह सत्संगी भी दुनिया में परेशान नजर आएंगे।  हजारों बरहमन गिर कर भिखमंगें बन गये, क्षत्रिय डाकू हो गये और वैश्य दगाबाजी करने लगे । ऐसे ही राधास्वामी दयाल की शिक्षा से गिरकर हजारों सत्संगी बेदीन, बेईमान, पाखंडी नजर आने लगेंगे। इसलिए बेहतर होगा कि सब भाई इस अहम मामले को मुनासिब तवज्जुह दें और जनरल मीटिंग के दिन मिलकर आंयदा के लिये कतई फैसला करें। मेरी अपनी राय यह है कि ऐसी खराब सूरत पैदा करने के मुकाबले हमारे लिए बेहतर होगा कि मालिक से प्रार्थना करें कि हम सब का तुरंत कला विध्वंस कर दिया जाये। अगर हम जिन्दा रहे और बढें तो सच्चे सतसंगी बनकर वर्ना हम खत्म हो जायें या इतने ही रहें। हमारे ऊपर पोलिटकल, सोशल, इकोनामिकल यानी सियासी, मज्जिलसी और इक्तसादी कानूनों का जोर पड रहा है। कांग्रेस के प्रोपेगण्डा का खिंचाव मगरिब की  सामाजिक आजादी के लालच और इक्तसादी परेशानी की दाब हमारे नौजवानों के दिलों पर असर कर रही है। अगर हम ख्वाबे गहरी नींद में मब्तला रहे और मेंम्बरो की तादाद में जोर व शोर से इजाफा  होता रहा तो हम चंद ही साल के अंदर बिगड़ कर कुछ के कुछ बन जायेंगे। इसलिए मुनासिब है कि इस जलसा के मौके का फायदा उठाया जावे इस मुश्किल के हल की सूरत निकाली जावे। आखीर में खडगपुर के मशहूर अनुवादक जोगा राव जी तेलुगू जबान में स्पीच विषय सार बयान किया। क्रमशः                  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[8/15, 04:29] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत- कल से आगे- 20 दिसंबर 1932- मंगलवार :-आज बहुत नये सत्संगी आये हैं । सालाना भंडारों की सी रौनक हो गई है । चबूतरे पर कतई जगह खाली नहीं है। 22 दिसंबर से नए पंडाल में सत्संग शुरू करने का इरादा है । सुबह कॉरेस्पोंडेंस के वक्त उस समय उपस्थित सतसंगियों से अपील की गई कि ब्यास सत्संग के मुतअल्लिक़ पिछली सब बातों को भूल जायें। और किसी किस्म की शिकायत या कोई सख्त वाक्य जबान पर ना लायें और वहां के अधिष्ठाता साहब ने बाहम मेल के सिलसिले में जो सबूत अपनी नेकनीयती का दिया है उसकी दिलोजान से कद्र करें। ब्यास से मुतअल्लिक़ एक सतसंगी ने उपदेश के लिये दरख्वास्त पेश की। जवाब दिया गया पहले वहाँ से इजाजत हासिल करो तब उपदेश दिया जा सकता है।।                             रात के सतसंग में बयान हुआ कि इंसान अपनी बुद्धि की वजह से सारे प्राणीवर्ग में सर्वश्रेष्ठ कहलाता है। उसे चाहिए कि अपनी बुद्धि का मुनासिब इस्तेमाल करें।  दुनिया के चरन्द व पलन्द बिला मकसद की जिंदगी बसर करते हैं क्योंकि उन्हें इतनी बुद्धि ही नहीं है । इंसान को चाहिए कि अपने लिए जीवन का उद्देश्य मुकर्रर करें । अगर किसी से पूछा जावे कि "दिल्ली जाकर क्या करोगे"। तो वह अव्वल यह जानना चाहेगा कि दिल्ली कैसी जगह का नाम है।  ऐसे ही जीवन के उद्देश्य कायम करने से पहले हर अक्लमंद शख्स यह जानना चाहेगा कि किसके लिए जीवन का उद्देश्य तय करना है। अगर जिस्म के लिए तय करना है तो एक किस्म का मकसद होगा और अगर मन के लिए तो वह दूसरी किस्म का होगा।  और अगर किसी तीसरी चीज के लिये तो वह तीसरी ही किस्म का होगा। इसलिये हर अक्लमंद शख्स का पहला यही काम है कि जानने की कोशिश में लगे कि "मैं क्या हूँ?" इस अम्र की तहकीकात ही उसका पहला मकसद जीवन का उद्देश्य होना चाहिये।।                         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[8/16, 04:38] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- कल से आगे:- मगर आप एतराज करेंगे की स्वयं को हम कैसे जाने?  देखने वाला अपने तई किसकी मार्फत देखें?  ज्ञानेंद्रियां तो इस मामले में कतई नकारा है। वह तो संसार के पदार्थों की भी हकीकत जान नहीं सकती । ज्ञानेंद्रियां ज्यादा से ज्यादा संसार के पदार्थों की चंद गुणों का इल्म हासिल कर सकती है पदार्थों की वास्तविकता तक नहीं पहुंच सकती। संसार के पदार्थों से सूक्ष्म मन है। सो न किसी ने देखा है, न चखा है, न छुआ है या सुना है। फिर मन से परे की चीज को किस इंद्री से जाने ? महापुरुष बतलाते हैं कि वास्तव में असली आपे का ज्ञान हासिल करने में सभी इंद्रियाँ व मन लाचार है।  उसके जानने के लिए दो बातें करनी होगी। अव्वल मन व इंद्रियों को चुप कराना होगा। दोयम अंतर में जागृत रहना होगा । जो शख्स यह दो बातें न कर सकता हो तो बामकसद जिंदगी बसर करने का इरादा न करें । इन दो बातों में कामयाब होकर उसे अपने जिस्म की सोई हुई रूहानी कुवत को जगाना होगा।  इंसान अपने किसी अंदरूनी कुव्वत को अपने जिस्म के किसी अंश या अंग को जगा करके ही बेदार कर सकता है । मसलन देखने , सुनने वगैरह की कुव्वते तभी जागती है जब हमारे दिमाग के खास केंद्र बेदार हो जाते हैं ऐसे ही रूहानी कुवत को जगाने के लिए उसको अपनी अन्तर्चक्षु बेदार करनी होगी। उसके बेदार होने पर उसे अपनी असली आपे को ज्ञान हासिल होगा। उसका असल आपा न हाड माँस चाम का नतीजा है न काम क्रोध का  पुलिंदा। वह  सत् , चित् आनंद व प्रेम रूप चेतन जौहर है। यह ज्ञान व तजुर्बा होने पर अब उसके लिए जिंदगी का मकसद तय करना आसान हो जाता है। जैसे पानी का कतरा समुंदर में रहकर सच्ची आजादी भोग सकता है और पवित्र रह सकता है ऐसे हमारे असली आपा अपने सजातीय मसाले के मंडली में रहकर पवित्र व सुखी रह सकता है। इसलिए मकसदे जिंदगी एक करार पाया उस सुरत को निर्मल चेतन देश में पहुंचाया जावे। इसी को कुल मालिक का धाम कहते हैं। इसी गति के प्राप्त होने को मोक्ष कहते हैं। मकसदे जिंदगी कायम होने पर फर्ज हो जाता है कि इंसान अपनी हर कर्रवाई को ऐसा व्यवस्थित करें कि वह इस मकसद के प्राप्ति में सहायक व मददगार हो। जो इंसान ऐसा करता है अपनी अक्ल का मुनासिब इस्तेमाल करता है वह ही सच्चे मानी में इंसान है।।                      🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

[8/17, 04:25] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत- 21 दिसंबर 1932 -बुधवार -कल रात को दयालबाग की जनगणना की गई । कुल मर्दों, औरतों व बच्चों की तादाद 3992 बयान में निकली। आज दिन में मोगा, फिरोजपुर, अमृतसर और भीमावरम, तिरुनेलवेली वगैरह मकामात से बहुत से सत्संगी आये।।                                    कोलकाता से सूचना प्राप्त हुई की डेरी के लिये अमेरिका से जो गाय व सांड मंगाये गये हैं आज जहाज से उतरेंगे और 23 दिसंबर को दयालबाग पहुंचेंगे। और भी लखनऊ से खबर आई कि पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की फिल्में और वैन 26 दिसंबर को यहां पहुँचेंगी और 31 दिसंबर तक यहाँ नुमाइश की जायेगी।।                                                          तीसरे पहर भंडार घर का हाल देखा । बीसों स्त्रियां रोटी पकाने में संलग्न है। बिना प्रतिफल पर काम कर रही है । एक सेट पंजाबी  देहाती स्त्रियों का था। जिस शौक से यह स्त्रियाँ चुपचाप काम कर रही थी काबिले तारीफ है। यह अपने काम में इतनी सलंग्न थी कि उन्हें बहुत देर तक मेरे आने की खबर तक न हुई।  ए सत्संग की सुपुत्रियों!  राधास्वामी संगत को ऐसे ही काम करने वालों की जरूरत है।  ऐसे काम करने वालों ही के प्रताप से जनता के पेट भरने हैं! कॉरेस्पोंडेंस के वक्त बयान हुआ कि ढुलमुल यकीन होना परमार्थ में एक किस्म की बीमारी है । परमार्थ में स्थिर बुद्धि और सही ईमान ही कदम बढ़ा सकते हैं। जो लोग अपने तई बढ़कर काबिल समझते हैं और नामवरी के दिलोंजान से ख्वाहिशमंद होते हैं मगर समझबूझ बहुत अदना रखते हैं वही ढुलमुल यकीन हुआ करते हैं।।                          रात के सत्संग में जिक्र हुआ कि हर इंसान की जिंदगी में सबसे पहली महत्वपूर्ण घटना उसका दुनिया में जन्म लेना है और सबसे आखरी महत्वपूर्ण वाक्य शरीर का त्यागना है।  जैसे कि उसकी तालीमी जिंदगी में सबसे पहला वाकिआ उसका स्कूल में भर्ती होना और आखरी वाकिआ कॉलेज से निकलकर दुनिया में दाखिल होना होता है। इन दो हुदूद के अंदर यानी जन्म व मरन के दिनों दरमियानी अर्सा में हर इंसान को हजारों वाकिए पेश आते हैं लेकिन अगर मुझसे दरयाफ्त किया जाये तो सबसे अहम वाकिआ उसके जानिब मालिक की खास दया का संबोधित होना है। राधास्वामी दयाल का बचन है कि जहां 10 सत्संगी मिलकर मालिक की कीर्ति करते हैं वहां माली खास दया फरमाता है । और 27 दिसंबर के करीब दयालबाग में दह हजार सत्संगी मौजूद होंगे इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि उन दिनों में मामूल से हजार गुनी दया नाजिल होने का मौका है। राधास्वामी सत्संग सभा ने इसी गरज से सत्संगियों को इस मौके पर जमा होने और घर से चलकर सफर की तकलीफ बर्दाश्त करने के लिए मजबूर किया। दुनियावी जिंदगी का सबसे अव्वल अहम वाकिआ हम देख चुके हैं और आखिरी वाकिआ भी एक दिन जरूर ही देख लेंगे! अब अगर दरमियानी अर्से  का भी अहम वाकिआ देखने में आ जाए तो बहुत अच्छा हो । इन बातों के जिक्र के अलावा दयालबाग वालों की तरफ से नवागत भाइयों और बहनों का स्वागत किया गया।।                      🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

[8/18, 04:25] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 22 दिसंबर 1932- बृहस्पतिवार- सुबह मास्टर रोल से मालूम हुआ कि दिन भर में 550 नये आदमी आये। और सुबह के वक्त उपस्थितजन सत्संग की तादाद 4540 थी। हालांकि अभी छुट्टियां शुरू नहीं हुई है लेकिन लोग धड़ाधड़ आ रहे हैं । सुबह का सत्संग पंडाल में हुआ। इतना मजमा लेकिन अत्यधिक दर्जे की खामोशी। प्रबंधकगण ने मर्दों और औरतों के पंडाल में आने के लिए अलग-अलग सड़कें निश्चित कर दी है। इससे हर किसी को बड़ा आराम है। बाज छोटी-छोटी प्रबंध संबंधी बातें बड़े-बड़े नतीजे पैदा करती हैं। जिधर देखो लोगों के झुंड चलते फिरते नजर आते हैं। सफाई का यह हाल है कि कहीं तिनका तक नजर नहीं आता। भिश्ती, मेहतर, वालंटियर, स्काउट ,दयालबाग पुलिस, प्रबंधकगण कमेटी सभी तन तोड़ कर काम कर रहे हैं। सुपरिटेंडेंट साहब  ने भी कृपा करके बड़ी सड़क पर आवागमन की चौकसी के लिए दो कांस्टेबल तैयार कर दिये है। शुक्रिया! कॉरेस्पोंडेंस के वक्त बहुत से भाइयों के सवालात के जवाब दिये गये। स्वालात बहुत मामूली थे मतलब यह कि आया पेड़ों में भी रूह है? आया पेड़ काटने और दूध पीने से पाप होता है ? जुआ खेलना पाप है या नहीं?क्रमशः                    🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

[8/19, 04:25] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- कल से आगे- रात के सत्संग में एक लंबी स्पीच हुई।  मैंने चाहा कि लोगों के दिलों में मजहबी कर्तव्य की गहरी अनुभूति पैदा कराई जाये। इसलिए जरा जोरदार अल्फाज इस्तेमाल करने पड़े। अव्वल यह समझाया गया कि जैसे इल्म बायोलॉजी बतलाता है कि दुनिया में पहले पहले निहायत सादा शक्ल के जिस्म जाहिर हुए। वह ऐसे जिस्म थे जो महज झिल्ली के टुकड़े थे और पानी पर तैरते थे लेकिन जब पशु जैसी जिंदगी ने उनकी मार्फत उस वर्ग पर कदम जमा लिया तो प्राकृतिक नियम ने उधेड़बुन शुरू की और उन झिल्ली के टुकड़ों के अंदर फूट की कार्रवाई शुरू हुई। स्नायुमंडल का मसाला बाहर आना हुआ। अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग केंद्र कायम हुए। रग मंडल रचा गया। मेंढक बने ,मछलियां बनी, दिल दिमाग , पेट वगैरह जाहिर हुए। उड़ने वाली और पेड़ों पर घोसले बनाने वाली मछलियां प्रकट हुई । परन्द चरन्द जाहिर हुए । होते होते हजरत इंसान प्रकट हुए और हवानात का खनिजों व वनस्पतियों पर आधिपत्य हो गया। ठीक इसी तरह मनुष्य वर्ग के इस दुनिया में पांव जमाने , फैलने और तरक्की करने के सिलसिले में पहले पहले बहुत सादा इंसान जाहिर हुए। जिनमें हैवानों के मुकाबले थोड़ा ही फर्क था।  लेकिन जब उन्होंने धीरे-धीरे कीटाणुओं व हिसंक जंतुओं से बच कर जिंदा रहने की सूरत निकाल ली और उस तबका पर अपना कदम जमा लिया तो कवानीने कुदरत ने उधेड़बुन शुरू की और इंसानों में तफ्रीक का अमल शुरू हुआ। दिमाग में रोशनी जाहिर हुई, दिल में जोश उठा, देखने सुनने वगैरह की शक्तियाँ  जोर से काम करने लगी।क्रमशः                 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[8/20, 04:26] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत- कल से आगे- कुदरत की शक्तियों का इल्म जाहिर हुआ। देवताओं में आस्था, पितरों की पूजा का प्रारंभ हुआ। ईश्वर कोटि ऋषि प्रकट हुए। ब्रह्म विद्या का प्रकटन हुआ ।और ब्राह्मण जाति जलवानुमा हुई। और अवाम के दिलों पर कुदरत की शक्तियों और देवताओं का अधिकार कायम हो गया।  लोगों ने आवारागर्दी छोड़ दी । फने कृषि ज्ञात हो गया।मकानात तामीर होने लगे। वक्त पर बारिश हासिल करने के लिए इंद्र की पूजा और बीमारियों से सुरक्षा हासिल करने के लिए बड़े-बड़े यज्ञ होते थे। और मोक्ष के मुतअल्लिक़ गौर व मनन और साधन करने के लिए बड़े-बड़े आश्रम कायम हुए। कुछ अर्सा बाद ब्राह्मणों में गिरावट शुरू हुई मगर नौए इंसान की हिफाजत के लिए लूटमार का इल्म ईजाद हो गया । क्यों खेती करने की जहमत उठाई जाए?  क्यों बारिश के लिए इंद्र के सामने गिड़गिड़ायें? क्यों न उन लोगों को लूट लें जिनकी खेतियाँ हरी है?  क्यों ना दूसरी समृद्ध कोमो को लूट कर फौरन अमीर हो जाये? यह क्षत्रिय जाति की शुरुआत थी। तलवारे,कुल्हाड़ियाँ, तीरोकमान ईजाद हुए । फने युद्ध व जंग दरमाफ्त हुआ।जंग के देवता रुद्र की पूजा होने लगी । मारकाट धर्म हो गया। क्षत्रियों के राज का डंका बज गया । ब्राह्मण धर्म नीचा हो गया।  ब्राह्मणों का काम आमतौर जंग में फतह हासिल कराने और कत्ल व खून के पाप साफ कराने के कर्म कराना रह गया। वह कभी शगुन दरयाफ़्त करते थे कभी ग्रहों व नक्षत्रों से मदद लेते थे। हुकूमत व ब्रह्म विद्या दोनों क्षत्रियों के घर चली गई । मगर आम तौर लूटमार का बाजार गर्म होने से जल्द ही क्षत्रियों में गिरावट शुरू हुई और कुदरत ने जोर लगाकर तीसरा मरकज यानी वैश्य वर्ण जाहिर किया। ऐश के सामान तैयार होने लगे ।कश्तियां चलने लगी। तलवार की चमक और कमान की टंकूर के बजाय जवाहरात की चमक और रुपए की झंकार दिखलाई व सुनाई देने लगी। जंगोजदल करके अपनी जान को खतरे में डालें? खेती के लिए दोपहर में क्यों अपना सर जलायें?  क्यों ना 4 आने की चीज ₹4 में फरोख्त करके पौने चार रुपये कमा लें और उस कमाई का एक अंश खर्च करके सेना नौकर रख ले? गरजे की रेलें चलने लगी।क्रमशः                   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[8/21, 04:25] +91 97176 60451: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- कल से आगे:- भाप का जहाज और हवाई जहाज दौड़ने लगे। किस्म किस्म की भोग विलास के समान ईजाद हुए। क्षत्रिय धर्म को पराजय हुई ।वैश्य धर्म का डंका बजने लगा । गरीब ब्राह्मण एक एक पैसे में बिकने लगा । दर बदर पर भीख मांगने के लिए मजबूर हो गया!  मगर वैश्य धर्म भी पतित हो गया । हर चीज में मिलावट हर काम में नफा के लालच से धोखा । भाई को भाई का ऐतबार नहीं। बाप को बेटे का भरोसा नहीं। लोभ व मोह का बाजार गर्म और पूजा-पाठ का बाजार ठंडा।  जनता रुपया ऐश के पीछे दौड़ रही है । जिस गरज से कुदरत ने धरातल पर मानुषी चमक जाहिर किया था मृत हो रही है। मजबूरन कवानीने  कुदरत को चौथा मरकज कायम करना पड़ा। कुदरत पराजय नहीं खा सकती। उसके पास अनगिनत साधन है। गर्जे की शुद्र धर्म की बारी आई। सब काम वोट से चलता है। न कोई मंत्र को पूछता है न तलवार को और न रुपय को। पूछ है तो वोट की। स्ट्राइक पर स्ट्राइक होने लगी। बड़ी बड़ी तिजारतें गारत हो गई। दुनिया भूखी मर रही है। हर मुल्क कर्जे के नीचे दबा है। खलकत का कचूमर निकल रहा है । करोड़ो आदमी बिमारियों से मर रहे हैं जंग के बाद जंग की तैयारियां हो रही है। ऐसे ऐसे हथियार ईजाद हो चुके हैं कि आनन-फानन में शहर के शहर गारत कर दिये जावें। कौमें पेट पर पत्थर बांधकर गुजारा कर रही है। और सब का सब रुपया सामाने हर्ब पर खर्च  किया जा रहा है। खलकत तबाही के गढे में जा रही है। हर तरफ हाहाकार मचा है।  ईश्वर को जवाब और धर्म को धक्के मिल रहे हैं।  बहुत संख्या ही सब कुछ है। बहुसंख्या की पूजा और बहुसंख्या ही का राज है। दुनिया का यह हाल देख कर कवानीने कुदरत कैसे चुप रह सकते है?  जमीन की यह दयनीय दशा देखकर कुदरत को जोश आया। आसमान हिल गए ब्रह्मांड और सत्त देश में खलबली मच गई। परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी दयाल दुनिया में तशरीफ़ आवर हुए। सत्संग कायम हुआ । सच्चे धर्म को उन्नति देने के लिए तैयारियां शुरू हुई। इसी सिलसिले में हम और आप आज मिलकर बैठे हैं। हम बडे बदकिस्मत हैं कि ऐसे ख़राब जमाने में पैदा हुए लेकिन हम निहायत ही खुश किस्मत हैं कि हम महज पेट भरने व अण्डे बच्चे पैदा करने के लिए यह नहीं आये। हमारे जिम्में खास सेवा है हम लोग सच्चे मालिक के खिदमतगार है । हम लोग  सच्चे शूद्रो की तरह सेवा करेंगे । हम सच्चे ब्राह्मणों की तरह अपने हृदय को शुद्ध रखकर कुलमालिक के साक्षात्कार का साधन करेंगे। हम सच्चे क्षत्रियों की तरह धर्म व ब्रह्म विद्या की रक्षा करेंगे।  हम सच्चे वैश्यों की तरह जन सामान्य को सुख पहुंचाने की कोशिश करेंगे। कुदरत ने अब पाँचवाँ मरकज कायम किया है और कुदरत हमसे सेवा लिया चाहती है । कुदरत हमसे 4 बातें चाहती हैं।(1) हम हक व हलाल की कमाई से गुजारा करें ताकि हमारे जिस्म व मन शुद्द रहे। (2) हम सुबह व शाम साधन करके अपने हृदय को शुद्ध करें और सच्चे मालिक के चरणो को स्पर्श करने के अधिकारी बनें। (3) हम आपस में सच्चा भाई जैसा बर्ताव करें और(4) जब दुख तकलीफ या मुसीबत सर पर आवे तो सच्चे मालिक को याद करके दया व मेहर माँगे। इस किस्म की जिंदगी बसर करने से न सिर्फ हमारा बल्कि दुनिया का कल्याण होगा। यही सेवा कवानीने कुदरत हम से लिया चाहते हैं । ●क्या आप इस सेवा के लिए तत्पर है ?● जो शख्स इस सेवा के लिये तत्पर है वही राधास्वामी दयाल का सच्चा सिपाही है।।             🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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