Thursday, August 20, 2020

सत्संग के पाठ औऱ वचन

*राधास्वामी!-20-08-2020

-सुबह-- शाम  के सतसंग के पाठ-  औऱ  वचन 

 (1) सुरत आज चली आरती धार। गुरुन पै चली आरती धार।। महासुन्न चढ भँवरगुफा पर। भँवरकली मुरली झनकार।।-(हीरे लाल निछावर कीन्हे। उमँग बढी जाका वार न पार।।) (सारबचन-शब्द-20वाँ,पृ.सं.154)                                                                 

 (2) बोल री मेरी प्यारी मुरलिया। तरस रही मेरी जान।।(मुर०) -(राधास्वामी दया अधर चढ आई। सत पद दरस दिखान।।(मुर०)) (प्रेमबानी-2-शब्द-18,पृ.सं.291)                                            

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज 

-रोजाना वाकिआत- कल से आगे- 

कुदरत की शक्तियों का इल्म जाहिर हुआ। देवताओं में आस्था, पितरों की पूजा का प्रारंभ हुआ। ईश्वर कोटि ऋषि प्रकट हुए। ब्रह्म विद्या का प्रकटन हुआ ।और ब्राह्मण जाति जलवानुमा हुई। और अवाम के दिलों पर कुदरत की शक्तियों और देवताओं का अधिकार कायम हो गया।  

लोगों ने आवारागर्दी छोड़ दी । फने कृषि ज्ञात हो गया।मकानात तामीर होने लगे। वक्त पर बारिश हासिल करने के लिए इंद्र की पूजा और बीमारियों से सुरक्षा हासिल करने के लिए बड़े-बड़े यज्ञ होते थे। और मोक्ष के मुतअल्लिक़ गौर व मनन और साधन करने के लिए बड़े-बड़े आश्रम कायम हुए। कुछ अर्सा बाद ब्राह्मणों में गिरावट शुरू हुई मगर नौए इंसान की हिफाजत के लिए लूटमार का इल्म ईजाद हो गया । क्यों खेती करने की जहमत उठाई जाए? 

 क्यों बारिश के लिए इंद्र के सामने गिड़गिड़ायें? क्यों न उन लोगों को लूट लें जिनकी खेतियाँ हरी है?  क्यों ना दूसरी समृद्ध कोमो को लूट कर फौरन अमीर हो जाये? यह क्षत्रिय जाति की शुरुआत थी। 

तलवारे,कुल्हाड़ियाँ, तीरोकमान ईजाद हुए । फने युद्ध व जंग दरमाफ्त हुआ।जंग के देवता रुद्र की पूजा होने लगी । मारकाट धर्म हो गया। क्षत्रियों के राज का डंका बज गया । 

ब्राह्मण धर्म नीचा हो गया।  ब्राह्मणों का काम आमतौर जंग में फतह हासिल कराने और कत्ल व खून के पाप साफ कराने के कर्म कराना रह गया। वह कभी शगुन दरयाफ़्त करते थे कभी ग्रहों व नक्षत्रों से मदद लेते थे। हुकूमत व ब्रह्म विद्या दोनों क्षत्रियों के घर चली गई । 

मगर आम तौर लूटमार का बाजार गर्म होने से जल्द ही क्षत्रियों में गिरावट शुरू हुई और कुदरत ने जोर लगाकर तीसरा मरकज यानी वैश्य वर्ण जाहिर किया। ऐश के सामान तैयार होने लगे ।कश्तियां चलने लगी। तलवार की चमक और कमान की टंकूर के बजाय जवाहरात की चमक और रुपए की झंकार दिखलाई व सुनाई देने लगी। जंगोजदल करके अपनी जान को खतरे में डालें? 

खेती के लिए दोपहर में क्यों अपना सर जलायें?  क्यों ना 4 आने की चीज ₹4 में फरोख्त करके पौने चार रुपये कमा लें और उस कमाई का एक अंश खर्च करके सेना नौकर रख ले? गरजे की रेलें चलने लगी।

क्रमशः                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

*परम गुरु  हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे :-(5) 

जो सच्चे परमार्थी जीव है उनको संत सतगुरु या साधगुरु जरूर मदद देते हैं और जो वे उनका बचन मानकर सत्संग और अंतर अभ्यास बराबर करें जावेंगे तो ऐसे जीवो को थोड़ी बहुत पहिचान भी पूरे गुरु की आहिस्ता आहिस्ता आती जावेगी ।  पर जब तक की अंतर में सफाई अच्छी तरह न होवेगी और सच्चे मालिक का सच्चा प्रेम थोड़ा बहुत मन में नहीं आएगा, तब तक यह पहचान पक्की नहीं होवेगी और न हर वक्त कायम रहेगी।।                                            

(6) अंतर की सफाई से मतलब यह है कि मन में चाह संसार के दो भोग बिलास की और उसकी तृष्णा बाकी न रहे।।                        

जरूरी और वाजिबी चाह वास्ते अपने और अपने कुटुबं के पालन और पोषण में औसत यानी मध्य के दर्जे पर सच्चे परमार्थ की प्राप्ति में इस कदर विघ्न नहीं डालती है, पर अनेक तरह की चाहों का मन में भरा रहना और नित्त उनका बढ़ाना और उन्हीं के पूरा करने के निमित्त जतन और मेहनत करते रहना मन को मैला करता है। और ऐसे मन में सच्ची प्रीति और प्रतीति का सच्चे मालिक और सच्चे गुरु के चरणों में ठहरना और उनकी दया की परख और पहिचान का आना मुश्किल है।क्रमशः                             

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

*राधास्वामी!! 20-08-2020-

आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-   

                             

 (1) देख जग का ब्योहार असार। करत रहा मन में नित्त बिचार।।-(खोज उसका भी कुछ नहिं कीन। धारना पिंड रिदे में कीन।। ) (प्रेमबानी-3-शब्द-8 पृ.सं.345)                                                               

(2) ऐसी होली रचाई (दयाल ने)।टेक।                                           

आलस नींद तजी जिन जीवन, जुडमिल गुरु ढिंग जाई। सुन सुन गुरु प्यारे के बचना, धीरज मन बिच लाई। मेहर की परख कुछ पाई।५। (प्रेमबिलास-शब्द-35,पृ.सं.46)                                                                  

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी!! 20-08 -2020- 

आज शाम के सबसे पढा गया बचन- कल से आगे -(83) 

राधास्वामी-मत मनुष्य की इन अनुचित बातों को देखकर करुणार्द्र हो जाता है और समझाता है - हे तुच्छ पात्र! केवल हल्दी की एक गाँठ पाकर पंसारी बन बैठा?  रचना में तेरा पद अवश्य बडा है किंतु अभी तो तू कामनाओं का अधीन और जीवन का मलीन है। क्या तुझे अपनी विवशता और मलिनता का ज्ञान नहीं?- 

कहां गई वो तेरी बुद्धि? देख! गर्मी सर्दी, भूख प्यास तुझे अलग आकुलित करती है; आधि ब्याधि,जरा मरण तथा कराल भूचार तुझे अलग ही पददलित करते है।  यदि अभी तुझे कुछ रसाल फल का आहार करावें तो देखते ही देखते थोड़े ही काल तेरे पेट में रहकर वे फल मल की राशि में बदल जाते हैं। बस इसी पात्रता पर फूल और भूल गये? जरा चेत कर, और अपने हित की बात सुन-                                            

नसीहत गोशकुन जानाँ कि अज जाँ दोस्ततर  दरिन्द। जवानाने सआदतमन्द पन्दे पीरे दाना रा।।  अर्थ -हे प्यारे!  इस शिक्षा को चित्त देकर सुनों क्योंकि आज्ञाकारी युवक बुद्धिमान बृद्धजनो की सीख को प्राण से प्यारा रखते हैं।   

                                        

तूने अभी अपने देह के दो तिहाई अंश को जगाया है। तुझे खाने के लिए हरा बादाम दिया गया था। तूने ऊपर का हरा छिलका खा लिया,  बीच का कड़ा छिलका चबा लिया , किंतु अभी तुझे बादाम की गिरी चखने का संयोग प्राप्त नहीं हुआ। 

मनुष्य शरीर एक राजमहल है जिसका अधिपति आत्मा है परंतु वह अधिपति मोहनिद्रा से ग्रस्त है , और आत्मा का एक किंकर अर्थात मन जोकि जागृत है, उस महल और उसकी सब सामग्री को अपनी संपत्ति समझ कर दिन रात आनंद मंगल मनाता है।

 जैसे तूने बुद्धि और योग्यता से काम लेकर अपनी शारिरिक शक्तियाँ, और प्रयत्न तथा प्रयास से मानसिक शक्तियाँ जाग्रत की ऐसे ही बुद्धि तथा योग्यता और प्रयत्न का प्रयोग करके अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को भी जागृत कर।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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