Thursday, August 13, 2020

आज शाम का सतसंग

 **राधास्वामी!

!-13-08-2020

-आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ- 

                          

(1) मनुआँ हठीला कहन न माने। भोगन में रस लेत।।-(राधास्वामी जब निज दया बिचारें। तब छूटे जम खेत।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-3,पृ.सं.338)                                              

(2) सतगुरु के निज पियारे, किस सोच में रहाये।।टेक।। राधास्वामी मत में होकर, समरथ की ओट गहकर। उपदेश उनका लेकर, क्या सोच मन में लाये।।-( पडना न मन के बस में, बैरी बडा यह घट में। मत आना इस झपट में, गुरु प्रीति चित बसाये।।) (प्रेमबिलास-शब्द-32,पृ.सं40)                                                                  

   (3)यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी!!                                  

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे-( 77) 

जोकि इस समय विज्ञान तथा कलाकौशल का जोर है और उनके बल से मनुष्य ने बहुत सी प्रकृति की शक्तियों -आग ,बिजली आदि को स्ववश कर लिया है, इसलिए उसको भ्रम हो रहा है कि महापुरुषों की आध्यात्मिक गति और ऊंचे स्थानों के संबंध में जो कुछ वर्णन किया जाता है सब मिथ्या है क्योंकि वे लोग न तो अधिक लिखे पढ़े थे, न  आजकल की विद्याओं से अभिज्ञ थे। उनके मतानुसार यदि शक्ति है तो साइंस में है, यदि सीखने के योग्य कोई विद्या है तो साइंस है , और कौतुक यह है कि महापुरुषों के भक्तों ने भी कुछ श्रद्धा के आवेश में और कुछ अविचारिता से उनके संबंध में ऐसी बुद्धि- विरुद्ध अलौकिक घटनाएँ तथा चमत्कार प्रख्यात कर रक्खे हैं जिनका छिद्रन्वेशण आजकल के शिक्षित समाज के लिए बायें हाथ का खेल है । परिणाम यह है कि लोगों की महापुरुषों में श्रद्धा उत्तरोत्तर कम हो रही है और साध सन्त तथा सच्चा परमार्थ अर्थात् अध्यात्मविद्या संसार में निन्दित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त स्वार्थसाधकों और पापआत्माओ ने महात्माओं का बाहरी वेशभूषा तथा आचार व्यवहार धारण करके ऐसा उत्पात मचा रखा है कि सच्चे परमार्थ के प्रेमियों के लिए कुलमालिक का नाम तक मुख से उच्चारण करना कठिन हो रहा है। तथा बहुत से लोग दूसरे देशों के विद्वानों की ऐसी रचनाएँ पढ़कर, जिनमें वस्तुतः ईसाई- मत कि नष्ट -भ्रष्ट शिक्षा की आलोचना की गई है, परमार्थ अर्थात् धर्म -पथ और कुलमालिक ही से विमुख हो रहे हैं ।उन्हें यह विचार नहीं होता कि उन विद्वानों का आक्षेप धर्म -पथ संबंधी उस विशेष शिक्षा पर है जो उन्होंने अपने देश में पादरी लोगों के द्वारा प्राप्त की और यह कि पादरियों के भ्रममूलक तथा भ्रमोत्पादक बातों के लिए हजरत मशीह और खुदा को उत्तरदाई ठहराना कैसे धर्मसंगत हो सकता है ।।                                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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