Monday, August 31, 2020

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत-

 कल से आगे :- 

3:00 बजे स्त्रियों का जलसा हुआ जिसमें करीबन 5 हजार बहने शरीक हुई और सहमति से चार रिजोल्यूशन पास हुए:

-(1) अब चूँकि संगत के लिए गुड़िया का खेल खेलने का जमाना नहीं रहा है, हर बहन आज से अपने स्वयं को सत्संग की मशीन का एक उपयोगी पुरजा कल्पना करेगी और कभी जुबान से ऐसा वाक्य न निकालेगी जिससे राधास्वामी दयाल, राधास्वामी सत्संग या किसी सत्संगी भाई की बुराई हो।।                                           

(2) घर में रहते हुए और घर के सब काम काज करते हुए हर बहन याद रखेगी कि वह राधास्वामी दयाल की सुपुत्री है, और अपने सब काम ऐसे तरीके और सलीके से करेगी जो राधास्वामी दयाल की सुपत्रियों को शोभा देता है।                                                    

( 3)  हर बहन अपनी औलाद को जिस्म की तंदुरुस्त व खूबसूरत, दिमाग की तेज दिल की साफ व भगतीवान बनाने की कोशिश करेगी।                                                            

(4) हर बहन हमेशा कोशिश करेगी कि उसके घर में जहां तक मुमकिन हो दयालबाग की निर्मित वस्तुएं प्रयुक्त हों। इसके बाद सब बहनों ने जोर से नारा लगाया " हम राधास्वामी दयाल की सुपुत्रियाँ है"  और जलशा बर्खास्त हुआ ।।                     शाम को मेडिकल स्कूल आगरा के प्रिसिंपल मिलने के लिए आये। परमार्थ के बड़े शौकीन है। दिल में दो सवाल लेकर आए थे ।  इत्तिफाक से उन्ही दो सवालों का जिक्र मेरी जबान से हो गया। इस तजर्बे से वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा जब बचपन के जमाने में हुजूर महाराज की खिदमत में हाजिर हुए थे उस वक्त भी ऐसा ही तजर्बा हुआ था।  मैंने समझाया कि परमार्थ में ऐसी बातों को ज्यादा अहमियत न दी जावे और दो किताबे अध्ययन करने का मशवरा दिया। उन्होंने यह भी बताया कि उनका दयालबाग आने का इरादा अर्सा से था लेकिन उनसे एक दोस्त ने कह दिया कि राधास्वामी मत  नास्तिक मत है । इसलिये वह बाज रहे। वाकई दोस्त हो तो ऐसे ही सतर्क हों। क्रमशः                         

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

परम गुरु हुजूर महाराज- 

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-( 18 )- 

यह ख्याल इन विद्यावान् और बुद्धिवान् लोगों का गलत है। सच्चा मालिक अरुप और अकर्त्ता भी है और रुपवान  और कर्ता भी है। जो वह आदि में रुप नहीं धरता, तो रचना में कोई रुप प्रगट नहीं होता।।      

                                        

(19)  अब ख्याल करो कि आदमी इस लोक की रचना में सबसे श्रेष्ठ और उत्तम है और उसको कुल इख्तियार और हुकूमत इस लोक में दी गई है । उसका जो रूप है वही रूप या  उसका नक्शा या खाका थोड़ी बहुत कमी के साथ सब जानदारों में जैसे चौपाये और परंद और कीड़े मकोड़े वगैरह में बराबर नजर आता है।  

जब कि नीचे की रचना में इसी आदमी का रुप या उसका नक्शा या खाका बराबर चला गया है, तो अब दरयाफ्त करना चाहिए कि आदमी का रूप कहां से आया, यानी ऊपर के लोकों की रचना में यही रुप बढके दर्जे का जरूर होगा और कोई ऐसा स्थान रचना में जरूर है कि जहाँ आदि में आकार स्वरूप मालिक का प्रगट हुआ और फिर उससे नीचे की रचना में उसी का नक्शा या खाका दर्जे बदर्जे कमी के साथ बराबर चला आया है

। क्रमशः            

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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