Wednesday, August 5, 2020

अपने को तू आप न janaa......

कौन है तू कहां से आया , चला  कौन से  पंथ ।

अपने  को  तू  आप  न  जाना पढ़ि - पढ़ि कोटिन ग्रन्थ ।।

जिनके मन विस्वास है सदा गुरू  है  संग ।
कोटि काल झकझोरिये  तऊ न भींजे  अंग ।।

    
 मेरे प्रेमी भाईयों ! हम दुनिया में  काम करने  के लिए भेजे गए हैं , आराम करने  के लिए  नहीं । यहां  हम आराम को  काम  पर तरज़ीह देते  हैं । एक इन्सान  को छोड़कर सारे पशु - पक्षी , चरिन्द , परिन्द , दरिन्द कल की फिक्र  से  आजाद हैं और ज्यादे सुखी हैं । उनको  अपने  मालिक  पर  हमसे  आपसे  अधिक  विश्वास है । वह हमसे  आपसे  बेहतर  शुक्रगुजार  हैं । 

      
और  उस मालिके - कुल  का  नायब  यह  इन्सान  कल  की  फिक्र में  सरगर्दां  है । उसे  भूल  कर  भी  यह खयाल  नहीं  आता कि जब हम निहायत बच्चे थे  और मुंह में  दांत  नहीं थे तो  उस परम दयालु  ने हमारे  लिए  हमारी  माओं  की  छातियों  में  दूध  उतारा था । अब जब उसने दांत दिया है तो पेट भरने  के  लिए  अन्न भी  देगा ।

      
भाईयों ! कभी  गौर करियेगा , हम रोटी के लिए फिक्रमंद  नहीं  हैं  हम  आराम  की  तलब  में  परेशान  हैं ।  कितने  सरंजाम  जुटा  लें  कि  हमें  थोड़ा  आराम  मिले । आराम  के  साधन  जुटाने  की  चिन्ता  ने  हमारा  आराम  और  चैन  हराम  कर  दिया  है ।

      
इसके  लिए  हम  किताबों  की  तरफ  तवज़्जह नहीं देते  बल्कि  पड़ोसियों  की  तरफ  ध्यान  देते  हैं  कि  फलां  के  घर  यह - यह  सामान  है  मेरे  घर  नहीं , अब कैसे  हासिल  हो ? यह हासिल करने  की  हवस ही  हमारा  मतलूब  भी  होता  है  और  मक़सूद  भी । यही  अभिलाषा  और  कामना  हमको  दौड़ाये  फिरती  है  और जिन्दगी  का  असल  मकसद  पीछे  छूट  जाता  है ।

    
सबसे  बड़ी  बात  जो  हमें  अपनानी  तथा  सीखनी  चाहिए  , वह है  अपने  मुकद्दर  पर राज़ी  रहना  और  उसने  जो  अपनी  रहमत  से  अता  किया  है  उसपर सब्र और  क़नाअत  करना । धैर्य  और संतोष से  बढ़कर  दूसरा  कोई  मानवीय  गुण  नहीं । इन  गुणों  के  आते  ही  बाकी  सारे  अवगुण  धीरे - धीरे  पीछे  छूटने  लगते  हैं ।

       
हर  हाल में  उसका  शुक्रगुजार  होना । हमें  उसका  शुक्रिया  अदा  करते  रहना । जबान  से  ही  बार - बार  उसको  धन्यवाद  देते  रहने  से  यह धन्यवाद  के  गहन  भाव  अपने  आप  भीतर  उतरने  लगेंगे ।

      
मेरे  प्रेमी  भाईयों ! कदम - कदम चल कर मंजिल सर होती  है । बहुत तेज  दौड़ने  वाला  हांफ  कर  और  थक कर  बैठ  जाता । फिर उसे  खड़े  रहने  में  भी  दिक्कत होती  है , वह  चलेगा  क्या ?

       
वह तुम्हारी दिखावे की इबादतों से राजी नहीं । उसकी रजा को हासिल करने  का  एक ही  तरीका  है कि किसी  का  दिल  न  दुखायें  और  जितना  हो  सके  उतना गरीबों  और  मिस्कीनों  को सुख  पंहुचाए , उनकी   मदद करें । वह गरीबनवाज़ है , उसे  आजतक किसी ने  अमीरनवाज़  नहीं  कहा । उसने  तो  अपने  फ़ज़ल से  उनको  राहत बख़्श  दी  है । 

        
हमारे  जिम्में  है कि  हम  उसकी सिफ़्तों को ( गुणों को ) अपनाएं । वह अपनी  मख़्लूक ( रचित सृष्टि ) में  किसी से नफरत  नहीं  करता , हम भी  नफ़रतों  से  मुंह फेर  लें । वह सबसे प्रेम करता  है , सबके  प्रति  करुणा  और  दया  का  भाव  रखता  है  या  करता  है । हमें  भी  सबसे  प्रेम  करना  चाहिए  तथा  सबके  लिए  हमारे  मन में  करुणा  और  दया  होनी चाहिए ।

     
वह  प्रेम  और  गुणों  पर  रीझता  है , और  जिसपर  रीझता  है  उन्हीं  पर  अपने  राज  खोलता  है ।

    
यदि  आप  को  ईश्वर  की  तलाश  है  तो  आप  को  स्वयं  ईश्वर के  समस्त  गुणों  को  अपनाना  होगा । आराम की  ख्वाहिश  छोड़कर  काम  पर  लगना होगा ।

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       मालिक  दयालु  दया  करे 

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        अदना  गुलाम गुलाब  दास  क़ादरी 
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