Thursday, August 20, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज़ 

 -रोजाना वाकिआत- कल से आगे- 

कुदरत की शक्तियों का इल्म जाहिर हुआ। देवताओं में आस्था, पितरों की पूजा का प्रारंभ हुआ। ईश्वर कोटि ऋषि प्रकट हुए। ब्रह्म विद्या का प्रकटन हुआ ।और ब्राह्मण जाति जलवानुमा हुई। और अवाम के दिलों पर कुदरत की शक्तियों और देवताओं का अधिकार कायम हो गया।  

लोगों ने आवारागर्दी छोड़ दी । फने कृषि ज्ञात हो गया।मकानात तामीर होने लगे। वक्त पर बारिश हासिल करने के लिए इंद्र की पूजा और बीमारियों से सुरक्षा हासिल करने के लिए बड़े-बड़े यज्ञ होते थे। और मोक्ष के मुतअल्लिक़ गौर व मनन और साधन करने के लिए बड़े-बड़े आश्रम कायम हुए। कुछ अर्सा बाद ब्राह्मणों में गिरावट शुरू हुई मगर नौए इंसान की हिफाजत के लिए लूटमार का इल्म ईजाद हो गया ।

 क्यों खेती करने की जहमत उठाई जाए?  क्यों बारिश के लिए इंद्र के सामने गिड़गिड़ायें? क्यों न उन लोगों को लूट लें जिनकी खेतियाँ हरी है?  

क्यों ना दूसरी समृद्ध कोमो को लूट कर फौरन अमीर हो जाये? यह क्षत्रिय जाति की शुरुआत थी। तलवारे,कुल्हाड़ियाँ, तीरोकमान ईजाद हुए । फने युद्ध व जंग दरमाफ्त हुआ।जंग के देवता रुद्र की पूजा होने लगी । 

मारकाट धर्म हो गया। क्षत्रियों के राज का डंका बज गया । ब्राह्मण धर्म नीचा हो गया।  ब्राह्मणों का काम आमतौर जंग में फतह हासिल कराने और कत्ल व खून के पाप साफ कराने के कर्म कराना रह गया। वह कभी शगुन दरयाफ़्त करते थे कभी ग्रहों व नक्षत्रों से मदद लेते थे। हुकूमत व ब्रह्म विद्याh दोनों क्षत्रियों के घर चली गई । 

मगर आम तौर लूटमार का बाजार गर्म होने से जल्द ही क्षत्रियों में गिरावट शुरू हुई और कुदरत ने जोर लगाकर तीसरा मरकज यानी वैश्य वर्ण जाहिर किया। ऐश के सामान तैयार होने लगे ।कश्तियां चलने लगी। 

तलवार की चमक और कमान की टंकूर के बजाय जवाहरात की चमक और रुपए की झंकार दिखलाई व सुनाई देने लगी। जंगोजदल करके अपनी जान को खतरे में डालें? खेती के लिए दोपहर में क्यों अपना सर जलायें?  क्यों ना 4 आने की चीज ₹4 में फरोख्त करके पौने चार रुपये कमा लें और उस कमाई का एक अंश खर्च करके सेना नौकर रख ले? गरजे की रेलें चलने लगी।क्रमशः                 

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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