Wednesday, August 5, 2020

........सदा गुरु है पास

जिनके मन विस्वास है सदा गुरू है पास।

कोटि काल झकझोरिये तऊ न छांड़े आस।।

ब्रह्महि  से  जग  ऊपजे. कहत. सयाने  लोग ।
ताहि  ब्रह्म  के  त्याग  बिनु  जगत  न  त्यागन  जोग।।

    मेरे  प्रेमी  भाईयों! पूरी  दुनिया पर एक संकट का बादल  घिर आया  है । साधु - पुरुष  बरसों  पहले  से चेतावनी  दे  रहे  हैं  कि  आने  वाला  वक़्त  बहुत  खराब   है । लोग अपनी  आदतें  और  अपने  विचार बदल डालें  । लेकिन वह इन्सान ही क्या जो इतनी जल्दी  किसी  की  बात मान ले । इन्सान  का  सबसे  अज़ीज हादी ( पथप्रदर्शक ) शैतान ही है, जो शबो - रोज  उसे  गुमराह  करता  रहता  है ।

    
 मेरे प्रेमी भाईयों! आने  वाले वक़्त में  अंधेरे  और घने  होंगे  और मुसीबतें ज्यादा बढ़ जाने  के इम्क़ानात ( संभावनाएं ) हैं । इस  मज़ीद इजाफ़े  में  राहत की एक ही बात हो  सकती है ( प्रचुर बढ़ोत्तरी) कि आदमी तौबा इख़्तियार करे और अपनी गलतियों पर नादिम हो ।

      वही बचेंगे और बचाये जायेंगे जिन्होंने इस चलती चक्की 
खूंटी की शरण पकड़ ली । खूंटी  के  पास के दाने पिसने से बचते ही हैं । बाकी जो चक्की के दरमियान आ गया उसका राम ही मालिक जाने कि क्या होना है ।

     
ऐ लोगों!  बदफेलियों और बदक़िरदारों से किनाराकश हो जाओ ।  उसके सामने रोओ, गिड़गिड़ाओ और निदामत के आंसू बहाओ । मुमकिन है कि उसकी रहमत जोश में आ जाए । बाकी तुम्हारा पढ़ा - लिखा और समझदार होना तुम्हारे हक़ में  मुफ़ीद न  होगा। तुम्हारा ज़ीशान व बावक़ार होना उसके सामने कौड़ियों की भी हैसियत नहीं  रखता ।

    हर  कुज़ा  अब्रे  रवां  गुंचा  बूद ।
    हर  कुज़ा  अश्क़े  रवां  रहमत बूद ।।
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मौलाना  रूम  रहमतुल्ल्लाह अलैहि

   जब बादल बरसते हैं तो गुंजे हरे - भरे हो, खिल उठते  हैं  और जब आंखें बरसती हैं  ( उसकी मुहब्बत में  या पश्चाताप में )  तो उसकी  रहमत  बरस  पड़ती है ।


    
 यह एक मौका है अपने माज़ी ( भूतकाल ) के चरित्र, अपनी करतूतों  और अपने  बदख़याली  या  नेकख़याली  को  निरखने और परखने का ।

     
ऐ लोगों ! कि होश  में  आओ  और  नेकों  का  वसीला  तलाश  करो । अपने आप को उनके सुपुर्द करो कि घड़ियां  बहुत  नाज़ुक  हैं ।

   
  अब सब्र न हो सकेगा तुमसे कि अपनी ज़ात में तनहा हो । बे यारो  मददगार। वह कबसे तुम्हारी राह देख रहा और एक तुम हो कि उससे मुंह फेरे  कर बैठे हो ।

     
  सांस - सांस में हरि भजो, वृथा जनम मति खोय।
       का  जाने  इस सांस का आवन  होय   न  होय।।
       जेता  घट  तेता  मता  बहु  बानी  बहु  भेष।
       सब  घट  व्यापक  होइ  रहा  सोई  आप  अलेख ।।

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    मालिक दयालु दया करे

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अदना  गुलाम  गुलाब  शाह  क़ादरी
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