Wednesday, August 5, 2020

परमात्म गुरु निकट बिराजे

इश्क  अल्लाह  मलंग  मन  दिल  दरूंन  बिच  चौक ।

 रज्जब  मंजिल  आशिकां  अजब  बिना  लद  शौक ।।

 निराकार  का  नाम  तन , अलिफ  अलह  औजूद ।
 जन  रज्जब  यह  गहन  गति  मालिक  है  मौजूद ।।
  -----संत रज्जब जी 

    
 मेरे  प्रेमी भाईयों ! इस दुनिया  के बहुमुखी  वाद  में  फंसकर  यह  मन  भ्रम  का  शिकार  हो  गया है । बहेलियों  ने  चारों  ओर जाल  बिछा  रखें  हैं और  उन  जालों  पर  भांति - भांति  के  रंग - बिरंगे  दानें  फैला  रखे हैं ।  यह  दाने  शब्दों  के  हैं । और  लोग  हैं  कि  लगातार  एक  आकर्षण  में  खोये  हुए  इन  की  तरफ  लपक  रहे हैं  और  जाल  में  फंस  रहे  हैं ।

      
लोग अपने  लिए  आसानियां  चुनते  हैं । लोग  चाहते हैं  कि  कोई  ऐसा  सरल  मार्ग  हो  कि  हम  जो  कर  रहे हैं  वह  करते  भी  रहें तथा  पाप  से  भी  बचे  रहें  और  हमारी  सद् गति  भी  हो  जाए । 

     
राम  का  सौदा  तो  प्रेमी  भाईयों  सर दीने  का  सौदा है । सर दीने से  मतलब  सर  कटाना  नहीं , इस  सर  में  जो  मन  और  अहंकार  बैठा  है , उसे  देने  से  है ।  यह  कहने  में , सुनने  में  तो  बड़ा  सरल  और  आसान  है लेकिन  साधने  में  महाकठिन ।  सारी तपस्याओं  , सारे योग , जप - तप  के  केन्द्र  में  यही  है  कि मन ख्वाहिशों से  और भीतर  कुंडली  मारे  बैठे  अहंकार से  खाली  हो जाए । 
    
      
कमरा  सामानों  से  भरा  पड़ा  हो  तो  मेहमान  को  ठहरायेंगे  कहां ? कमरे  में  भरे  कूड़े - कबाड़  को साफ करना  होगा , उसकी  लिपाई - रंगाई  करके  चमकाना होगा । मेहमान  के  लायक इन्तजाम  करना  होगा  कमरे में  तभी  मेहमान  आकर  खुशी - खुशी  ठहरेगा ।

      
हम  जितनी भी  बातें  करलें , कोरी  बातें  ही  हैं , उनमें  न  रस  है  न  तत्त्व  है । केवल  बच्चों  के  खिलौने की  तरह खेलने  की  बातें  हैं ।

        
फ़कीर की सदा और संत की दया , दुनिया से  बेजार  कर देती  हैं  और भीतर  की  सफाई  कर देती  है यही जीवन की  सबसे  बड़ी  दौलत है । इन्सान  का  गुरु  इन्सान  नहीं  होता । गुरु  तो  एक  है , जिसका  नाम  है  ज्ञान , अनुभव  और  विवेक । समस्त  दुनिया  का  एक  ही गुरु  है जिसे  हम  परम्  दयालु , परम्  कृपालु  सच्चा  पथ - प्रदर्शक  और  हादी - ए - बरहक़  कहते  हैं ।

      
वही  है  जिसने  कानों  पर  ही  नहीं , दिलों  पर  भी  मुहर  लगा  रखी  है । वही  जिसको  चाहता  है  वही  हिदायत  पाता  है ।

        
परमातम  गुरु  निकट  बिराजे 
                      जाग   जाग   मन   मेरे  ।
        धाय  के  पीतम  चरनन  लागै
                      साईं   खड़ा  सिर  तेरे   ।
        जुगन   जुगन  तोहि  सोवत  बीता 
                      अजहू  न  जाग  सबेरे   ।
        ----कबीर  साहब 

       
बस  यदि  हम  और  कुछ  नहीं  कर  सकते  तो इतना  तो  कर  ही  सकते  हैं , नेक  खयाल बनें , नेक  आचरण  को  अपनाएं ।  घृणा , नफ़रत , अनाद , बुग़्ज़ , हसद  और  कीना  जैसे  बेहूदे  खयाल  से  बाज  आएं ।
सब  उसी  परमात्मा  की  रचना  हैं तो  किसी  से  नफरत  और  द्वेष  क्यों ?

     
 इल्म  जोई  अज़  कुतुबहाए  फ़सोस 
      ज़ौक़  जोई   तू  जे  हलवाए  सबोस 
-----मौलाना रूम रहम०

       
तू  बेकार  किताबों  में  इल्म  ढूंढ़ता  है , अर्थात  छिलकों  और  भूसी  में  हलवे  का  स्वाद  और  आनन्द  ढूंढ़ता  है ।

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      मालिक  दयालु  दया  करे 

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       अदना  गुलाम  गुलाब  दास  क़ादरी 

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