Sunday, August 9, 2020

कान का दर्द

.कान की व्यथा...*


मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई...

लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी है

कि आज तक हमने अपने दूसरे 

भाई को देखा तक नहीं 😪...

पता नहीं.. कौन से श्राप के कारण

हमें विपरित दिशा में चिपका कर

भेजा गया है 😠...

दु:ख सिर्फ इतना ही नहीं है... 

हमें जिम्मेदारी सिर्फ सुनने की मिली है..

गालियाँ हों या तालियाँ..,

अच्छा हो या बुरा..,

सब हम ही सुनते हैं...


धीरे धीरे हमें *खूंटी* समझा जाने

लगा...

चश्मे का बोझ डाला गया,

फ्रेम की डण्डी को हम पर फँसाया

गया...

ये दर्द सहा हमने...

क्यों भाई..???

*चश्मे का मामला आंखो का है*

*तो हमें बीच में घसीटने का* 

*मतलब क्या है...???*

हम बोलते नहीं तो क्या हुआ, 

सुनते तो हैं ना...

हर जगह बोलने वाले ही क्यों 

आगे रहते है....???


बचपन में पढ़ाई में किसी का दिमाग

काम न करे तो

*मास्टर जी हमें ही मरोड़ते हैं 😡...* 


जवान हुए तो

आदमी,औरतें सबने सुन्दर सुन्दर लौंग,

बालियाँ, झुमके आदि बनवाकर 

हम पर ही लटकाये...!!!

 *छेदन हमारा हुआ,*

*और तारीफ चेहरे की ...!*


और तो और...

श्रृंगार देखो... आँखों के लिए काजल...

मुँह के लिए क्रीमें...

होठों के लिए लिपस्टिक...

हमने आज तक कुछ माँगा हो तो

बताओ...

कभी किसी कवि ने, शायर ने 

कान की कोई तारीफ की हो तो बताओ...

इनकी नजर में आँखे, होंठ, गाल,

ये ही सब कुछ है...

*हम तो जैसे किसी मृत्युभोज की*

*बची खुची दो पूड़ियाँ हैं..,* 

जिसे उठाकर चेहरे के साइड में 

चिपका दिया बस...


और तो और,

कई बार *बालों के चक्कर में* 

*हम पर भी कट लगते हैं* ... 

हमें डिटाॅल लगाकर पुचकार दिया

जाता है...


बातें बहुत सी हैं, किससे कहें...???

कहते है दर्द बाँटने से मन हल्का 

हो जाता है...

आँख से कहूँ तो वे आँसू टपकाती

हैं...नाक से कहूँ तो वो बहाता है...

मुँह से कहूँ तो वो हाय हाय करके

रोता है...


और बताऊँ...

*पण्डित जी का जनेऊ,* 

*टेलर मास्टर की पेंसिल,* 

*मिस्त्री की बची हुई गुटखे की पुड़िया*

सब हम ही सम्भालते हैं...


और आजकल ये नया नया *मास्क*

का झंझट भी हम ही झेल रहे हैं...

कान नहीं जैसे पक्की खूँटियाँ हैं हम...


और भी कुछ टाँगना, लटकाना हो

तो ले आओ भाई...

तैयार हैं हम दोनों भाई...!¡!


😏😏😏.         


🙏🏻🙏🏻

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