Sunday, August 23, 2020

शाम के सतसंग का वचन

 *🌹परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज जी का पावन जन्मदिन (24 अगस्त 1818) कल (सोमवार) है।।                       🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌹**


**राधास्वामी!! 23-08-2020- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-                              

  (1) सिंध से आई सूरत नार। पिंड में आन फँसी नौ द्वार।।-(जुडा राधास्वामी संगत से नात। बचन सुन मन बुधि पाई शांत।। ) ( प्रेमबानी-3-शब्द-9,पृ.सं.348)                                                     

  (2) मेरी सुनो गुहार हे गुरु प्यारे।।टेक।। सब जीवन से कहूँ पुकारी। आन चढो हो जाओ पारे।।-(राधास्वामी दयाल यह अर्जी सुनिये। मान लेव निज दया धारे।। ) (प्रेमबिलास- शब्द-36,पृ.सं.49)                                       

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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राधास्वामी!!                                     

  23-08 -2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे -(86)

 इसके अतिरिक्त यह विचारणीय है कि जो कुछ ज्ञान हमें पंच ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त होता है उसमें प्रकृति की शक्तियों, प्रकाश, मध्याकर्षण आदि, का प्रभाव अवश्य सम्मिलित रहता है। जैसे ,सूर्य की किरणें  एक पेड़ पर चमकती है;  प्रत्येक किरण में सात रंग है ; पेड़ के पत्तों में ऐसा रसायनिक द्रव्य विद्यमान है कि वह हरे रंग वाले अंश के अतिरिक्त और सबको अपने में विलीन कर लेता है। जोकि पेड़ के पत्तों से केवल किरणों के हरे रंग वाला अंश परावर्तित होता है इसलिए वह सब हरे दिखलाई देते हैं। 

तात्पर्य यह की पत्तों का रंग स्वयं हरा नहीं है किंतु सूर्य की किरणों के हरे अंश के परावर्तित होने से ऐसा दृष्टिगत होता है। इसी प्रकार हमें संसार के पदार्थ भारी मालूम होते हैं और साधारण बोलचाल में हम किसी वस्तु को भारी और किसी को हल्की कहते हैं परंतु यह गुरुत्व या भारीपन का ज्ञान संसार की वस्तुओं पर माध्यआकर्षण के प्रभाव के कारण अनुभव होता है । 

यदि संसार में प्रकाश न हो तो दसज्ञानेन्द्रिय- द्वारा प्राप्त होने वाले रंगों का, और यदि माध्यआकर्षण का प्रभाव जाता रहे तो गुरूत्व के ज्ञान का अभाव हो जाए।  इन अनुभवों से यह परिणाम निकालतना अनुचित न होगा पंच ज्ञानेंद्रियों और बुद्धि के प्रयोग से जो कुछ ज्ञान प्राप्त किया जाता है वह न केवल परिमित है किंतु कृत्रिम है। भला ऐसे ज्ञान का क्या विश्वास और ऐसे ज्ञान से क्या लाभ?  

इसलिए महापुरुषों ने इसे ' मिथ्याज्ञान'  ठहराया है। आध्यात्मिक शक्तियों के जागृत होने पर मनुष्य को जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे 'अनुभवज्ञान' कहते हैं। उस ज्ञान में न पंच ज्ञानेंद्रियों और बुद्धि का हस्तक्षेप है न प्रकृति की भौतिक शक्तियों का । यह ज्ञान आत्मा अपने निजी शक्ति द्वारा स्वत:  प्राप्त करती है। यह हर प्रकार की मलिनता से विमुक्त और विशुद्ध है इसलिए इसे 'सत्यज्ञान'  कहते हैं । 

सो,जो लोग सत्यज्ञान के अभिलाषी हैं उन्हें समय निकालकर अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करने के लिए उचित उद्योग और साधन का प्रयोग करना चाहिए।।                                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग पहला -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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