Tuesday, August 11, 2020

परम् पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज की jai हों

 🌟🌟 *||!! मुबारक़ जन्म-दिवस !!||* 🌟

        *"राधास्वामी मत के सँस्थापक"  तथा  हमारे मत के प्रथम परम पूजनीय आचार्य और हम सब सत्संगियों के पथ - प्रदर्शक -*

*परम गुरु, परम पितु, परम प्रिय नाथ - "परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर "स्वामीजी महाराज"*

                        के

        *पावन पवित्र जन्म दिन*

          *【पावन-जन्माष्टमी】*

                        की

*सभी सत्संगियों को हार्दिक हार्दिक बधाई और शुभ-कामनाओं के साथ, -*

         उन सर्व-शक्तिमान, परम दयालु, कृपा-निधान, दया के सिंध, परम पिता- दाता दयाल के चरणों में नत-मस्तक हो कर प्रार्थना करते हैं की, हम आपके शरणागत जीव सदैव आपकी छत्र-छाया में पलते हुए, सत्संग और सेवा में निरंतरता से लगे रहें, और आपकी दया मेहर के आसरे सेवा में दिन प्रतिदिन उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए  उत्कृष्टता को प्रमाणित कर सकें।

🙏🙏 *【 याचक : स्वरूप दयाल सत्संगी = राजपुर (बड़वानी) 】* 🙏🙏

🙏🙏🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏🙏

करूँ बेनती राधास्वामी आज। काज करो और राखो लाज।। मैं किकंर तुम चरन नमामी। पाऊँ अगमपुर और अनामी।। कहँ लग बिनती कह कर गाऊँ। तुम्हरी सरन स्वामी मैं बल जाऊँ।। बिनती करनी भी नहिं जानूँ। तुम्हरे चरन को पल पल मानूँ।। तुम बिन और न दूजा कोई। सेवक मुझ सा और न कोई। सेवक मुझ सा और न होई। मैं जंगी तुम हो राधास्वामी।जोड मिलाया हो राधास्वामी। जोड मिलाया तुम अंतरजामी।। 


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परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज के पावन भंडारे के अवसर पर यह {प्रेम प्रचारक-विशेषांक} उनके चरध कमलो में अत्यंत श्रद्धा व दीनता के साथ सादर समर्पित है।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹●●●●●●●●●●●●●●●●●**


*(92) गुरु की पूजा गोया मालिक की पूजा है, क्योंकि मालिक कहता है कि जो गुरु द्वारे मुझको पूजेगा, उसकी पूजा कबूल करूँगा और जो गुरु को छोड कर और और पूजा करते है, उनसे मैं नहीं मिलूँगा। जो कोई यह कहे कि गुरु की पहिचान बताओ तो हमको यकीन आवे, तब हम गुरु की पूजा करें तो उससे यह सवाल है कि तुम जो मालिक की पूजा करते हो उसकी पहचान बताओ कि तुमने उसकी पहचान कैसे करी है। जो मालिक की पहचान है वही गुरु की पहचान है, क्योंकि हरि गुरु एक है, उनमें भेद नहीं। पर हरि की पूजा करने से हरि नही मिलेगा और सतगुरु की पूजा करने से हरि मिल जावेगा, इतना गौर कर लेना चाहिए। और जो कोई यह कहे कि जब हरि गुरु एक हैं तो हम हरि की ही पूजा न करें, गुरू की पूजा क्या जरुर है, सो यह बात नही हो सकती है। पहले भक्ती सतगुरु की करनी पडेगी, तब वह मिलेगा। यह कायदा उसने आप मुकर्रर किया है कि जो गुरु द्वारे मूझसे मिलेगा उससे मैं मिलूँगा, निगुरे को मेरे यहाँ दखल नही है। और गुरु पूरा चाहिए।। (सारबचन नसर-2-परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज)**


**गुरु तारेंगे हम जानी। तू सुरत काहे बौरानी।। दृढ पकडो शब्द निशानी। तेरी काल करे नहि हानी।। तू हो जा शब्द दिवानी। मत सुनो और की बानी।। सब छोडो भर्म कहानी। गुरु का मत लो पहिचानी। चढ बैठो अगम ठिकानी। राधास्वामी कहत बखानी।।(सारबचन -शब्द-15,पृ.सं.361)**



*【 हिदायतनामा -बचन 21वाँ】:-         

                                  

जिन लोगों को शौक मिलने मालिक कुल का है और तहकीकात मजहब की मंजूर है कि कौन सा मजहब बाला( सबसे ऊंचा ,उत्तम) है और तरीक( साधन की विधि) भी उसका बहुत सीधा चाहते हैं, उनके वास्ते यह कलाम( बचन) कहा जाता है । उनको चाहिए कि कुछ दुनिया की मोहब्बत कम करें यानी जर( धन )और जन (स्त्री) और औराद( संतान) की चाह तकदीर के हवाले करके पहले सोहबत फकीरों की मुख्य रक्खें। फकीरों में सोहबत उस फकीर की करें जो शरगिल(अभ्यासी) शगल( अभ्यास) सुलतानुलअजकार( सुरत शब्द योग) का होवे या दृष्टि का साधन करता होगा यानी अनहद शब्द के मार्ग को जानता होवे और दृष्टि की साधना जिसने करी होवे और पुतली की आंख के यानी दोनों तिलों को खींचकर शगल की मदद से एक किया होवे और आवाज आसमानी को सुनकर रूह को चढ़ाता होवे। और जो ऐसा फकीर दुर्लभ हो तो नाम की जरब दिल पर लगाने प्राण के अभ्यास वालों को तलाश करें ।उनकी सोहबत से भी सफाई दिल और कमजोरी मलीन मन की होगी और कुछ रस अंदरूनी अंतरी हासिल होगी। लेकिन जो फायदा कि रूह के चढ़ाने का है वह तो साधन सुरत शब्द योग ही से हासिल होगा। अब चाहिए कि ऐसे फकीर की खिदमत में जाकर उनसे मोहब्बत पैदा करो और उनकी सेवा में चुस्त व चालाक रहो और तन से, मन से, धन से, व हर सूरत उनको अपने ऊपर मेहरबान और मुखातिब कर लो और दर्शन उनका दिल व और दीदा से घंटे 2 घंटे बराबर करते रहो यानी अपनी आंखों से उनकी आंखों को ताकते रहो और जिस कदर ताकत अपनी देखो पलक से पलक ना लगाओ और इस कसरत को रोज ज्यादा करते रहो। जिस रोज और जिस वक्त नजर मेहर दया से भरी हुई उनकी तुम पर पड़ेगी , उसी दिन सफाई दिल की फौरन होगी और जब वह मेहर करके अपनी मौज व मर्जी से शगल बाला( ऊपर के ) का उपदेश करें तो रुह तुम्हारी आवाज आसमानी को पकड़ेगी और मुनासिब है कि तुम भी इस शगल को हर रोज बिला नागा चार बार, दो बार , जिस कदर फुर्सत मिले, करते रहो और जो दिल तुम्हारा तो कबूल न करें और भ्रम और चिंता और गुनावन बेफायदा उठावे तो प्रार्थना मुर्शिद के आगे करो और फिर उसी शगल में मेहनत रखो। उन की तवज्जुह और तुम्हारी मेहनत से रोज बरोज तरक्की होगी और जल्दी और बेचैनी करना नहीं क्योंकि जल्दबाजी काम शैतान का है। आहिस्ता आहिस्ता हासिल होना लाभदायक पड़ेगा और जल्दी जो कुछ होगा वह कायम नहीं रहेगा क्योंकि वह शैतान की तरफ से होगा। जो मुर्शीद रहमान की मदद से होगा वह हमेशा कायम रहेगा।। 

                                                   

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

(92) गुरु की पूजा गोया मालिक की पूजा है, क्योंकि मालिक कहता है कि जो गुरु द्वारे मुझको पूजेगा, उसकी पूजा कबूल करूँगा और जो गुरु को छोड कर और और पूजा करते है, उनसे मैं नहीं मिलूँगा। जो कोई यह कहे कि गुरु की पहिचान बताओ तो हमको यकीन आवे, तब हम गुरु की पूजा करें तो उससे यह सवाल है कि तुम जो मालिक की पूजा करते हो उसकी पहचान बताओ कि तुमने उसकी पहचान कैसे करी है। जो मालिक की पहचान है वही गुरु की पहचान है, क्योंकि हरि गुरु एक है, उनमें भेद नहीं। पर हरि की पूजा करने से हरि नही मिलेगा और सतगुरु की पूजा करने से हरि मिल जावेगा, इतना गौर कर लेना चाहिए। और जो कोई यह कहे कि जब हरि गुरु एक हैं तो हम हरि की ही पूजा न करें, गुरू की पूजा क्या जरुर है, सो यह बात नही हो सकती है। पहले भक्ती सतगुरु की करनी पडेगी, तब वह मिलेगा। यह कायदा उसने आप मुकर्रर किया है कि जो गुरु द्वारे मूझसे मिलेगा उससे मैं मिलूँगा, निगुरे को मेरे यहाँ दखल नही है। और गुरु पूरा चाहिए।।

 (सारबचन नसर-2-परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज)**



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