Thursday, January 7, 2021

वचन सत्संग के

 राधास्वामी!!  /  0701- 2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन

कल से आगे

-[ राधास्वामी मत की वाणी पर आक्षेप]

-{विद्या को अविद्या क्यों कहा?}-

( 116)-

प्रश्न- राधास्वामी- मत में सैकड़ों लिखे पढ़े लोग सम्मिलित हैं और आप हर बात का उत्तर भी संयुक्ति देते हैं परंतु आप विद्या के प्रकाश अर्थात् शिक्षा के प्रचार के विरुद्ध क्यों हो ? आपकी पुस्तक सारबचन में लिखा है-" हे विद्या तू बड़ी अविद्या सन्तन की तैं कदर न जानी"। भला विद्या के प्रकाश के बिना संसार के लोग कैसे प्रमार्थ समझ सकते हैं? और संसार का काम कैसे चल सकता है? कोई-कोई कहते हैं कि आप विद्या के विरुद्ध इसलिए हैं कि लोगों को आप अंधकार में रक्खा चाहते हैं और अंधकार ही में गुरु-दम्भ चलता है । और श्री नरदेव शास्त्री जी की 'आर्य समाज का इतिहास ' नामक पुस्तक के भाग दूसरे में 'एक आगरानिवासी'  ने यह भी लिखा है कि " राधास्वामी- मत के गुरु लोग वेद शास्त्र ज्ञान- विहीन है अर्थात वेद आदि शास्त्रों की शिक्षा से अनभिज्ञ होते हैं।                                               उत्तर- जिस कड़ी का आपने उल्लेख किया वह अवश्य हमारी पुस्तक सारबचन में आई है किंतु यदि इस प्रकार आपकी धर्म- पुस्तकों से वाक्य चुन-चुन कर आक्षेप किया जायँ तो अवश्य आपको खेद होगा  आक्षेपक को उचित है कि सारा शब्द पढ़ें और प्रकरण में आए हुए विषय को ध्यान में रखकर अर्थ लगावे। और यदि स्वयं अर्थ समझ में न आवे तो किसी जानकार से पूछे और भावार्थ अच्छी तरह समझ में आ जाने पर आक्षेप उपस्थित करें।  मैंने नरदेव शास्त्री जी की पुस्तक ध्यानपूर्वक पढी है बल्कि मुझे शास्त्री जी से व्यक्तिगत परिचय भी है। उन्होंने एक बार दयालबाग आने की कृपा भी की थी। वह अवश्य एक योग्य विद्वान् और उत्तमस्वभाव सज्जन पुरुष है। पर इसमें किसी का क्या दोष है ? जब किसी समाज में दिन-रात राधास्वामी- मत की बुराई की जाय तो उस समाज के सदस्य कहाँ तक अपने को राधास्वामी- मत के विरुद्ध बातों के प्रभाव से बचा सकते हैं ? जब शास्त्री जी मुझसे मिले तो पहली बात उन्होंने यही कही - "मैं तो दयालबाग देखकर बहुत हैरान हुआ।  मैंने तो आपकी बाबत कुछ और ही सुन रक्खा था और यहाँ मामला दूसरा ही है"।                                                                      मैं - आपने क्या सुना रक्खा था?                              शास्त्रीजी- मैंने तो यह सुन रक्खा था कि आप विद्या के सख्त खिलाफ हैं ।और अपने अनुयायियों को अंधकार में रक्खा चाहते हैं। मगर यहाँ तो आपने कॉलेज खोल रक्खे हैं और कॉलेजों में पढ़ाई के लिए बी०ए० और एम०ए० मास्टर रख छोड़े हैं ।                                                            मैं-आप ही फर्माइये कि जो रुपया भेंट का आता है उसे क्या करें?                             शास्त्री जी- मैंने तो यह सुना था कि आपके यहाँ आए साल बड़े दिनों में एक भंडारा होता है, और उस अवसर पर श्रद्धालु लोग एक करोड रुपए भेंट करते हैं, और लोगों की आँखों में धूल डालने के लिए आपने छोटा सा स्कूल जारी कर रक्खा है कि यह कह सकें कि जो रुपया आता है वो पब्लिक के फायदे के कामों पर खर्च किया जाता है।               मैं - आपको ख्याल आया कि जब कांग्रेस का आंदोलन बड़े जोर व  शोर पर था और सर्व साधारण की हार्दिक सहानुभूति महात्मा गांधीजी के साथ थी , उस समय महात्माजी ने चोटी से एडी तक का जोर लगाया और उनके सहायकों ने जमीन और आसमान के कुलावे मिला दिये तो कहीं एक मर्तबा कुल हिंदुस्तान के अमीरों व कारखानों के मालिकों की मदद से एक करोड रुपया इकट्ठा हुआ। और राधास्वामी- मत के अनुयायी केवल मुट्ठी भर आदमी है और उनमें कोई राजा महाराजा या अमीर भी नहीं है, फिर कैसे मुमकिन है कि हमारी संगत आये साल मुझे एक करोड रुपया बतौर भेंट पेश करें ?                                               शास्त्रीजी - आप मेरी बातों का बुरा न माने। मैंने जैसा सुना था वैसा कह दिया। मेरी राय अब दूसरी है ।                                                मैं-  मैं आपकी बातों का बुरा नहीं मानता बल्कि मेरी तो यही प्रार्थना है कि आपकी जबान सच्ची हो जाय और सचमुच हमारी संगत एक करोड रुपया सालाना हमारी सभा को पेश करने लगे।।                                         🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                                      यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!

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