Tuesday, January 5, 2021

भागवत गीता के उपदेश

 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग 1-

कल से आगे:-

 अगर आप नुमाइश को गौर से देखेंगे तो आपको इस साल की नुमाइश में पिछली नुमाइशों की अपेक्षा तीन बातें नई और दिलचस्प मालूम होगीं- अव्वल बेसिक एजुकेशन का काम जिसमें आर० ई० आई० के छोटे बच्चों ने अपने हाथ से चीजें बनाकर तैयार की है । इस काम को शुरू हुए अभी 3 माह ही हुए हैं लेकिन काम तब भी उत्साहवर्धक है । काम के देखने से मालूम होता है कि इन बच्चों को इसमें काफी शौक है । इससे उम्मीद की जाती है कि तालीम हासिल करने के वक्त ही में यह बच्चे कुछ न कुछ कमाने के उपाय हो जायेंगे । मैं चाहता हूँ कि आप उनके काम को जरूर देखें और उनकी तैयार की हुई चीजों को खरीद करके उनकी मुनासिब उत्साहवृद्धि करें।                                                 

 दूसरी नई बात जो आप देखेंगे वह महिला एसोसिएशन का स्टॉल है यह एसोसिएशन भी अभी हाल ही का बच्चा है । स्टॉल पर जिस कदर सामान आप देखेंगे वह सब सिर्फ 15, 20 रोज के अंदर तैयार किया गया है। इन बहनों ने जिस्म तोड़ कर और सख्त मेहनत और तपस्या करके सेवा के भाव से थोड़े अर्से में यह तमाम चीजें तैयार करके आपके सामने पेश की है जिससे कि वे राधास्वामी दयाल की प्रसन्नता और रजा हासिल कर सकें।                                   

तीसरी बात जो इस दफा नुमाइश में देखने योग्य है वह दयालबाग महिला होजरी इंस्टिट्यूट का तैयार किया हुआ ऊनी व सूती सामान है । यह भी सारा काम उन स्त्रियों द्वार तैयार किया हुआ है जो इस इंस्टीट्यूट में काम करती हैं -अगरचे उसकी माली हालत अभी संतोषप्रद नहीं है लेकिन निसंदेह उनका काम आशाजनक है और आइंदा साल बेहतर होने की उम्मीद है। क्रमशः                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भागवद गीता के उपदेश]-

कल से आगे:-(5)

- हिंदुस्तान में बहुत काल से वैदिक यज्ञ-कर्मों के कर्मों में विश्वास चलाता था और कुछ समय से कर्मत्याग की शिक्षा ने जोर पकड़ लिया था और अनेक विद्वान सांख्य दर्शन का दम भरने लगे थे, परंतु गीता का दूसरा ही उपदेश है ।अतः गीता में आया है कि यज्ञ- कर्मों के द्वारा मनुष्य देवताओं को प्रसन्न करके सांसारिक सामग्री वर्षा, धन ,आदि प्राप्त कर सकते हैं, किंतु देवताओं की उपासना करने वालों की पहुँच देवताओं के लोकों में होती है वह मैं भी थोड़े समय के लिये, अर्थात कुछ काल तक देवताओं के लोकों में रहकर उन्हें इस संसार में लौटना पड़ता है और सांख्य के दर्शन की शिक्षा के अनुसार ज्ञान के द्वारा मनुष्य अधिक से अधिक  कैवल्य को प्राप्त हो सकता है अर्थात उसका आत्मा प्रकृति से न्यारा हो कर जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है, पर कृष्ण महाराज की भक्ति के से मनुष्य को परम गति अर्थात आध्यात्मिकता के सबसे ऊंचे पद में रसाई हासिल होती है।।                            

( 6 )-जो लोग कठिन तप यह कर्मत्याग के पक्षपाती हैं उन्हें समझाया गया है कि मनुष्य के लिए कर्म का पूर्ण रूप से त्याग असंभव है। कर्म किये बिना मनुष्य जीवित ही नहीं रह सकता । मनुष्य को उचित है कि शास्त्रों में जिन कर्मों अर्थात परमार्थिक कर्तव्यों के लिए विधान किया गया है उन्हें अवश्य और सच्ची श्रद्धा से, परंतु फल की इच्छा छोड़ कर , करें क्योंकि फल की इच्छा छोड़ना ही वास्तविक कर्म का त्याग है।

क्रमशः         

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज

 -प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे :

- जवाब - यह हालत सिर्फ ऐसे प्रेमी की हो सकती है कि जिसके मन में कोई ख्वाहिश या चाह भोग बिलास की या संसार के सामान और मान बडाई की प्राप्ति की नहीं रही है ।और चाहे वह गृहस्थ में रहता है पर उसके कुटुंबी और संबंधियों की चाह और ख्वाहिश का भी असर उसके मन में नहीं होता है, यानी उनके पालन-पोषण के निमित्त चाहे थोड़ा बहुत कर्म भी करें, पर सब करतूत उसकी राधास्वामी दयाल की मौज के आसरे होती है और नफा और नुकसान की हालत में कभी और किसी तरह पर उसका मन रुखा फीका या राधास्वामी दयाल की तरफ से उदास या दुखी नहीं होता है ।

ऐसे प्रेमी की सुरत की पहुँच और बैठक ऊंचे स्थान पर होगी कि जहाँ संसार की हवा बहुत कम पहुंचती है। और जोकि उसके मन में किसी किस्म की चाह नहीं रही है, इस वास्ते उससे कोई कार्यवाही ऐसी नहीं बनेगी कि जिसमें किसी का असली नुकसान होवे या वह कार्रवाई बिल्कुल उल्टी और खिलाफ मौज और मर्जी कुल मालिक राधास्वामी दयाल के होवे।

क्रमशः                                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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