Tuesday, February 2, 2021

सतसंग सुबह DA 02/02

 **राधास्वामी!! 02-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

 (1) गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। सेवा कर तन मन धन अरपे। सत्तपुरूष सम सतगुरू थरपे।।-(हाथ धुला दातन करवावे। काट पेड से दातध लावे।। ) (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.255)

                                                 

(2) बिसारो मनुआँ जग की कार।।टेक।। सारी बैस बिताई जग में। बुद्ध हुआ अब चेत गँवार।।-(राधास्वामी चरन गहो हित चित से। काज करें तेरा आज सँवार।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-46-पृ.सं.398,399)                                             

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग 1-

 कल से आगे:

- इस तरीकेअमल के लिए जो भी कार्यवाही मुनासिब होगी, चाहे उसके लिए मालिक की तरफ से प्रेरणा हो चाहे अपने आप दिखाई दे, चाहे आपकी तरफ से या आपकी तदबीर व कोशिश से प्रकट हो, काम में लाई जावेगी। हुजूर साहबजी महाराज ने कई बार यह फरमाया कि जब सत्संग का सेंटर यह हेड क्वार्टर मजबूत हो जावेगा उस वक्त इस काम को बाहर दूसरे मुकामों में संगठित किया जावेगा। इसलिए पहले हमको अपनी तमाम संस्थाएं दयालबाग में कायम करनी चाहिए और उनको कायम व मजबूत करने के बाद उनको मुल्क के दूसरे हिस्सों में कायम व जारी करना चाहिए । अभी कुछ लोग यह कहते हैं कि दयालबाग का काम कमजोर है । मैं उनसे सहमत नहीं हूँ। क्या इन साहबान का यह ख्याल है कि हुजूर साहबजी महाराज यहाँ का काम कच्चा और कमजोर बुनियाद पर छोड़ गये होंगे? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ये साहबान गलती पर है। वह दयाल यहाँ की तमाम कार्रवाई मजबूत और पुख्ता करने के बाद यहाँ से तशरीफ ले गये है। मेरा ख्याल है कि जो लोग यह कहते हैं कि दयालबाग की बुनियाद अभी तक कच्ची है और हुजूर साहबजी महाराज अपना काम अधूरा और अपूर्ण छोड़ गये हैं वे ऐसे साहबान हैं जिन्होंने दयालबाग की बुनियाद के बारे में व उसकी वृद्धि व उन्नति में रत्ती भर भी सच्ची या निस्वार्थ सेवा नहीं की। इसी वजह से तो उनको दयालबाग की बुनियाद कच्ची नजर आती हैं। अगर उन्होंने कोई ऐसा काम किया होता या सेवा की होती व उसके बनने के सिलसिले में एक ईंट भी उठाई होती तो फिर उनको इसकी बुनियाद कमजोर नजर न आती।क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:-( 14 ) जिस कदर कार्यवाही प्रमार्थ की की जाती है, उस सब का मतलब यही है कि अभ्यासी को गहरी प्रतीति और प्रीति सच्चे मालिक के चरणो में हासिल होवे। तब उसका अभ्यास सुरत के चढ़ाने का सहज और सुख पूर्ण बनता जावेगा । और जब तक की प्रतीति और प्रीति में कसर है, उसी कदर मन और इंद्री भी डावाँडोल रहती है, और अभ्यास भी जैसा चाहिए वैसा दुरुस्ती के साथ नहीं बनता। इस वास्ते कुल पर परमार्थियों को मुनासिब है कि अंतर और बाहर सत्संग करके अपनी प्रतीति और प्रीति को मजबूत करें और दिन दिन बढ़ाते जावें, तो उनको अभ्यास का भी रस आ जावेगा और मन और इंडियाँ भी सहज में भोगों की तरफ से किसी कदर हट कर अंतर में शब्द और स्वरूप के आसरे उलटती जावेंगीं और राधास्वामी दयाल की दया और रक्षा और कुदरत के परचे मिलते जावेंगे कि जिनसे प्रीति और प्रकृति दिन दिन बढ़ती जावेगी और एक दिन काम पूरा हो जावेगा।                                                    

 (15)-अभ्यासी को चाहिए कि मन और माया और काल और कर्म के धोखों और झकोले से होशियार रहें । यह सब अभ्यासी को अपने पदार्थ तमाशे  पेश कर के रास्ते में रोकना और अटकाना चाहते हैं। सो जो कोई सतगुरु राधास्वामी दयाल को रहनुमा करके और उनकी दया का बल लेकर चलेगा,उस पर किसी का जोर या छल पेश नहीं जावेगा और आखिर सब थक कर रास्ते में रह जावेंगे और वह मैदान जीतकर उसके घर से सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया से निकल कर बेखौफ अपने निज देश में पहुँच जावेगा। क्रमशः                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे:-

 महाराज! अगर कर्म से ज्ञान श्रेष्ठ है तो मुझे ऐसा भयंकर कर्म( युद्ध ) करने के लिए क्यों आज्ञा दी जाती है?  आपके उपदेश और इस आज्ञा से मेरी बुद्धि और गड़बड़ा गई है इसलिए साफ-साफ बतलाइये कि मेरे लिये किस मार्ग पर चलना उचित है।                                                           

कृष्ण जी बोले- हे अर्जुन मैं बयान कर चुका हूँ इस संसार में मोक्षप्राप्ति के दो मार्ग हैं। एक ज्ञानयोग यानी साँख्यमतनुयायियो  का, और दूसरा कर्म योग यानी योगमतानुयायियों का।

इंसान कर्म से परहेज करके कर्म से आजाद नहीं हो सकता, न केवल त्याग से सिद्ध बन सकता है। सच तो यह है कि कोई एक क्षण भर के लिए भी असली मानी में अकर्म नहीं कर सकता । प्रकृति के गुण हर शख्स को कर्म करने के लिए मजबूर करते हैं। ।5।                                                     

.  बाज लोग कर्म इंद्रियों को रोक कर चुपचाप बैठ जाते हैं और जाहिर में अकर्म बन जाते हैं लेकिन उनका मन इंद्रिय- भोगों की याद में लगा रहता है।  यह लोग पाखंडी है। जो शख्स मन के जरिये  इंद्रियों को रोककर कर्मयोग करता है यानी मन में किसी किस्म की लाग न रखता हुआ वह अपनी कर्म इंद्रियों से काम लेता है वह श्रेष्ठ है इसलिये तुम अपने नियत कर्म करो क्योंकि निकम्मा रहने से काम करना बेहतर है और निकम्मा बन कर तो कोई शख्स अपना शरीर भी कायम नहीं रख सकता। अगर कोई कर्म यज्ञ यानी पूजा के निमित्त नहीं किया जाता तो वह दुनियाँ में बंधन पैदा करता है। इसलिये तुम कर्म करो तो करो लेकिन लाग छोड़ कर। प्रजापति ने आदि काल में मनुष्य- जाति और यज्ञो को साथ-साथ पैदा करके हुक्म दिया-" हे मनुष्यों तुम याद करते रहो, यज्ञ से तुम्हारे उन्नति होगी और तुम्हारी सब कामनाएँ पूरी होंगी। ।10।                     

  

  क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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