Tuesday, June 2, 2020

सतसंग के प्रसंग उपदेश प्रेमपत्र और रोजाना वाक्यात






परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-रोजाना वाकियात- कल का शेष:-

 दूसरी बात इससे भी  अजीब है।  प्रोफेसर साहब बयान करते हैं " मैं अभी मेज पर बैठा हुआ था कि 2 मिनट खामोश रहने का ऐलान किया गया।  यह इस गरज से था कि सब लोग अंतर में ध्यान करें। मगर मुझे यह 2 मिनट करोड़ों बरस के बराबर लंबे महसूस हुए ।" यह है मगरिब की चंचलता का नमूना। 2 मिनट निश्चल बैठना भी दूभर है। भला ऐसे लोग अंतर्मुख साधन कब करने लगे?  हिंदुस्तानी भाइयों ! तुम गरीब हो,कष्टग्रस्त हो लेकिन तुम अपने मन को पश्चिम वालों के मुकाबले निहायत आसानी से निश्चल कर सकते हो। तुम्हारे अंदर रूहानियत की तालीम के लिए अधिकार मौजूद है ।।                             

   तीसरी बात भी काफी दिलचस्प है । प्रोफेसर साहब बड़े देश विदेश में फिरने वाले पर्यटक हैं। एक मर्तबा आप ग्रेटब्रिटेन के उत्तर में " फउला' नामी द्वीप में पहुंचे । इस द्वीप  का साढे तीन  मील क्षेत्रफल है ।आबादी ढाई सौ व्यक्ति। आबादी का पेशा मछली पकड़ना । आपकी आगमन के पहले शीत के दिनों में समुद्री हवाएं बहुत तेज चली दूसरे दीपों से बिल्कुल कटी हुई(खंडित) हो गई । 5 माह तक उस द्वीप की आबादी ने सख्त मुसीबत उठाई। अकाल के मुतअल्लिक़ खबरें बोतलों में बंद करके समंदर से छोड़ी गई जो परली पार पहुंच गई और अडबगज से एक जहाज सामान खानपान लेकर रवाना हुआ लेकिन समुंदर में तूफान आ रहा था इसलिए वह वापस गया । कुछ दिनों बाद दूसरा जहाज रवाना हुआ और वह द्वीप फउला के किनारे तक सलामत पहुंच गया। जहाज के लोगों ने निहायत घबराकर द्वीप के बाशिंदों से अकाल की मुसीबत का हाल दरियाफ्त किया। बाशिंदों ने आठ आठ आँसू रोकर बयान किया " और तो सब कुछ काफी था लेकिन तंबाकू बिल्कुल खत्म हो गया था । हम लोगों ने तंबाकू के बजाय चाय ,रुई ,और लकड़ी के बुरादे के कश ले ले कर दिन काटे हैं " अपनी तरफ से कोई राय लिखने की जरूरत नहीं । मरगिब के लोग तंबाकू न मिलने से परेशान हो जाते हैं और मशरिक के लोग सूखे टुकड़ों के मोहताज हैं और खामोश है !प्रोफेसर साहब का शुभ नाम ऐडवर्ड वेस्टमार्क है। जो बात लिखते है साफ-साफ लिखते हैं।.   

            

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज


 -सत्संग के उपदेश -भाग 2-( 51)-

【 अंशांशिभाव से क्या अभिप्राय है ?】:


- राधास्वामी मत में सुरत यानी आत्मा और राधास्वामी दयाल यानी सच्चे मालिक में अंशांशिभाव माना गया है जिससे जाहिर है कि दोनों का एक जौहर है और मन व माया के बंधनों से आजाद होने पर यानी अपनी असली निर्मल चेतन अवस्था में लौटने पर सुरत का वही हाल होता है जो समुंदर में दाखिल होने पर नदियों व नालों का हुआ करता है यानी जब तक पर जमीन पर बहते हैं, नदी नाले कहलाते हैं और उनके जुदा-जुदा नाम व रुप रहते हैं लेकिन जब वे समुंदर में दाखिल हो जाते हैं तो उनके नाम और रूप मिट जाते हैं और उनका समुद्ररुप हो जाता है । वाजह हो कि नदी, नालों व समुंद्र की मिसाल सूरत की निर्मल अवस्था के बयान पर हर पहलू से नहीं घटती क्योंकि पानी एक स्थूल चीज है औरत सुरत व सच्चा मालिक चेतन जौहर है इसलिए चेतन जौहर की हालत स्थूल पदार्थों की मिसाल से बयान करने में स्थूल पदार्थों के गुणों के दोषों खवामख्वाह दर्मियान में आ जाते हैं । इस मिसाल को विचारते वक्त नदी नालों के समुंद्र में गिरने पर अपने नाम व रुप   को खो देने और उनके जल का समुद्र के जल के साथ तदरुप यानी हमजात हो जाने का भी ध्यान में रखना चाहिए।                    बाज लोग लफ्ज अंश के मानी टुकड़ा या जुज लगा कर उसका ख्याल करते वक्त लकड़ी के टुकड़ों या पानी की बूंदो की हालत सामने रखकर एतराज करते हैं कि संतमत की तालीम कि रु से यह मानना होगा कि मालिक टुकड़ों या जुजों में तकसीम हो सकता है बल्कि यह कहना होगा रचना होने पर अनेक सुरतों यानी आत्माओं के जहूर से,जो इस संसार में देह धारण किए हुए नजर आती है, मालिक के बेशुमार टुकड़े हो गये है।

क्रमशः                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



: **परम गुरु हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-(5)

आम दस्तूर है कि मन ऊंचे से ऊंचे और बढ से बढ की बात को जल्दी से और बे मेहनत और तकलीफ के हासिल करना चाहता है।  इस सबब से हर आदमी, जिसको थोड़ी बहुत विद्या और समझ  हासिल है,  इस मत में जल्द शामिल हो जाता है और अहंकार करके अपनी असली हालत की (कि निपट संसारियों के मुआफिक हैं)  बल्कि परख नहीं करता । यह बाचक ज्ञानी निर्भय होकर भेषों और ब्राह्मणों और गृहस्थों को बगैर परखे उनके अधिकार के बाचक ज्ञानी बनाते चले जाते हैं। इसमें भारी नुकसान उनका और उनके संगियों का होता है कि भक्ति वे मार्ग में शामिल होने के लायक नहीं रहते और दीनता मन में बिल्कुल नहीं रहती। इस सबब से उनके उद्धार का रास्ता बिल्कुल बंद हो जाता है।।                                                   

 (6) इस समय में छोड़े या बहुत सब मतों के लोग जिनको थोड़ी विद्या और बुद्धि हासिल है, बाचक ज्ञान को पसंद करके इस नए मत में शामिल होते चले जाते हैं, क्योंकि इसमें उनको बिल्कुल आजादी यानी स्वतंत्रतख हासिल हो जाती है और किसी का खौफ और शर्म नहीं रहती, निर्भय होकर मन और इंद्रियों के धारों में बहते हैं और अपने हाल से बेखबर रहते हैं । इन विचारों ने बड़ा धोखा खाया , पर इनका इलाज कुछ नहीं है क्योंकि यह साधन करने वालों की बात बिल्कुल नहीं सुनना चाहते हैं बल्कि उनको नादान समझते हैं और अपने आप को समझदार और होशियार मानते हैं । यह लोग अपनी करनी और व्यवहार के माफिक अंत में फल पाएंगे।

क्रमशः       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




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