Wednesday, September 16, 2020

दयालबाग़ सत्संग 16/09

 *राधास्वामी!! 16-09- 2020 -


आज सुबह के सत्संग में पढे गये पाठ-  

                                 

   (1)  गुरु गुरु मैं हिरदे दे धरती। गुरु आरत की  सामाँ करती।। कोटिन जन्म रहे कोई काशी।  बेद पाठ और तीरथ बासी।।-( अब इनको जो कोई समझावे।  टेक छोड़ते जिव सा जावे।।) ( सारबचन- शब्द -पहला -पृ. सं. 172 )                                                     

  (2) आज गावो गुरु गुन उमँग जगाय।।टेक।।  जिन यह भेद सुना नहिं गुरु से । सो रहे माया संँग लिपटाय।।-( मैं बल हीन करूँ क्या महिमा। राधास्वामी मेहर से लिया अपनाय।।) ( प्रेमबानी - भाग 2- शब्द- 37, पृष्ठ -संख्या -308)                                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

                                                                       

आज शाम के सत्संग में पढ़े गए पाठ:-         

                                             

(1) अरे मन क्यों नहीं धारे गुरु ज्ञान।। टेक।। सत चेतन घट माहिं बिराजे। तू बाहर जड संग भरमान।।-()काम क्रोध और.लोभ लहर में। बरत रहे निस दिन अनजान।। (प्रेमबानी-3- शब्द 27, पृ.सं.370)                                                           

 (2) सतगुरु दयाल दया करी  घट प्रगटाया सूर। रोम रोम भया चाँदना तिमिर भया सब दूर।।-( रोय रोय दिन काटती  करत रहे बिरलाप। दिल की दिल में रह गई  होन न पाई बात।। ) ( प्रेमबिलास- शब्द 53-, दोहे- सतगुरुदर्शन -पृष्ठ संख्या 69।)                                                       

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।                  

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!!                                       

16-09- 2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-

 (111)  

खेद के साथ मानना पड़ता है कि उस समय धर्म की प्रतिष्ठा तथा अधिकारों का सदैव वैध और उचित उपयोग नहीं हुआ। मंदबुद्धि तथा संकीर्णहृदय लोगों ने धार्मिक उन्माद के वशवर्ती होकर और संसार के कीड़े लोभी जनों के धर्म का कपटवेश धारण करके निरापराधियों पर अनेक प्रकार के बलात्कार और अत्याचार किये। यदि ईश्वर के किसी जन ने किंचिञन्मात्र स्वतंत्र विचारशीलता से काम लिया तो धर्म के इन ठेकेदारों ने धड़ से उसका सिर उडवा दिया या खाल खिंचवा ली। 

 कई एक तृष्णावशवर्ती तथा धनदेव पूजा- परायण राजाओं ने अपने देश के निवासियों को धार्मिक उत्तेजना दिलाकर भारतवर्ष पर बारंबार आक्रमण किये,और जो दुःख और अत्याचार उनके हाथों भारतवासियों को सहने पड़े उन्हें स्मरण करके हृदय विदीर्णय होता है किंतु साथ ही इतिहास बतलाता है कि धर्म के सहस्त्रों पतंग- हृदय भक्तों ने धर्म के प्रचार तथा रक्षा के लिए सहर्स ऐसे दुख और आपत्तियों को सहन किया और ऐसे चमत्कार दिखलाये कि जिनके चिंतन से हृदय "आश्चर्य ! "आश्चर्य !!" पुकारता है।।         

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻        

                       

  यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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