Friday, September 25, 2020

दयालबाग 25/09 सुबह शाम सतसंग

*राधास्वामी!!   25-09- 2000 

-आज सुबह सतसंग मे पढे गये पाठ :-        

                    

  (1) गुरु मिले परम पद दानी। क्या गति मति उनकी करूँ बखानी।।-(वह दयाल पद अगम अपारा।तीन सुन्न आगे रहा न्यारा ) ( सारबचन- शब्द- दूसरा- पृष्ठ संख्या 177 )                                

 (2)  आज आई सुरतिया उमँग सम्हार।।टेक।। जगत भोग से कर बैराग। तन मन धन गुरु चरनन वार।।-( राधास्वामी प्यारे मेहर कराई। सहज किया मेरा बेड़ा पार।।) ( प्रेमबानी-2- शब्द 44, पृष्ठ .सं.213                  

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*

 आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-     

                             

  (1) यह सतसंग और राधास्वामी है नाम। सरन आओ हे करमियों तुम तमाम।।-( कि धन धन हैं धन धन हैं सतगुरु मेरे। उतारेंगें भौजल से बेशक परे।।) (प्रेमबानी-3-गजल-10-पृ.सं.380)                                               

 (2) अरे सुमिरन करले मूढ जना। क्यों जग संग भूल भुलाना रे।।टेक।। मानुष जन्म अमोलक पायो। काहे भूल भुलाना रे।।-(जो चाहो पूरा उद्दारा। राधास्वामी सरन गहाना रे।।) (प्रेमबिलास- शब्द-60,पृ.सं.78)  

                                      

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!           

                          

 आज शाम  के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे -(120) 

यह रुसियों की मनोवृति का वृतांत हुआ। अब चित्र की दूसरी और भी दृष्टिपात कीजिए। जैसे धर्म के बलीभूत भक्त- जन अपनी और दूसरों की बुद्धि पर धर्म- पुस्तकों तथा आचार्य की आज्ञाओं को श्रेय देते हैं और इस कारण अन्धपरंपरानुयायी कहलाते हैं ऐसे ही रूस में भी मार्क्स और लेनिन की रचनाओं का अंधाधुंध अनुकरण हो रहा है।

 जैसे धर्म के भक्त स्वर्ग के सुख की आशा और पादरियों के बचनों में अंधविश्वास रखते हैं और बहुत सी धार्मिक बातों को बिना तर्क वितर्क किये मान लेते हैं ऐसे ही वॉलशेविज्म भी भविष्य के सुख की आशा और राष्ट्रीय नेताओं के वचनों में अंधविश्वास रखते हैं और बहुत सी राजनीतिक बातों को चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। 

जैसे रोमन कैथोलिक संप्रदाय के अनुयायी अपने प्रतिदिन के पाप पादरियों से निवेदन करके ह्रदय की शुद्धता प्राप्त करते हैं ऐसे ही यह लोग भी सोवियट के पदाधिकारियों के समक्ष अपने अपराध स्वीकार करने के लिए बाधित किए जाते हैं। जैसे धार्मिक उन्माद से उन्मत्त लोग दूसरों को अपना मतानुयायी बनाने के लिए निःसंकोच रक्तपात कर डालते हैं ऐसे ही ये लोग भी अपने विचारों के प्रचार के लिए रक्तपात को धर्मानुकूल समझते हैं ।

 जैसे एक धर्मात्मा मनुष्य ईश्वर की आज्ञा के विरूद्ध काम करना पाप समझता है ऐसे ही ये लोग भी नवीन शासन की इच्छा के विरुद्ध काम करना पाप समझते हैं । सारांश यह है कि इन लोगों ने धर्म और ईश्वर के नाम से तो मुंह मोड़ लिया है किंतु वे सब बातें, जिनके कारण धर्म और ईश्वर को गालियाँ सुनाई जाती है इनके हृदयों में, इनके दैनिक व्यवहारों में और इनके जीवन में जोकि वर्तमान है। 

माना कि यह लोग धर्म और ईश्वर से विमुख है, पर वॉलशेविज्म इनका धर्म नहीं तो क्या है? लेनिन इनका मशीह नहीं तो क्या है ? 

सोवियट के पदाधिकारी इनके पादरी नहीं तो क्या है? और क्रांति (Revolution) इनका ईश्वर नहीं तो क्या है?  क्या संसार के किसी धर्म ने सर्वसाधारण के समक्ष रूसी क्रांति से बढ़ कर जीवन और धन के बलिदान की मांग उपस्थित की अथवा बालात् अपनी आज्ञाओं का पालन कराया? 

                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश -भाग पहला 

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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