Monday, September 14, 2020

प्रेमपत्र रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत- 


कल से आगे- 

कारखाने से एक खास नमूने का लंप स्टैंड बनवाया है जो इच्छा अनुसार तैयार हुआ है। इसमें बिजली का लैंप लगता है । खूबी यह है लंप को सरलतापूर्वक ऊंचा नीचा किया जा सकता है। 8 फीट तक ऊँचा किया जा सकता है । बड़े काम की चीज है। दिल की धड़कन के मरीजों को डॉक्टर लेटे लेटे लिखने पढ़ने का काम करने की हिदायत करते हैं । आज रात को यह स्टैंड इस्तेमाल किया। निहायत आरामदेह साबित हुआ।।                              

   राजा ज्वाला प्रसाद साहब ने अपने कारखाना की एक मन चीनी भेजी है। आपका कारखाना व फार्म बिजनौर में है। रेलवे रसीद के साथ एक अंग्रेजी कविता भी भेजी है जो चीनी से कहीं ज्यादा मीठी है। अफसोस बावजह अप्रत्याशित दिक्कतों के दयालबाग में गन्ने की खेती का काम स्थगित करना पड़ा।।                                                       

बंगलुरु से मिस्टर वातिल आये । आप वहां एक बड़ी टैनरी चला रहे हैं। मैंने वह टैनरी  देखी है। वातिल  साहब अपने काम में बहुत होशियार है । लेदर गुड्स फैक्ट्री के सुपरिटेंडेंट साहब  को मशवरा दिया कि मिस्टर वातिल से रिश्ता कायम किया जावे और उनकी टैनरी को अपनी टैनरी समझ करके आर्डर दिया जावें। 

आजकल के व्यापार बिना आपस के मेल के कभी कामयाब नहीं हो सकती। अगर वातिल साहब हमारे कारखाने की जरूरियात उपलब्ध करने लगे तो यहाँ का काम जल्द ही खूब बढ़ सकता है और इससे उनके काम को भी उन्नति हो सकती है ।                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 स्वराज्य 】

-कल से आगे- 

देव०-( खुश होकर ) यह तो सेनापति जी ही का पत्र है। एडा०- हमारे देश में हिंदुस्तान के संन्यासियों की बड़ी महिमा है। हमारा बादशाह भी जगह-जगह ब्रह्मदर्शी  संन्यासियों की खोज कर रहा है और सच्ची बात तो यह है कि मैं भी इन महात्माओं के दर्शन के लालच से फौज में भर्ती होकर यहाँ आया हूँ- मेरा असली पेशा चित्रकारी का है। इस कन्या की शक्ल देख कर मुझे अपने देश की देवियों की याद आ गई और मुझे इस खत के पाने से पहले ही ख्याल आया कि यह कोई देवकन्या है और मुझे ख्वाहिश हुई कि तमाम उम्र देवकन्या की सेवा करूँ लेकिन जब से लोगों को मालूम हुआ है कि बादशाह ने इस कन्या की तस्वीर पर खुश होकर मुझे इनाम दिया है मेरे साथियों को ईर्षा हो गई है और वे किसी न किसी तरह मुझको तुम लोगों से जुदा करा देंगे। सिर्फ एक तद्बीर है जिससे हम सब इकट्ठे रह सकते हैं ; लेकिन पेश्तर इसके कि  मैं इस तजवीज को अपने दिल में जगह दूँ या तुमसे इसका जिक्र करूँ, जरूरी है कि तुमसे इसका जिक्र करूँ, जरुरी है कि तुम मुझे अपना ठीक-ठीक हाल बदला दो- अगर तुम्हे नागवार न हो तो सच सच कहो कि तुम कौन हो और यह लड़की किसकी है ?                                         देव०-यह लड़की मेरी नहीं है । मैं कह चुकी हूँ कि मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है- मै और यह कन्या दोनों अनाथ है- मेरा पालन इस के पिता ने किया- इस कन्या की माँ इसे दो दिन का छोड़कर मर गई और इसका पिता इसे एक महीने की छोडकर यात्रा के लिये चला गया- तब से मैं इस कन्या की सेवा करती हूँ। एडा०-इस कन्या का बाप कौन था। देव०- यह शायद तुमसे बर्दाश्त ना हो सके । एडा०-इसमें क्या मुश्किल है? देव०- तुम कसम खाओ कि इसका जिक्र किसी से  न करोगे । एडा०- मैं अपने देश के देवताओं और देवियों कि कसम खाता हूं कि मैं इस कन्या के बारे में कोई बात बिला तुम्हारी इजाजत किसी को न  बतलाऊँगा।।                    

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

*परम गुरु हुजूर महाराज- 


प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे -(12 )-


ऐसी हालत में जो कोई दुनियाँ के बड़े आदमी का (जो सत्संग में शामिल है ) सहारा मिल जावे तो अलबत्ता इन जीवो को बहुत मदद हो जाती है उनकी भक्ति और अभ्यास थोड़ा बहुत जारी रहता है।  इन जीवों का काम संत सतगुरु और सच्चे मालिक राधास्वामी दयाल अपनी मेहर और दया से आहिस्ता आहिस्ता बनाते जाते हैं और किसी न किसी तरह का सहारा वक्त वक्त पर देकर भक्ति में उनका निर्वाह कराते हैं । और जब कुछ अंतर में रस और आनंद इन जीवो को मिलने लगता है और परमार्थ के बचन सत्संग में सुनकर समझ बढ़ती जाती है, तब यह लोग भी भक्ति में मजबूत होते जाते हैं और आहिस्ता आहिस्ता दर्जा उनका बढ़ता जाता है ।।                                (13 ) चौथे दर्जे के जीव निपट संसारी और भोगी कहलाते हैं। इनके मन में सिवाय दुनिया के भोग बिलास और धन और मान बड़ाई के हासिल करने और चाह जबर नहीं है । यह हमेशा परमार्थ की हंसी उडाते हैं और परमार्थियों को नादान समझ कर उनके चाल ढाल की निंदा करते रहते हैं। इनको मालिक का यकीन या खौफ या प्यार बिल्कुल नहीं होता है, अलबत्ता अपने संसारी फायदे और नामवरी के वास्ते जिसको (जब जब ऐसा मौका आन पडे) पूजने लगते हैं और तन और धन भी खर्च करते हैं , पर निर्मल परमार्थी काम इनसे बिल्कुल नहीं बन सकता है और न परमार्थ के उपदेश करने वालों या परमार्रथ की कमाई करने वालों पर भाव और प्यार आ सकता है।  इस वास्ते यह जीव सच्चे मालिक के प्रेम भक्ति से हमेशा अलग रहते है। इस वास्ते सच्चे परमार्थी जीवो को चाहिए कि वे चाहे जिस दर्जे के होवे (यानी उत्तम,मध्यम या निकृष्ट) ऐसे जीवों के संग और सोहबत और सलाह से , जिस कदर बन सके, हमेशा अपना बचाव रक्खें , क्योंकि आप सच्ची भक्ति नहीं करते और दूसरों को जो सच्ची भक्ति करते और दूसरो को, जो सच्ची भक्ति करते है, उनके काम और इष्ट से हटाने में बड़ी कोशिश करते हैं। 

क्रमशः                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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