Saturday, September 26, 2020

स्वराज /रोजाना वाक्यात

 *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【स्वराज्य】-

 कल से आगे- 

अमरदास- जरूर हद होनी चाहिये- और अगर मुझसे पूछो तो हद यही है कि जब तक अपना पात्र साफ न हो जाय उस समय तक इंतजार करना चाहिये। 

अगर आप का पात्र शुद्ध होता और आपका हृदय उस दया के लिए जिसकी आपको तलब है , तैयार होता तो आपको ज्यादा इंतजार न करनी पड़ती। दरअसल कसर हमारे पात्र में रहती है और हम जल्दी मचाकर परमात्मा में दोष देखने लगते हैं और अधीर हो जाते हैं।।   

                               

   उग्रसेन - मुझे 16 वर्ष जंगलों की खाक छानते और तीर्थ स्थानों में टक्कर मारते बीत गये-अब कितनी इंतजार करूँ? कृपा करके मुझे वही घाट पर छोड़ आओ और प्राणविसर्जन करने दो- और नहीं तो इतना ही संतोष रहेगा कि मैंने अपना शरीर वरणा व असी की पवित्र भूमि में त्याग किया। 

 अमरदास -आप यह संकल्प उठाकर परमात्मा की दात का निरादर करते हैं, और गलती करते हैं जो जमीन के किसी हिस्से की खास महिमा चित्त में ठान कर प्राण त्यागने के लिए जल्दी मचाते हैं- अगर मेरी सलाह मानो तो इस संकल्प को छोड़ो और असली वारणा व असी का भेद समझ कर वहाँ पहुंचने के लिए यह यत्न करो। 

मनुष्यशरीर निहायत दुर्लभ है -इसकी कदर करो।  अगर इसका निरादर करोगे तो आइंदा मनुष्यशरीर मुश्किल से मिलेगा और चौरासी के चक्कर में जन्मान् जन्म भ्रमण करोगे। उग्रसेन- क्या इन वरणा व  असी के सिवाय, जिनके कारण इस नगर का नाम वाराणसी या बनारस है, और नदियाँ भी है जिनके किनारे पहुंचने से वह गति प्राप्त हो सकती है जिसकी महिमा ब्राह्मण लोग सुनाते हैं? 

 अमरदास - हाँ! जाबाल उपनिषद् में जिक्र है कि अत्रि ऋषि ने यज्ञवल्क्य जी से पूछा कि अनन्त अव्यक्त आत्मा को मैं किस प्रकार जानूँ। ऋषि ने उत्तर दिया कि वह अनन्त आत्मा वरणा व असी के मध्य स्थान में विराजमान है । अत्रि ने पूछा-वरणा व असी से आपकी क्या मुराद है?

 यज्ञवल्क्य ने जवाब दिया कि इंद्रियों के सब दोषों को निवारण करने वाली वरणा और इंद्रियों के सब पापों का नाश करने वाली असी है। अत्रि ने पूछा कि इसका कौन है? यज्ञवल्क्य जी बोले कि दोनो भँवों और नाक की जो सन्धि है यह देवलोक है और परे की सन्धि है अर्थात स्थान पर देवलोक और उससे परे के लोक की सीमा मिलती है- ब्रह्मदर्शी लोग इसी सन्धि की उपासना करते हैं और यही असली संध्यापासना है। 

इसलिए वहीं अविमुक्त क्षेत्र अर्थात देवलोक और परे के लोक की सन्धि का स्थान, जो दोनों भँवों और नाक की संधि के स्थान में स्थित है और जो इंद्रियों के सब दोषो को हटाने से वरणा और सब पापों को नाश करने से असी कहलाता है, उपासना करने के योग्य है।

 ऐ भाई ! उस क्षेत्र की राह तलाश कर , और अपने प्राण त्यागने का संकल्प छोड़ ।

 क्रमशः 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

रोजाना वाक्यात- कल से आगे -

अगर यह सच्चा मत है तो इसकी तालीम फैलने का कुदरती नतीजा यह होगा कि हर मजहब के अनुयायी को अपने मजहब की खूबियाँ नजर आने लगेंगी। 

यानी राधास्वामी-मत की खूबियों से वाकिफ होने पर हर शख्स अपने मजहब के अंदर वह खूबियाँ तलाश कर लेगा और उन्हें वहाँ पाकर न सिर्फ अपने मजहब की असली कदर करेगा बल्कि धीरे-धीरे दूसरे मजहबों में भी वह खूबियाँ देखने लगेगा और एक दिन उसे समझ आ जायेगी कि मजहबो की तालीम में दरअसल कोई इख्तिलाफ नहीं है।

 बल्कि एक ही मौला ने मुख्तलिफ जमाने में मुख्तलिफ बुजुर्गों के जरिए सच्चाई की प्रसार फरमाई है । जहाँ तक यह सूरत प्रकट हुई यह मानने में किसी को क्या संकोच होगा कि राधास्वामी मत विश्वव्यापी मजहब हो गया। 

इसके अलावा अगर राधास्वामी मत के पसे पुश्त मालिक का हाथ है तो मत के चलाने वाली मालिक ही की परम शक्ति हुई। तो जैसे सूरज के नमूदार होने पर जमीन के अंधेरा से अँधेरा और गहरे से गहरे गड्ढे से और मकानों में रखी हुई बोतलों व शीशियों तक के अंदर से पानी अबखरें बन कर चुपचाप निकल आता है , ऐसे ही दुनिया के गहरे से गहरे गुफख में उतरी हुई सुरतें उस परम चेतन शक्ति के सूरज की किरणों के प्रताप से सहज में माद्दे से छूटकर सूरज की तरफ उड़ने लगेंगी। व नीज जैसे मछुआरा काँटी फैंकल मछली पकड़ लेता है और उससे पूरी मछली को अपनी तरफ खींच लेता है ऐसे ही अगर सच्चे कुल मालिक ने सचमुच अपनी दया दृष्टि की काँटी रचना की जानिब फेंकी है तो उस काँटी की मार्फत कुल रचना ही का कल्याण होगा । 

यानी कुल रचना ही उसके चरणों की जानिब खींचेगी। किसी का ख्याल करना कि राधास्वामी मत सिर्फ हम ही लोगों के उद्धार के लिए इंतजाम है या हमीं मालिक के आति प्रिय है और बाकी सब जनता की किस्मत में धर्म धक्के खाना बदा है, महज व्यर्थ है। 

 वह मालिक सब खलकत का सच्चा पिता है। उसकी कृपादृष्टि सब पर एक सी है। सभी सच्चे मजहब उसके चलाये हुए हैं ।और 1 दिन कुल खलकत ही का उद्धार होगा ।यह बातें ख्याल में लाने से सत्संग की मौजूदा ढीली चाल के मुतअल्लिक़ सभी शुबहे दूर हो जाते हैं।.       

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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