Saturday, September 26, 2020

प्रेमपत्र औऱ रोजाना वाक्यात

 [: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 

20 जनवरी 1933- शुक्रवार- 


क्रिसमस के जलसे के व्यय का हिसाब पेश हुआ। भंडारों पर करीब 15000/- खर्च हुआ। कुल व्यय आकलन के अंदर ही रहने की उम्मीद है । कुल आकलन 30000/- का था ।बिजली पर लगभग 300 अधिक खर्च हो गया है ।  लेकर रात भर रोशनी रहने से सब भाइयों को बड़ी सहूलियत मिली । बिजली और पानी पर ₹2700 खर्च हुआ ।।  

                           

जालंधर के प्रेमी लाला दौलत राम साहब ने अपनी रचना "मांँस भक्षण निषेध " भेजी है। जिन ख्यालात का रचना में इजहार किया गया है वह ज्यादातर दुरुस्त है। माँस भक्षन ही से दुनिया के अंदर हैवानियत का जोर हो रहा है और भाई भाई का गला काटने के लिए तैयार हैं। 

रात के सत्संग में "अध्यात्म"  "कर्म " वगैरह अल्फाज के मानी पर जो गीता के सातवें  अध्याय के आखिर में और आठवें अध्याय के शुरू में प्रयुक्त हुए हैं रोशनी डाली गई। अनेक सत्संगियों ने अपने ख्यालात का इजहार किया। "कर्म " के जो मानी मैंने तर्जुमा में दर्ज किये हैं वह श्री शंकराचार्य के मानी से भिन्न है ।।                      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


 **परम गुरु हुजूर महाराज


 -प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-       


                                 

( 6 ) और वह सच्चा कर्म यह है:-    

                                  

 (१) कि नित्य संत सतगुरु या साधगुरु या प्रेमी अभ्यासी जन का संत सतगुरु की बानी और बचन का चित्त और तवज्जह और शौंक के साथ सत्संग किया जावे ।।                                 

 (२) और तन मन और धन से, जिस कदर अपनी ताकत के मुवाफिक बन सके, संत सतगुरु या साध गुरु या प्रेमी जन की सेवा उमंग और भाव के साथ की जावे।।                  

(३) और सच्चे नाम का मन से सुमिरन और सच्चे नामी के स्वरूप का प्रेम और भाव के साथ जिस रीती से किस संत सतगुरु बतावें, अपने घट में ध्यान किया जावे ।।                   

(४) और सच्चे भूखे और प्यासे और नंगे को बगैर ख्याल जात और कौम और किसी ताल्लुक के अपनी ताकत के मुआफिक जिस कदर बन सके सच्चे मालिक और सच्चे माता पिता राधास्वामी दयाल के नाम पर अन्न दान और जल दान और वस्त्र कपड़ा दान किया जावे।  और उसमें अपनी नामलरी का ख्याल बिल्कुल न होवे और न मांगने वाले से किसी किस्म की सेवा या खिदमत की उसके बदले में चाह और आस  रक्खी जावे।।                                                 


 (7) इस तरह पर सच्चे परमार्थी को अपना धर्म और कर्म सँभालना चाहिए और व्यवहार में दया भाव और सचौटी के संग, जिस कदर मुमकिन और मुनासिब होवे, जीवो के साथ बर्ताव करना चाहिए।

 और अपना चाल चलन भी इसी तौर पर दुरुस्त करना चाहिए कि मन से और बचन से और शरीर से यानी कर्म से जहां तक हो सके अपने निज मतलब के वास्ते या दिल बहलाव के लिए किसी जीवधारी को दुख और क्लेश न पहुँचे, बल्कि जहाँ तक मुमकिन होवे  सुख और खुशी पहुंचावे। और जो ऐसा न कर सके तो दुःख भी न पहुंचावे।। 

क्रमशः                          

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...