Sunday, September 27, 2020

सवराज्य

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-【 स्वराज्य】- नाटक 


 कल से आगे

- अमर दास- जो आसन आपको बतलाया जायगा वह निहायत आसान है और इसलिए उसे सहज आसन कहते हैं और साधन की विधि भी निहायत सहज है इसलिए उसे सहज योग कहते हैं लेकिन यह साधन उसी शख्स से बन सकता है जिसके हृदय में परमात्मा के लिए सच्चा प्रेम है । अगर आपने ईश्वरप्राणीधान की महिमा सुनी है तो इस साधन की महिमा आसानी से समझ में आ जावेगी। इस साधन का कोई संबंध न कर्मकांड से है और न हठयोग आदि से।थोड़े दिन साधन करने पर आपके अंतर में अनहद नाद प्रकट होगा । जब तक वह नाद प्रकट ना हो उस वक्त तक आपका मन किसी कदर व्याकुल रहेगा लेकिन इस नाद के प्रकट होते ही आप को परम शांति प्राप्त होगी और धीरे-धीरे आपके अंदर आत्मदर्शन व  परमात्मादर्शन का अधिकार पैदा होता जावेगा।  उग्रसेन-( बैठने के लिए कोशिश करता हुआ और दोनों हाथों से अमरदास के चरण पकड़ कर ) आप मेरे गुरुदेव हैं - आज मैंने दूसरा जन्म पाया । सच है बिना मरे दूसरा जन्म नहीं हो सकता। जैसी आपकी आज्ञा होगी मैं वैसा ही करूँगा- मुझे आपके बचनों से बहुत शांति हुई है । अनहद नाद की महिमा उन ऋषियों ने भी की थी। हे परमात्मन्! आपकी कृपा से मेरा संकल्प पूरा होने लगा है। आपको नमस्कार है!  अमरदास- आप धीरज धरें- मैं आपको एक भजन सुनाता हूँ उसे सुने और उसके अर्थो पर विचार करें। ( गाता है)          ◆◆गाना◆◆                                                     मन रे, खोजों प्रभु अविनासी।।टेक।।।                     जिन खोज्या तिन सहजहि पाया निज घट माहिं निवासी। मूर्खजन जिन मरम न जाना भरमें दुखित उदासी । कोई अटके ग्रंथन के माही कोइ गंगा कोई कासी। निज घट दृष्टि उलट नहिं देखे झिलमिल जोति प्रकासी। अमरदास बिन सतगुरु पूरे को काटे भ्रमफाँसी ।।                                      उग्रसेन- कृपानिधे! आप सत्य कहते हैं लेकिन अब निज घाट में दृष्टि उलटने का साधन बतला कर मेरी तड़प को बुझावें और मुझे आज्ञा दें कि जगत के जीवो को पुकार कर सुनाऊँ कि इस नगर में पूरे व सच्चे गुरु विद्यमान है जो भ्रम की फाँसी काटने में पूर्ण समर्थ है।  अमरदास- ओछे पात्र न बनो -अधिकारी व अनाधिकारी के भेद को मत भुलाओ।  उग्रसेन- हे महाराज ! कुल भारत पर कृपा करो।  अमरदास- अधिकार आने पर जरूर कृपा होगी -एक समय आयेगा कि भारतवर्ष में क्या सारे जगत् में सतगुरु- भक्ति व सुरत -शब्द योग की महिमा का डंका बजेगा। उग्रसेन- वह समय कब आवेगा? अमरदास- जब देश में काफी शांति हो जायगी और जीवों के वास्ते गुरु महाराज के चरणो में पहुंचने के लिए सवारी का मुनासिब बंदोबस्त हो जाएगा । उग्रसेन-धन्य है प्रभु -धन्य है! क्रमशः               🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

No comments:

Post a Comment

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...