Wednesday, September 23, 2020

प्रेम पत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- 

कल से आगे -     

                                    

  (२१) जहाँ तक बन सके और जहाँ अपना किसी तरह का ताल्लुक ना होवे, वहाँ किसी का ऐब या बुराई देखकर उसका दूसरे से जिक्र करना या अपने मन में उसका ख्याल रखना नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसी कार्यवाही से उस एब या बुराई का असर और नुकसान ऐब देखने वाले के मन में पैदा होगा और इसमें बेमतलब उसका अकाज होता है ।।                         (२२) शील और क्षमा को जहाँ तक बन सके, हर जगह और हमेशा काम में लाना चाहिए, यानी सख्ती और तकलीफ और कड़वे वचन और तान की बर्दाश्त करनी चाहिए और जल्दी भडक कर झगड़ा और बखेड़ा पैदा करने और बढ़ाने की आदत छोड़नी चाहिए। यह आदत संसारियों की है कि अपना अहंकार और मान बड़ाई का ख्याल करके जल्दी लड़ने को तैयार हो जाते हैं, पर परमार्थी को दीनता और गरीबी के साथ बर्ताव करना चाहिए । जो और कोई जगह इसका ख्याल कम रहे, तो सत्संग में जरूर लिहाज इस बात का रखना चाहिए कि किसी से झगड़ा और बखेडा पैदा न होवे।।   

                           

   (२३) संत सतगुरु से रूठना या नाराज होना नहीं चाहिए। इसमें प्रेम अंग को बड़ा झटका लगता है। जो वे कभी बचन ताड़ना या समझौती का कहें, उसको चित्त देकर सुनना और उसके मुआफिक जहाँ  तक बन सके कार्यवाही करना चाहिए।।                                

(२४) जो कोई सत्संगी किसी दूसरे सत्संगी की बुराई या निंदा करें , तो उसको नहीं सुनना चाहिए और उसको समझाना चाहिए कि यह आदत निहायत खराब है, बल्कि संसारियों में भी आदत बहुत बुरी समझी जाती है, क्योंकि जो कोई एक की बुराई और निंदा करता है वह इसी तरह सबकी बुराई और निंदा करता फिरेगा और अपना भारी अकाज करता है कि उसके मन में सच्चे मालिक और गुरु का प्रेम कभी नही ठहरेगा और दूसरे के प्रेम और भक्ति को भी मैला करता है। परमार्थी को मुनासिब है कि हमेशा सबके गुण देखता रहे और अवगुण दृष्टि ना लावे। और जो किसी सत्संगी में कोई औगुन नजर पड़े तो उसको एकांत में प्यार से समझा देवे और जो वह उस  औगुन को ना छोड़े तो सतगुरु से इत्तिला करें। वे जैसा मुनासिब समझेंगे कार्यवाही करेंगे, इसको चाहिए कि फिर उसका ख्याल अपने मन में ना रक्खें ।।                                                  

 मत देख पराये औगुन। क्यों पाप बढावे दिन दिन।। मक्खी सम मत कर भिन भिन। नहिं खावे चोट तू छिन छिन।।।  

                              

 देखा कर सब के तू गुन। सुख मिले बहुत तोहि पुन पुन। क्रमशः                                 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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