Sunday, September 27, 2020

स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -

【स्वराज्य】नाटक 

 कल से आगे-( पांचवा दृश्य) 

स्थान- यूनानी चित्रकार है एडाल्फस का मकान।

 [एडल्फस चारपाई पर पड़ा है, अचानक नींद से जागकर आवाज देता है] एडाल्फस- राज! मुझे जरा बिठला दोगे? [राजकुमारी दौड़ कर आती है और एडाल्फस को चारपाई पर तकिये के सहारे बिठलाती है ] राजकुमारी-कैसी तबीयत है? एडा०- मैंने तुम्हारे पिता को अभी ख्वाब में देखा । उनकी चौडी पेशानी है न?  राजकुमारी-( खुश होकर) भला मुझे क्या मालूम उनकी पेशानी कैसी थी- मैं तो बच्चा ही थी जब वह यात्रा के लिए चले गये।।              एडा०- हाँ ठीक है -तुम्हारी उम्र मुश्किल से 1 महीने की थी जब वह तुमसे जुदा हुए- मगर तुम्हारे पिता का रंग गोरा है और आंखें निहायत चमकीली है और वह खैरियत से हैं। राजकुमारी- हाँ क्या बात क्या बातें हुई उनसे? क्या वह वापिस आ रहे हैं?  उन्हें गये 18 बरस के करीब हो गये।  एडा०- उन्होंने मुझसे दो बातें कहीं -एक तो यह है कि वह बहुत खुश है कि मैंने तुम्हारी परवरिश के लिए इंतजाम किया और दूसरी बात उन्होंने मेरी बाबत कहीं । राजकुमारी -(घबराकर) वह क्या थी? एडा०- वह निहायत थके और परेशान मालूम होते थे जिससे ख्याल होता है कि उन्हें अभी अपने इरादे में कामयाबी हासिल नहीं हुई है।  राजकुमारी- उन्होंने आपकी बाबत क्या बात कही? क्या बीमारी के बाबत कुछ कहा? एडा०- यही कि अब मेरे कूच का वक्त करीब है -मुझे तैयार हो जाना चाहिए- मेरा मौजूदा जिस्म इस काबिल नहीं है कि मैं योगसाधन कर सकूँ- मेरा खान-पान दूसरी तरह का रहा है इसलिए परमात्मा ने कृपा करके मुझे बेहतर जिस्म दिए जाने का हुकुम फरमाया है। राजकुमारी-( आंखों में आंसू ला कर ) क्या आप मुझे अकेले छोड़कर चले जायँगें? मेरे ऊपर तरस नही करेंगे? एडा०- मुहब्बत तो जिस कदर मुझे तुम्हारे साथ रही है तुम जानती ही हो लेकिन थोड़ी देर हुई (सीने पर हाथ रखकर बतलाता है) यहाँ से एक घुंडी सी खुल गई है -तब से मेरे दिल में किसी के लिए मोहब्बत नहीं रही है। अब मेरी सलाह मानो, मुझे खुशी से रुखसत होने दो और दो चार बातें जो मैं बताना चाहता हूँ वह सुन लो।[ राजकुमारी चुपचाप रोती है और एडाल्फस के चेहरे की तरफ ताकती है ।                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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