Friday, September 25, 2020

उपदेश

 प्रेम उपदेश /-परम गुरु हुज़ूर महाराज)



              33. सतगुरु के चरनों में प्रार्थना करना वास्ते इसके कि किसी क़दर सहारा इतना बख़्शें कि थोड़ी बहुत शांति आवे, ज़रूर चाहिए। पर इतना समझ लो कि जब तक सफ़ाई अंतरी नहीं होगी, तब तक पूरी शांति नहीं हो सकती, क्योंकि जब तक सूक्ष्म मन के अंग बाक़ी हैं तब तक पूरी शांति का आना नुक़सान करता है। थोड़ी तड़प और बेकली और बिरह का पैदा होते रहना कभी कभी वास्ते सफ़ाई और तरक़्क़ी के ज़रूर है। इस वास्ते घबराओ मत और जल्दी मत करो, सतगुरु अपनी मेहर से, जितना सहारा मुनासिब है, अंतर में आप सब को देते हैं और किसी क़दर तड़प और बिरह भी लगाये रखते हैं कि जिसमें काम बनता जावे, पर इतनी नहीं कि जिस में तकलीफ़ होवे या उसकी बरदाश्त न होवें, सिर्फ़ इस क़दर कि कभी कभी मन उदासीन हो जावे और कभी कभी परमार्थ का आनंद भी आवे। मतलब यह कि इन दोनों हालतों का थोड़ा बहुत दौरा होता रहेगा।

            34. बग़ैर थोड़ी तड़प और बेकली और घबराहट के कुछ काम नहीं बनता है, और यह चीज़ें सतगुरु केवल उन्हीं लोगों को बख़्शते हैं जिन पर दया है और जिनको इसी जन्म में सँभालना मंज़ूर है और चरनों में निज करके लगाना है। और वैसे तो सब अपने दर्जे पर मेहर के लायक़ हैं, पर यह मेहर निराली है और इस मेहर की झटक भी वही झेल सकते हैं जिनको वे अपनी मौज से ताक़त बरदाश्त ऐसी हालत की देवें, नहीं तो दूसरे तो घबराकर ऐसी हालत से हट जाना या उस हालत का दूर होना चाहेंगे। और फिर ऐसों को पहले तो ऐसी तेज़ हालत प्राप्त ही नहीं होती है और जो होवे भी, तो शायद कुछ थोड़ी देर के वास्ते। पर उसकी भी उनसे बरदाश्त नहीं होती और वे नहीं चाहते कि फिर उनकी ऐसी हालत होवे। इस वास्ते सतगुरु दयाल उन पर इस तरह की बख़्शिश भी नहीं करते, यानी आगे के वास्ते छोड़ देते हैं। और जिन पर निज मेहर है, उनको चाहे तकलीफ़ घबराहट और बेकली और तड़प की मालूम पड़े, पर वे बिना ऐसी हालत के अपनी तईं ख़ाली देखते हैं और चाहते हैं कि या तो दर्शन का आनंद मिले और नहीं तो बिरह की खटक जारी रहे। इस तरह तो उनको चैन होता है, नहीं तो बेचैनी रहती है।

            35. यह सही है कि शुरू में बिना बाहर के सहारे के चलना कठिन है, पर यह भी समझना चाहिए कि कब तक बाहरी चाल चलेगी। कुछ अंतर में भी ज़ोर देना और उसके वास्ते तन मन और इंद्रियों को रोकना ज़रूर है, क्योंकि जब तक यह न होगा, अंतरी सफ़ाई न होगी और जब तक अंतरी सफ़ाई प्राप्त नहीं, तब तक इस जीव की प्रीति का भरोसा नहीं हो सकता। थोड़े दिन की घबराहट और बेकली होगी और फिर सहज सहज हलकी हो जावेगी, और खटक भी साधारण रह जावेगी। इस वास्ते पहले सफ़ाई मन की करना और जैसे बने तैसे उसको ज़ोर देकर सतगुरु राधास्वामी दयाल के चरनों में लगाये रखना साथ इन दस जुगतियों के मुनासिब मालूम होता हैः-


            (1) पोथी का पाठ करना समझ कर,

(2) नाम का सुमिरन करना,(3) ध्यान सतगुरु के स्वरूप का करना, (4) चिंतवन करना सतगुरु की लीला और बिलास का, (5) धुन्यात्मक नाम यानी शब्द का श्रवन अंतर में मन और सुरत से करना, (6) सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के मत की चर्चा सुनना या आप करना, (7) सतगुरु राधास्वामी दयाल की बानी का श्रवन करना, (8) नित्य सोच और फ़िक्र करना कि कैसे मेरे जीव का गुज़ारा सतगुरु राधास्वामी दयाल करेंगे और अपने को निपट नीच और नालायक देखना और अपने औगुनों को निरखते चलना, (9) अपने मन और इंद्रियों के हाल और चाल पर, जितना हो सके, निगाह रखनी कि किस किस पदार्थ और तरंगों और गुनावन में बहते रहते हैं और जितना हो सके उनको रोकना, (10) शरमाना और पछताना और झुरना अपने मन और इंद्रियों के हाल और चाल देखकर और मन ही मन में प्रार्थना करना सतगुरु राधास्वामी दयाल के चरनों में सच्चे दुखी होकर वास्ते प्राप्ति मेहर और दया के, और कभी कभी सुनाना थोड़ा सा अपने मन के हाल को प्रेमी और मेली सतसंगिन या सतसंगी को, जो सच्चा परमार्थ कमा रहे हैं और अपने से भक्ति में ज़बर हैं, और करना उस जतन का जो वे अपनी परख और पहचान से बतावें।

राधास्वामी

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