Thursday, September 24, 2020

दयालबाग़ 24/09 सतसंग

 *राधास्वामी!! 24-09-2020- 

आज सुबह  सतसंग में पढे गये पाठ:-      

                             

(1) गुरु गुरू मैं हिरदे धरती। गुरु आरत की सामाँ करती।। मोटे बंधन जगत के, गुरुभक्ति से काट।झीने बंधन चित्त के, करे नाम प्रताप।।-( यों आरत अब करी बनाई। सतगुरु पूरे रहे सहाई।।) (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.177)                                                               

 (2) राधास्वामी प्रीति हिये छाय रही।।टेक।। जब से स्वामी दरशन कीने। छबि उनकी मन भाय रही।।-(राधास्वामी सतगुरु मिले दयाला। चरनन सुरत लगाय रही।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-43,पृ.सं.313)                                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

 आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-      

                        

   (1) सुर्त आवाज को पकड के गई। नभ पर पहुँची व जानकार हुई।।-( राधास्वामी गुरु ने की किरपा। भाग जागा है मेरा अब धुर का।।) (प्रेमबानी-3-वजन-2,पृ.सं.379)                                            

(2) मनमोहन गुरु रुप लगे मोहि अति प्यारा।।टेक।। नैनकमल गुरु सदा बिराजें। चरन कमल निज धारा।।-(बिना गहे चरन राधास्वामी। कभी न हो निस्तारा।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-59, पृ.सं.77)      

                                                        

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।                             🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


 शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे -(119) 

धर्म का दूसरा अपराध यह है कि यह धैर्य, सहिष्णुता तथा क्षमा के उपदेश सुनाकर दीन श्रमजीवियों के हृदयों को इतना कोमल बना देता है उनके मन में आपने दुःख होने देने वालों को पीडित करने और उनकी उद्दंडता का दंड देने का विचार तक नहीं उत्पन्न होता। 

परिणाम यह है कि वे चुपचाप उनके अत्याचार सहन करते हैं और जीते जी नरक भोगते हैं और पूँजीपति निःशंक् आमोद प्रमोद के जीवन का सुख भोंगते हैं।     पूर्वोक्त दो कारणों के आधार पर राष्ट्रीय नेता कहते हैं कि प्रत्येक बुद्धिमान रूसी का प्रथम कर्तव्य यह होना चाहिए कि इस  मिथ्या शिक्षा के स्रोत अर्थात धर्म के गले पर छुरी फेर कर ही दम ले। 

सो अप्रैल सन 1929 ई० में रूस में एक व्यवस्था प्रचलित की गई जिसके अनुसार शासन की ओर से हर व्यक्ति को धर्म के विरुद्ध विप्लव-प्रसार(प्रोपेगेंडा) करने की आज्ञा दी गई और धर्म के पक्ष में बोलने वालों के लिए रोक लगाई गई कि सिवाय उन घरों की चहारदीवारी के भीतर के, जिनके लिए शासन आज्ञा दें, कोई व्यक्ति मुँह न खोले। 

एवं धार्मिक समुदायों के लिए आवश्यक ठहराया गया है कि पूजा और उपासना के कामों के अतिरिक्त और किसी कार्यवाइयो में सम्मिलित न हो।

 अर्थात अब उनको यह अधिकार नहीं है कि पूर्ववत् सहयोगी संस्थाएँ या पाठशालाएँ  तथा विद्यालय आदि स्थापित करें। इन उपायों अथवा विधानों का परिणाम यह हुआ है कि आधुनिक रूसी नवयुवक धर्म और ईश्वर का नाम तक लेने के विरुद्ध है। और उनके विचारों की चिंगारियाँ उड उड कर अन्य देशों के धार्मिक संस्था रुपी खलिहानों  को अग्नि देवता के समर्पण कर रही है।।   

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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