Wednesday, September 2, 2020

प्रेमपत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-


 कल से आगे-( 22) 


इस वास्ते जो कोई उस रूप से मिलना चाहे उसको चाहिए कि पहले उस आदि स्वरूप की भक्ति करके वहाँ.तक उस रास्ते से, जो कि उस स्वरूप ने संत सतगुरु रूप धर कर इस संसार में प्रगट किया है, पहुंचे। तब अरुप से मेल होगा। और जो ऐसा नहीं करेगा तो जिस जगह की जीव की पिंड में बैठक है वहीं बैठा बैठा चाहे जिस तरह अरूप की महिमा गया करें और जिक्र किया करें और निर्णय और तहकीकात करता रहे, पर जब तक कि उस जुगत की जो कि उस स्वरूप ने आप संत रूप धर कर प्रगट की है, कमाई और अभ्यास नहीं करेगा, तब तक अपनी जगह से नहीं हिलेगा। और इस वास्ते देह का बंधन उसका कभी नहीं काटा जाएगा और न जन्म मरण से रिहाई होवेगी और न अपने निज घर में यानी सत्तलोक और राधास्वामी पद में दखल पाएगा।।                                                         ( 23)  इस सबब से कुल विद्यावान और बुद्धिमान लोग खाली रह गये, और सिर्फ बातें विद्या बुद्धि की बनाते रहे । और जो कुछ उन्होंने उस मालिक के रूप या अरुप का निर्णय किया, वह भी सही नहीं हो सकता और न उनको रचना के भेद की सही खबर मिली।  इस वास्ते उनके मन और बुद्धि का अंधेरा और भरम और संदेह बिल्कुल दूर नहीं हुए और इसी सबब से इन लोगों के बचन में आपस में इत्तेफाक नहीं है । कोई कुछ कहता है और कोई कुछ बकता है और दूसरा उसी को रद्द करता है और दूसरी बात बताता है। पर यह सब के सब भूल और भरम में पड़े हुए हैं और अकल से अनुमान करके बातें बनाते हैं सुरत यानी रुह की आंख से कुछ देखा नहीं । और संत सतगुरु जो हाल फरमाते हैं, वह देखे हुए कहते हैं और उनका बचन एक ही है और हमेशा कायम है, कोई उसको काट नहीं सकता और न उसमें कमी बेशी कर सकता है। क्रमशः                          🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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