Saturday, September 5, 2020

रोजाना वाक्यात, प्रेमपत्र

 **राधास्वामी!! 05-09-2020-

 आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-

                            

  (1) करूँ बेनती राधास्वामी आज। काज करो और राखो लाज।।-(मैं जंगी तुम हो राधास्वामी। जोड मिलाया तुम अंतरजामी।।) (सारबचन-शब्द-3,पृ.सं.166)                                                               

 (2) आज गावे सुरत गुरु आरत सार।।टेक।। प्रेम भरी गुरु सन्मुख आई। तन मन दीना वार।।-(राधास्वामी मेहर पाय घर चाली। सहज उतर गई भौजल पार।।) (प्रेमबानी-2-पृ.सं.301)                           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -रोजाना वाक्यात -31 दिसंबर 1932 -शनिवार- 

आज कैंप तोड़ दिया गया। लोग वापस होने शुरू हो गये। कुल इंतजामात कामयाब साबित हुए । वॉलण्टिर्यस ने तन तोड़कर काम किया । न कोई मर्ज फैला न किसी को सुख चैन , या खाने-पीने के मुतअल्लिक़ तकलीफ हुई। 12000 मर्द औरत व बच्चे इतने दिन सत्संग के मेहमान रहे और बखैरियत तमाम दयालबाग का लुफ्त उठा कर घर लौट रहे हैं । 

प्रेमी भाइयों और प्रेमिन बहनों की श्रद्धा देखकर तबियत निहायत खुश हुई।  सभा के खजाने में अलावा ₹35000 के जो खर्चे जलसा के लिए 13 दिसंबर तक प्राप्त हो चुका था ₹35000 और इस माह में वसूल हुआ । इस रकम से सभा के सब घाटे पूरे हो गये।  राधास्वामी दयाल सभा के सब काम चलाते हैं।                                                        

 मेम्बराने सभा ने सहमति से मशवरा दिया की :" दीन व दुनिया" ड्रामा की फिल्म तैयार कराई जावे। और अगर यह फिल्म कामयाब साबित हो तो और फिल्में तैयार कराई जावें। सेठ चमरिया ने हर तरह की सहायता देने का वादा किया। लेकिन यह शर्त लगाई कि दस पंद्रह दिन कलकत्ता में कयाम करके हमारे रुबरु फिल्म बनवाई जावे। 

इधर देहली व इलाहबाद के भाई उन स्थानों में नुमाइश के लिये जोर दे रहे है। उधर राजाबरारी से पैगाम आया है कि परम्परानुसार माह जनवरी के आखिरी हफ्ते में.वहाँ का दौरा किया जावे। अफनी मर्जी का तनिक भी दखल नही है । जो मालिक जो मंजूर होगा वही होगा।।                           

 रात के सतसंग में सच्चे परमार्थी की रहनी गहनी के मजमून पर बातचीच हुई।।             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


[*परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-

 

निर्मल चेतन देश में, जो संतों के सच्चे मालिक का देश है, उस माया का नाम और निशान भी नहीं है।  यह सब दर्जे देहधारी के स्वरूप में सूक्ष्म रीति से मौजूद है, और हर एक दर्जे का चैतन्य उसी दर्जे के बाहर के चेतन मंडल से मिला हुआ है। जो सुरत चैतन्य उस निर्मल चैतन्य से धार रूप होकर पिंड में उतर कर ठहरी है , उस निर्मल चेतन देश के वासी और भेदी संत सतगुरु से मिलकर और रास्ते का भेद और जुगत उसी धार पर सवार होकर लौटने की दरियाफ्त  करके अभ्यास करें यानी अपने घट को मथन कर आवरण दूर करती जावे तथा उनको छेद कर ऊपर को चढ़ती जावे, तो वह सुरत एक दिन निर्मल चेतन देश में पहुंचकर उस पार और अनंत रूप से मिल कर एक हो जावेगी और देह की हद किसी तरह से उसके अपार और अनंत रूप में हारिज (खलल डालने वाली) और  मानै(असंभव बताने वाली)  नहीं होगी।  

जैसे कि मकान में ऊँचे दर्जे या खन की हवा का मेल साथ उसके मंडल के होने में मकान की रोकने वाली हद कोई रोक नहीं सकती , ऐसे जिस अभ्यासी सुरत का रास्ता नीचे से ऊपर तक घट में इस तौर से खुल गया, वहीं सुरत उस अरुपी, अनंत अपार रूप से मिलकर एक हो गई।

 पर बाहरमुख दृष्टि वालों की हददार और देह स्वरुप ही दिखलाई देती रहेगी, पर जो भेदी और अभ्यासी है वह उसके अपार और अनंत रूप की पहचान करके उसके साथ मालिक के मुआफिक  प्रेमपूर्वक बर्ताव करेंगे। 

। क्रमशः               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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