Monday, April 13, 2020

स्मारिका / पूज्य हुजूर सरकार साहब के बचन





प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


: स्मारिका
परम गुरु सरकार साहब
              90. यद्यपि सरकार साहब की दया व मेहर से बहुत से सतसंगियों की बीमारी व तकलीफ़ें दूर हो गई थीं पर उन दयाल की अपनी बीमारी और शारीरिक तकलीफ़ चलती ही रही और उसमें कोई वास्तविक कमी नहीं आई। प्रायः यह आश्चर्य होता है कि अपने भक्तों के रक्षक गुरू महाराज अपने आपको क्यों नहीं चंगा कर लेते? एक बार हुज़ूर  साहबजी महाराज ने इसका स्पष्ट शब्दों में उत्तर 20 जून सन् 1937 ई. को अपने अन्तिम दिनों में दिया था जबकि कुर्तालम के सेक्रेटरी ने प्रार्थना की थी कि वे दयाल अपनी बीमारी को दूर फेंक दें। साहबजी महाराज ने फ़रमाया- ‘‘हुज़ूर  राधास्वामी दयाल की मौज के सामने हमारा आत्म-समर्पण बिना किसी शर्त के होना चाहिए। मैंने ख़ुद बीमारी माँगी नहीं थी। हुज़ूर  राधास्वामी दयाल अपनी मौज व मर्ज़ी से जो कुछ हमें प्रदान करें, हमें उसे ख़ुशी से स्वीकार करना चाहिए।’’ सरकार साहब ने भी abscess (ख़ास किस्म के फोड़े) की सख़्त आज़माइश का सामना अनुकरणीय सहनशीलता से किया और साहबजी महाराज बरसों तक ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी से पीड़ित रहे परन्तु उनमें से किसी ने भी लेश मात्र की परेशानी, घबराहट या मानसिक अशांति नहीं दिखाई।
[13/04, 17:38] DeoT Maa PA telenor:  91. यद्यपि सरकार साहब ने कोई ख़ास किताब नहीं लिखी थी फिर भी कई ऐसे विषयों के सम्बन्ध में, जिनके विषय में बहसमुबाहिसे होते थे और जिनके विषय को स्पष्ट और पूर्ण व्याख्या की आवश्यकता थी,उन दयाल ने अपने पत्रों में और ‘प्रेम समाचार’में जो कि जून सन् 1913 ई. में प्रकाशित हुआ था, विस्तारपूर्वक लिखा। महाराज साहब के गुप्त हो जाने के पश्चात् सब से अधिक बहस की समस्या, जो उठाई गई थी, वह राधास्वामी मत के मिशन (विशेष उद्देश्य) के बारे में थी कि हुज़ूर  राधास्वामी दयाल का यह मिशन था या नहीं कि इस पृथ्वी से अपनी निज धार को वापिस खींच लेने से पहले तमाम रचना का उद्धार पूरा किया जाए। अगर ऐसा था तब महाराज साहब के बाद उन दयाल का दूसरा संत सतगुरू जानशीन होना चाहिए था और इन्टर रेगनम (बीच का समय जब कि कोई संत सतगुरू न हो) की थ्योरी को बीच में लाने की और इन्टर रेगनम की व्याख्या उस मानी में करने की, जिस मानी में सेन्ट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव काउन्सिल के मेम्बरान करते मालूम होते थे,कोई आवश्यकता न थी।

सतसंगियों को लिखे गए अपने पत्रों में सरकार साहब ने स्पष्ट रूप से फ़रमा दिया था कि हुज़ूर  राधास्वामी दयाल की निजधार उस समय तक वापिस नहीं जाएगी जब तक कि हुज़ूर  राधास्वामी दयाल का मिशन पूरा न हो जाए और अपने लेख ‘परम गुरु’ जो कि प्रेम समाचार में प्रकाशित हुए, उन दयाल ने हमेशा के लिए इस सम्बन्ध में समस्त संदेहों और शंकाओं को दूर कर दिया। सतसंग साहित्य में संत सतगुरू की अद्वितीय स्थिति (पोज़ीशन) के बारे में इससे अधिक स्पष्ट और ज़ोरदार व्याख्या इससे पहले कभी नहीं हुई।

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